मंडी भाव

मध्य प्रदेश के किसान प्याज और लहसुन की गिरती कीमतों से परेशान, लागत निकालना भी मुश्किल

मध्य प्रदेश के किसानों के लिए इस बार प्याज और लहसुन की खेती घाटे का सौदा बनती जा रही है। राज्य की ज्यादातर कृषि मंडियों में इन दोनों फसलों की कीमतें इस कदर गिर गई हैं कि अब किसान लागत निकालने के लिए भी जूझ रहे हैं। इस वजह से राज्य भर के किसान भारी आर्थिक संकट में हैं और सरकार से राहत की मांग कर रहे हैं।

प्याज की बात करें तो 6 जून को प्रदेश की कई प्रमुख मंडियों में इसके दाम बेहद निराशाजनक स्तर पर पहुंच गए। रतलाम, शुजालपुर और मंदसौर जैसे क्षेत्रों में किसानों को प्याज के मात्र 50 से 100 रुपये प्रति क्विंटल तक के भाव मिले हैं, जबकि सामान्य उत्पादन लागत इससे कई गुना अधिक होती है। रतलाम मंडी में मॉडल कीमत 251 रुपये रही, जो किसानों के लिए चिंता का बड़ा कारण है। इसी तरह, शुजालपुर में लाल प्याज के लिए न्यूनतम कीमत सिर्फ 100 रुपये दर्ज की गई।

हालांकि कुछ जगहों जैसे इंदौर में प्याज का अधिकतम मूल्य 2078 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंचा, लेकिन इन ऊंची कीमतों से बहुत कम किसानों को फायदा मिल पाया क्योंकि यह कीमत कुछ ही अच्छी क्वालिटी की उपज के लिए थी। वहीं, अन्य मंडियों में जैसे शाजापुर और सारंगपुर में भी कीमतों में भारी अंतर देखने को मिला।

लहसुन की स्थिति भी कम खराब नहीं है। राज्य की कई मंडियों में लहसुन के मॉडल भाव 2000 से 3000 रुपये प्रति क्विंटल के बीच रहे, जो कि उसकी उत्पादन लागत के मुकाबले काफी कम हैं। जबकि किसानों ने इसके बीज, खाद, कीटनाशक और श्रम पर भारी खर्च किया है। आलोट मंडी में जहां अधिकतम भाव 8010 रुपये रहा, वहीं औसतन किसानों को मात्र 2000 रुपये का ही दाम मिला। भोपाल, सीहोर और शाजापुर जैसी मंडियों में भी हालात कुछ खास बेहतर नहीं रहे। जावद और जावरा में लहसुन की अधिकतम कीमतें 13,000 से ऊपर जरूर पहुंचीं, लेकिन यह ऊंचे भाव गिनी-चुनी क्वालिटी की फसल के लिए ही थे।

मध्य प्रदेश में प्याज और लहसुन की खेती बड़ी संख्या में किसान करते हैं, खासकर निमाड़ और मालवा क्षेत्र में। बीज से लेकर तुड़ाई तक की पूरी प्रक्रिया में भारी लागत आती है, लेकिन मंडियों में उपज का सही मूल्य न मिलने के कारण अब किसान निराश हैं। इस गिरावट के पीछे एक वजह मांग में कमी और फसलों की अधिक आपूर्ति भी बताई जा रही है।

राज्य सरकार ने फिलहाल कोई ठोस हस्तक्षेप नहीं किया है, जिससे किसानों में असंतोष बढ़ता जा रहा है। किसान संगठनों ने सरकार से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर फसल खरीद की मांग की है और मंडियों में हो रहे अनियमित मूल्य निर्धारण पर नियंत्रण की जरूरत बताई है। किसानों का कहना है कि अगर जल्द ही इस स्थिति पर ध्यान नहीं दिया गया, तो अगली बार वे इन फसलों की खेती करने से कतराएंगे, जिससे उत्पादन और आपूर्ति पर असर पड़ेगा। प्रदेश में कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के लिए यह एक चिंताजनक संकेत है।

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