नई दिल्ली: इस बार चालू रबी विपणन वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा गेहूं की खरीद सामान्य के मुक़ाबले आधी हो सकती है। इस बात का संकेत केंद्र सरकार की ओर से खाद्य सचिव सुधांशु पांडेय ने दिया है। वे बुधवार को मीडिया से बात कर रहे थे। उन्होंने कहा कि गेहूं के अधिक निर्यात और उत्पादन में संभावित गिरावट की वजह से ऐसा होने की संभावना है। इससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत् घरेलू मांग को पूरा करने के लिए कोई परेशानी नहीं होगी। साथ ही उन्होंने गेहूं के निर्यात पर रोक लगाने की संभावना से भी इनकार किया है। क्योंकि निर्यात से किसानों को अपनी उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक कीमत मिल रही है।
खाद्य सचिव सुधांशु पांडेय ने कहा कि, “हमें निर्यात पर किसी भी नियंत्रण के लिए कोई मामला बनता नहीं दिखता है। गेहूं का निर्यात जारी है और वास्तव में सरकार इसके लिए व्यापारियों को सुविधा प्रदान कर रही है। मिस्र, तुर्की और कुछ यूरोपीय संघ के देशों जैसे नए निर्यात बाजार भारतीय गेहूं के लिए खुल रहे हैं। कृषि-निर्यात संवर्धन निकाय एपीडा निर्यात खेप के लिए सुविधा प्रदान कर रहा है।”
सुधांशु पांडेय ने मीडिया को यह भी बताया कि, “निजी व्यापारियों ने चालू तिमाही के लिए 40 लाख टन निर्यात करने का अनुबंध किया है और 10 लाख टन पहले ही भेज दिया गया है। भारतीय व्यापारियों के पास जून तक निर्यात के लिए एक रास्ता खुला है, क्योंकि उसके बाद अर्जेंटीना से गेहूं की फसल आ जाएगी, जिससे गेहूं की वैश्विक उपलब्धता बढ़ेगी और भारत पर दबाव कम होगा।”
उन्होंने कहा कि, “सरकारी खरीद में गिरावट किसानों के पक्ष में जाती है। क्योंकि उन्हें सरकारी एजेंसियों द्वारा दी जाने वाली एमएसपी कीमत से अधिक मूल्य मिल रहा है। किसान अपनी उपज को एमएसपी से अधिक कीमत पर निजी कारोबारियों को बेच रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप सरकारी एजेंसियों द्वारा कम खरीद की गई है। सरकार द्वारा भले ही गेहूं खरीद कम हुई है लेकिन चावल की उपलब्धता और खरीद, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत् मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त है।’’
गौरतलब है कि सरकार की गेहूं खरीद अबतक 1.75 करोड़ टन तक पहुंच गई है और विपणन वर्ष 2022-23 में कुल खरीद 1.95 करोड़ टन रहने की संभावना है, जो पिछले वर्ष की तुलना में बहुत कम है। इससे पहले सरकार ने विपणन वर्ष 2022-23 के लिए गेहूं खरीद का लक्ष्य 4.44 करोड़ टन निर्धारित किया था, जबकि पिछले विपणन वर्ष में यह रिकॉर्ड स्तर का था। रबी विपणन सत्र अप्रैल से मार्च तक चलता है लेकिन थोक खरीद जून तक समाप्त हो जाती है।