नई दिल्ली: मसूर दाल की खेती भारत में काफी बड़े पैमाने पर की जाती है। यह एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है, और यह दुनिया भर में उपजाई जाती है। मसूर दाल की खेती भारत के विभिन्न भागों में की जाती है, लेकिन पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र में बड़ी मात्रा में उगाई जाती है। मसूर दाल भारतीय रसोई में मुख्य भोजन है और इसके दानों का उपयोग दाल के एक मुख्य अवयव के रूप में किया जाता है। ऐसे में जो किसान दाल की खेती से जुड़े हुए हैं, वो इस फसल की खेती में भी अपना हाथ आजमा सकते हैं। इसके लिए इस फसल से जुड़ी समुचित जानकारी जुतानी बहुत जरूरी है।
मसूर दाल की कई प्रजातियां होती हैं, जिनमें से प्रमुख हैं: मसूरी, मसूर सफेद और मसूर सब्जी वाली। मसूर की खेती भारत के विभिन्न भागों में अलग-अलग मौसम और जलवायु शर्तों के आधार पर की जा सकती है, लेकिन आमतौर पर इसे अक्टूबर से फरवरी के बीच में बोया जाता है। मसूर दाल की खेती के लिए उपयुक्त तापमान 20°C से 30°C के बीच होता है। अगर आप उस क्षेत्र में रहते हैं, जहां फसल बुआई सीजन के दौरान यह तापमान मौजूद है, तो आप इस फसल की खेती में अपना हाथ आजमा सकते हैं।
मसूर दाल की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए। इस फसल की खेती के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करें। बीजों की अच्छी छानबीन बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उच्च पैदावार में सहायक होती है और फसल की बीमारियों से बचाव करती है। मसूर दाल की बुआई अक्टूबर से दिसम्बर के बीच की जाती है। बीजों की बुआई के बाद, उन्हें पर्याप्त पानी प्रदान करना महत्वपूर्ण है, खासकर बुआई के बाद के 2-3 हफ्तों में। मसूर दाल के पौधों को पानी और उर्वरक की आवश्यकता होती है। इसके लिए योजनाद्ध तरीके से उर्वरकों का छिड़काव करना बहुत महत्वपूर्ण है।
मसूर की फसल को बीमारियों और कीटों से बचाने के लिए नियमित रूप से फसल की निगरानी करते रहें व ज़रूरत पड़ने पर उचित उपाय अपनाएं। मसूर दाल की फसल आमतौर पर 90 से 120 दिनों में तैयार हो जाती है। अच्छी देखभाल और उचित खेती तकनीक के साथ, मसूर दाल की खेती किसानों को अच्छा पैदावार प्राप्त करने में मदद कर सकती है।