नई दिल्ली: पीला रतुआ गेहूँ की फसल में फैलने वाला एक प्रमुख रोग है। इस रोग के लक्षण ज्यादातर नमी वाले क्षेत्रों में देखने को मिलते हैं। गेहूँ की फसल में अगर पीला रतुआ पूरी तरह से फैल जाए तो इल्ड ख़त्म हो जाती है और गेहूँ की पैदावार में 40 से 70 प्रतिशत तक की कमी हो जाती है। यह रोग फसल की पैदावार के साथ-साथ गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है। इसलिए पीला रतुआ की समय पर रोकथाम जरूरी है।
पीला रतुआ का प्रारंभिक संक्रमण 10 से 15 पौधों पर एक गोल दायरे में होता है। यह बीमारी अक्सर कोहरे में 10 से 17 डिग्री तापमान में फैलती हैं। खास तौर पर दिसंबर के अंतिम सप्ताह से लेकर पूरे जनवरी महीने तक इस बीमारी के प्रति किसानों को सचेत रहना चाहिए। क्योंकि इस समय वातावरण में आर्द्रता मौजूद होती है। कम तापमान होने की वजह से गेहूँ की फसल में यह रोग इस समय तेजी से फैलता है। आगे जैसे-जैसे तापमान बढ़ता हैं वैसे-वैसे इस बीमारी के प्रभाव में कमी होने लगती है।
पीला रतुआ रोग से बचाव के लिए नियमित रूप से खेतों में जाकर फसल की जाँच करनी चाहिए। गेहूँ के पौधों के रंग में बदलाव दिखने पर तुरंत कृषि अधिकारियों को इसके बारे सूचित करना ज़रूरी है ताकि समय रहते बीमारी का पता चल सके। किसान मित्रों, एक बात जान लें कि सिर्फ पत्तों में पीलापन आ जाना पीला रतुआ नहीं कहलाता है। बल्कि जब हाथ में पाउडरनुमा पीला पदार्थ लगने लगे तो समझ लें कि रोग का संक्रमण शुरू हो चुका है। आपको यह पीला पाउडर जमीन पर भी गिरा हुआ देखने को मिलेगा।
पीला रतुआ रोग के लक्षण दिखाई देते ही 200 मि.ली. प्रोपीकोनेजोल 25 ई.सी. या टेब्यूकोनाजोल 25 ई.सी. का 200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए। फिर रोग के प्रकोप तथा फैलाव को देखते हुए दूसरा छिड़काव 10-15 दिन के अंतर पर किया जा सकता है। इस बीमारी की रोकथाम के लिए कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी हैं। जैसे- अगर बारिश हो रही हो तो कीटनाशक का छिड़काव नहीं करें। मौसम साफ हो तभी छिड़काव करें साथ ही पानी और कीटनाशक का सही मात्रा में इस्तेमाल करें।
पीला रतुआ से बचाव के लिए 10 लीटर गोमूत्र, दो किलो नीम की पत्ती और 250 ग्राम लहसुन का मिश्रण बनाकर 80-90 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ छिड़काव करने से काफी साकारात्मक परिणाम देखने को मिलते हैं। इस रोग पर नियंत्रण का एक अन्य तरीका ये है कि एक लीटर दही के मट्ठा को मिट्टी के घड़े में भरकर सात दिनों तक ज़मीन में दबा दिया जाए, फिर इसे 40 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से फसल पर छिड़काव करें। पीला रतुआ रोग पर नियंत्रण का यह एक बहुत ही कारगर उपाय है।