नई दिल्ली: हमारे देश में काफी किसान नींबू वर्गीय फलों की खेती प्रमुख रूप से करते हैं। इनमें नींबू, संतरा, नारंगी, किन्नु तथा माल्टा इत्यादि शामिल हैं। इन फलों पर अक्सर कुछ रोगों के संक्रमण का खतरा बना रहता है। यदि समय पर इन रोगों की पहचान ना की जाए तो रोगों का प्रकोप इतना अधिक बढ़ जाता है कि उनपर नियंत्रण करना काफी कठिन हो जाता है। नींबू वर्गीय फलों की पैदावार में कमी ना आए इसके लिए यह ज़रूरी है कि समय पर रोगों की पहचान कर उन्हें नियंत्रित किया जाए।
एन्थ्रेक्नोज एक ऐसा रोग है जो नींबू वर्गीय फलों को काफी नुकसान पहुंचाता है। इसके कारण पौधों की कलियों पर काले रंग की चित्तियाँ बन जाती हैं। साथ ही पत्तियों पर पीले व भूरे रंग के धब्बे तथा फलों पर लाल रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। इस रोग की वजह से प्राय: पेड़ की बड़ी टहनियां भी सूखने लगती हैं। फिर एक समय बाद पूरा पेड़ ही सूख जाता है। यह रोग अधिक आर्द्रता एवं 25-28 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान में अपना अधिक प्रभाव जामाता है।
एन्थ्रेक्नोज रोग से नींबू वर्गीय फसलों को बचाने के उपाय:
- नींबू वर्गीय फलों के उचित विकास के लिए खेत में लंबे समय तक जल का ठहराव नुक्सानदायक होता है। इसलिए खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था रखें।
- नींबू वर्गीय फलों की खेती के लिए कम वर्षा वाले स्थानों का चुनाव करें।
- पौधों के बीच पर्याप्त दूरी बनाए रखें।
- खेतों को खरपतवार से मुक्त रखें।
- जब कभी पेड़ पर सूखी हुई शाखाएँ दिखें तो उन्हें यथाशीघ्र काट दें और उस स्थान पर बोर्डो मिक्सचर या कोई कॉपरयुक्त कवकनाशी का लेप लगा दें। इससे एन्थ्रेक्नोज रोग के प्रसार की संभावना काफी कम हो जाएगी।
- यदि किसी पेड़ पर एन्थ्रेक्नोज के लक्षण दिखें तो उसपर कार्बेन्डाजिम 12 प्रतिशत और मेंकोजेब 63 प्रतिशत डबल्यूपी 50 ग्राम या क्लोरोथालोनिल 75 प्रतिशत डबल्यूपी 30 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर 15-20 दिन के अन्तराल पर तीन बार छिड़काव करें।
- आप चाहें तो जैविक उपचार के तौर पर स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 50 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में घोलकर प्रभावित स्थान पर छिड़क सकते हैं।
- इसके अलावा प्रभावित स्थान पर प्रति 100 लीटर पानी में 2 किलोग्राम कॉपर सल्फेट तथा 2 किलोग्राम बुझा हुआ चूना मिलाकर छिड़काव करने से भी एन्थ्रेक्नोज रोग पर यथाशीघ्र नियंत्रण होता है।