नई दिल्ली: चने की खेती किसानों को बढ़िया मुनाफा मिलता है। इस फसल की बुवाई का उचित समय 10 अक्टूबर से 10 नवंबर के बीच का माना जाता है। ऐसे में चने की खेती में रुचि रखने वाले किसानों के पास इस फसल की बुवाई के लिए अभी पर्याप्त समय है। कई किसान इसकी पछेती बुवाई भी करते हैं। लेकिन पछेती बुवाई में अधिक खाद व उर्वरक डालने पड़ते हैं जिससे लागत अधिक बैठती है। वहीं मौसम अनुकूल होने के बावजूद भी पछेती बुवाई से उत्पादन कम ही प्राप्त होता है। अनुमान के मुताबिक पछेती चने के उत्पादन में 30 से 40 प्रतिशत की कमी आ जाती है। इसलिए किसानों चाहिए कि चने की सही समय पर बुवाई करें ताकि कम लागत में बेहतर उत्पादन प्राप्त किया जा सके।
चने के लिए लवण व क्षार रहित, अच्छे जल निकास वाली भूमि उपयुक्त रहती है। चने के पौधे के बेहतर विकास के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7 के बीच होना चाहिए। किसानों को बीजों से पहले बीज के अंकुरण का प्रतिशत अवश्य जान लेना चाहिए ताकि सही बीज की बुवाई करना संभव हो सके। इसके लिए 100 बीजों को पानी में आठ घंटे तक भिगो दें। इसके बाद बीजों को पानी से निकालकर गीले तौलिये या बोरे में ढँक कर साधारण कमरे के तापमान पर रख दें। 4 से 5 दिन बाद अंकुरित बीजों की संख्या गिन लें। यदि अंकुरित बीजों की संख्या 90 से अधिक है तो बीजों का अंकुरण प्रतिशत ठीक है। यदि इससे कम है तो बुवाई के लिए उच्च गुणवत्ता के बीज का ही उपयोग करें, या फिर बीज की मात्रा को बढ़ा दें।
चने के बीजों की बुवाई से पहले बीज को उपचारित जरूर करें। बीजों को उपचारित करने के लिए बीजों को राइजोबिया कल्चर व पीएसबी कल्चर से उचारित करना चाहिए और इसके बाद ही बीजों की बुवाई करनी चाहिए। बीज उपचारित करने के लिए आवश्यकतानुसार पानी गर्म कर लें। फिर इसमें गुड़ घोले। अब इस गुड़ वाले पानी के घोल को ठंडा होने के बाद इसमें अच्छी तरह से कल्चर को मिला दें। इसके बाद कल्चर मिले घोल से बीजों को उपचारित करें। फिर बीजों को छाया में सुखने के लिए रखें और इसके बाद जल्दी ही बीजों की बुवाई कर दें। बीज उपचार करने में सबसे पहले बीजों को कवकनाशी से उपचारित करें, इसके बाद कीटनाशी से और सबसे अंत में राइजोबियम कल्चर से बीजों को उपचारित करें।