कृषि पिटारा

भारत में बकरी पालन: विदेशी नस्लों से बढ़ेगा किसानों का मुनाफा, जानिए तीन खास नस्लें जो देती हैं देसी गाय से ज्यादा दूध

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में खेती-किसानी के अलावा पशुपालन एक और ऐसा तरीका बन चुका है, जिससे किसानों की आय में बढ़ोतरी हो रही है। पशुपालन के तहत बकरी पालन को खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में अधिक प्राथमिकता दी जा रही है। इसकी वजह यह है कि बकरियों से मिलने वाला दूध और मांस दोनों ही किसानों के लिए आय का एक स्थिर स्रोत बनते हैं। वहीं, बकरी पालन में एक फायदा यह भी है कि यह किसानों को कम निवेश में ज्यादा मुनाफा देता है।

आजकल, किसान बकरी पालन के व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए विदेशी नस्लों की बकरियों की ओर रुख कर रहे हैं, जो ज्यादा दूध देती हैं। खासकर, स्विट्जरलैंड की तीन विदेशी नस्लें हैं, जो दूध उत्पादन में देसी गाय से भी आगे हैं। ये बकरियां किसानों के लिए बेहद लाभकारी साबित हो सकती हैं, क्योंकि इनकी दूध देने की क्षमता देसी गाय से कई गुना अधिक होती है।

ये हैं तीन विदेशी नस्लें, जिनसे मिल सकता है फायदा:

सानेन बकरी:  सानेन बकरी स्विट्जरलैंड की एक प्रमुख नस्ल है और यह दूध उत्पादन के लिए बेहद प्रसिद्ध है। इसकी दूध देने की क्षमता लगभग 4 से 4.5 लीटर प्रति दिन होती है, जो इसे अन्य नस्लों से अधिक लाभकारी बनाती है। यह बकरी 80 से अधिक देशों में पाली जाती है। इसका दूध भैंस के दूध के बराबर मूल्य पर बिकता है। प्रजनन क्षमता बहुत जल्दी विकसित होती है, सिर्फ 9 महीने में। इस नस्ल की बकरी औसतन 264 दिनों में 800 लीटर से अधिक दूध देती है। सानेन बकरी का दूध न केवल बाजार में मांग में होता है, बल्कि इसका मांस भी अच्छा मुनाफा देता है। ऐसे में यह बकरी पालन करने वाले किसानों के लिए बहुत लाभकारी साबित हो सकती है।

टोगेनबर्ग बकरी: टोगेनबर्ग बकरी भी स्विट्जरलैंड की ही एक प्रमुख नस्ल है, जो दूध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। यह बकरी एक दिन में औसतन 4 से 4.5 लीटर दूध देती है। इस बकरी में सींग नहीं होते। इसकी गर्दन लंबी और पतली होती है और इसके कान खड़े होते हैं। बकरियों के शरीर का रंग भूरा और सफेद होता है। चमड़ा लचीला और मुलायम होता है, जो इसे कारीगरी के लिए भी उपयुक्त बनाता है। इस नस्ल को विशेष रूप से दूध उत्पादन के लिए पाला जाता है, और इसकी दूध देने की क्षमता इसे अन्य नस्लों से बेहतर बनाती है।

अल्पाइन बकरी: अल्पाइन बकरी भी स्विट्जरलैंड की एक प्रसिद्ध नस्ल है, जो मुख्य रूप से दूध उत्पादन के लिए पाली जाती है। इसकी दूध देने की क्षमता प्रति दिन औसतन 3 से 4.5 लीटर होती है। इसका वजन लगभग 61 किलोग्राम होता है। अल्पाइन बकरी सफेद, भूरे या काले रंग में हो सकती है। यह बकरी बहुत अधिक दूध देती है, जो किसानों के लिए एक स्थिर आय का स्रोत बन सकता है। इस नस्ल की बकरियों से मिलने वाले दूध की गुणवत्ता और मात्रा दोनों ही बहुत अच्छी होती है, जिससे यह बकरी पालन करने वाले किसानों के लिए मुनाफे का एक बेहतरीन साधन बन सकती है।

बकरी पालन से किसानों को कैसे मिल सकता है फायदा?

अगर किसान इन विदेशी नस्लों की बकरियों को पालन में लाते हैं, तो वे दूध के उच्च उत्पादन के कारण अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। इन बकरियों का दूध न केवल अधिक मात्रा में होता है, बल्कि उसकी मांग भी अधिक रहती है। बकरी पालन के व्यवसाय को एक संगठित और पेशेवर तरीके से किया जाए तो यह बहुत ही लाभकारी व्यवसाय बन सकता है।

ग्रामीण क्षेत्रों के किसान अपनी छोटी ज़मीन पर इन बकरियों को पालकर कम निवेश में अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही, बकरी के दूध और मांस का स्थानीय बाजारों में भी अच्छा कारोबार होता है।

भारत में बकरी पालन से किसानों की आय बढ़ाने के लिए विदेशी नस्लों की बकरियों का पालन एक स्मार्ट और प्रभावी तरीका बन सकता है। सानेन, टोगेनबर्ग, और अल्पाइन जैसी विदेशी नस्लों के बकरियां न केवल ज्यादा दूध देती हैं, बल्कि उनकी देखभाल भी अपेक्षाकृत आसान होती है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों के लिए यह एक शानदार आजीविका विकल्प साबित हो सकता है, जिससे न सिर्फ उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी, बल्कि पशुपालन क्षेत्र में भी एक नई दिशा मिलेगी।

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