कृषि पिटारा

शरदकालीन गन्ने की खेती करने वाले किसान कर सकते हैं गन्ने की इन किस्मों की खेती

नई दिल्ली: गन्ना की खेती नकदी फसल (cash crop) के रूप में की जाती है। गन्ने की अच्छी पैदावार के लिए उन्नत कृषि क्रियाओं के साथ इसकी अच्छी व उन्नत क़िस्मों की आवश्यकता होती है। इसलिए गन्ने के बेहतर उत्पादन के लिए गन्ने की बेहतर किस्मों का चुनाव करना आवश्यक है। अगर आप भी गन्ने की खेती करना चाहते हैं तो आपके पास शरदकालीन गन्ने की खेती का भी विकल्प मौजूद है। शरदकालीन गन्ने की खेती का सबसे बेहतरीन समय 15 सितंबर से 30 नवंबर तक का होता है। इस समय गन्ने के प्रभेदों की बुवाई करने पर बेहतर पैदावार मिलती है। वहीं बसंतकाल के दौरान पूर्वी क्षेत्र के लिए मध्य जनवरी से लेकर फरवरी तक इसकी बुवाई की जा सकती है। मध्य क्षेत्र के लिए फरवरी से मार्च और पश्चिमी क्षेत्र के लिए मध्य फरवरी से मध्य अप्रैल का समय अच्छा माना जाता है।

शरदकालीन गन्ने की बहुत सी किस्में हैं, लेकिन इनमें से कुछ किस्में ऐसी हैं, जिनसे अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। साथ ही उनमें कीट व रोगों के प्रकोप की संभावना कम रहती है। ये किस्में इस प्रकार हैं:

गन्ने की सीओ-0118 (करण-2) किस्म: गन्ने की सीओ 0118 (करण-2) किस्म गन्ना प्रजनन संस्थान, क्षेत्रीय केंद्र, करनाल की ओर से विकसित की गई है। इसे वर्ष 2009 में जारी किया गया था। इस किस्म का गन्ना आकार में लंबा, मध्यम मोटा और भूरे बैंगनी रंग का होता है। इस किस्म के गन्ने के रस की क्वालिटी काफी अच्छी होती है। गन्ने की इस किस्म को पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्य उत्तर प्रदेश क्षेत्र के लिए अनुसंशित किया गया है। इन राज्यों के किसान इसकी खेती करके अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। इस किस्म से किसानों को प्रति एकड़ 31 टन तक उपज प्राप्त हो सकती है।

गन्ने की सीओ 0238 (करण-4) किस्म: गन्ने की सीओ 0238 (करण-4) किस्म को आईसीएआर के गन्ना प्रजनन संस्थान अनुसंधान केंद्र, करनाल और भारतीय गन्ना प्रजनन संस्थान कोयंबटूर की ओर से जारी किया गया है। यह किस्त को वर्ष 2008 विकसित किया गया व 2009 में इसे किसानों के लिए जारी किया गया। इस किस्म की खास बात यह है कि यह किस्म पानी की कमी और जल भराव दोनों ही स्थितियों में अच्छा उत्पादन देती है। गन्ने की यह किस्म मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और मध्य उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के लिए अधिसूचित की गई है। इस किस्म से प्राप्त उपज की तो गन्ने की सीओ 0238 (करण-4) से करीब 32.5 टन प्रति एकड़ तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इस किस्म की रिकवरी दर 12 प्रतिशत से अधिक है। इस किस्म की खेती सबसे ज्यादा पंजाब में होती है। यहां करीब 70 प्रतिशत किसान इसकी खेती करते हैं।

गन्ने की सीओ- 0124 (करण-5) किस्म: इस किस्म को वर्ष 2010 में गन्ना प्रजनन अनुसंधान संस्थान, करनाल और गन्ना प्रजनन अनुसंधान संस्थान, कोयंबटूर की ओर से संयुक्त रूप से विकसित किया गया है। यह सिंचित अवस्था में मध्यम देर से पकने वाली किस्म है। यह जलभराव और भराव दोनों स्थितियों में अच्छी उपज देती है। खास बात यह है कि गन्ने की यह किस्त लाल सड़न रोग के प्रति प्रतिरोधी है। बेतहर कृषि क्रियाओं का उपयोग करके गन्ने की सीओ- 0124 (करण-5) किस्म से प्रति एकड़ करीब 30 टन तक का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

गन्ने की सीओ- 0237 (करण-8) किस्म: गन्ने की सीओ- 0237 (करण-8) वर्ष 2012 में गन्ना प्रजनन संस्थान क्षेत्रीय केंद्र करनाल ने विकसित की है। यह एक अगेती बुवाई के लिए उपयुक्त किस्म है। इस किस्त की खास बात यह है कि गन्ने की यह किस्म जल जमाव के प्रति सहनशील है। इसके अलावा यह किस्त लाल सड़न रोग के प्रति भी प्रतिरोधी किस्त मानी जाती है। इस किस्त की खेती मुख्य रूप से हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश व मध्य उत्तरप्रदेश के किसान करते हैं। इस किस्म से करीब 28.5 टन प्रति एकड़ उपज प्राप्त की जा सकती है।

सीओ 05011 (करण-9) किस्म: गन्ने की सीओ 05011 (करण-9) किस्म लंबी, मध्यम मोटी, बैंगनी रंग के साथ हरे रंग किस्म है। इसका आकार बेलनाकर होता है। खास बात यह है कि गन्ने की यह किस्म लाल सड़न और उकठा प्रतिरोधी किस्म है। यह किस्म 2012 में जारी की गई। इस किस्म को आईसीएआर-गन्ना प्रजनन संस्थान क्षेत्रीय केंद्र करनाल और भारतीय गन्ना प्रजनन अनुसंधान संस्थान की ओर से विकसित किया गया है। यह किस्म प्रमुख रूप से हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य उत्तर प्रदेश व पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए अनुसंशित की गई है। गन्ने की सीओ 05011 (करण-9) किस्म से औसत उपज 34 टन प्रति एकड़ प्राप्त की जा सकती है।

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