नई दिल्ली: हम भारतीय हैं ऐसे में बचपन से हम यह सुनते और पढ़ते आए हैं की गाय हमारी माता है l पर क्या आप यह जानते हैं कि जिस गाय को हम माता का दर्जा देते हैं और जो हमारे लिए पूजनीय है उसकी कुछ भारतीय प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है l कौन इनके लिए जिम्मेदार है कैसे हम इन्हें विलुप्त होने से बचा सकते हैं l सरकार की नीतियां पशुपालन विभाग की अनदेखी गैर सरकारी संस्थाओं की बेरुखी घटती चारागाह भूमि और किसानो की दूध के उत्पादन के प्रति बढ़ती लालसा इत्यादि l आज ऐसी ही एक गाय की विलुप्त होती प्रजाति के बारे में हम बात करने वाले हैं l
महाराष्ट्र से गवलाऊ प्रजाति की गाय विलुप्त होने के कगार पर है। गवलाऊ प्रजाति की गाय का दूध काफी पौष्टिक होता है तथा गाय भी दिखने में अच्छी होती है। इस प्रजाति की गाय लुप्तप्राय होने के कगार पर होने से वर्धा जिले के कारंजा घाडगे तहसील के हेटीकुडी गांव में प्रजनन व पालन पोषण केंद्र शुरू किया गया था।
देश आजाद होने से पूर्व अंगरेजों ने सन् १९३० के आसपास कारंजा घाडगे तहसील के हेटीकुन्डी के जंगल में पूरे भारत वर्ष में गाय की गवलाऊ प्रजाति के संरक्षण एवं विलुप्त होने से बचाने के लिए हेटीकुन्डी फार्म खोला गया। ऑलिवर व थोरेनी नामक अंगरेजों ने गवलाऊ गाय को बचाने के लिए यह कदम उठाए।
पूर्व में गवलाऊ गाय ने जंगलों एवं चारागाह भूमि के सहारे अपना अस्तित्व बचाए रखा था। आज शासकीय एवं राजनीतिक अपेक्षा व व्यक्तिगत स्वार्थों के चलते यह गोवंश धीरे-धीरे वर्धा जिले से लुप्त होने के कगार पर है। १० प्रतिशत से भी कम जनसंख्या गवलाऊ प्रजाति की बची हैं।छिंदवाड़ा जिले से लेकर आर्वी, आष्टी व कारंजा तहसील के गांवों में अनेक साल से गवलाऊ गोवंश की नस्ल की जनसंख्या काफी कम नजर आती है ।
गवलाऊ गाय की प्रजाति के नष्ट होने के पीछे उनका वन-परिवेश व घासों की प्रजाति का नष्ट होने के साथ-साथ से दूध देने की क्षमता में आई कमी के कारण सामान्य किसान इसे पाल नहीं सकता दूसरी और विलायती एवं हाइब्रिड गायों के प्रति किसानों का बढ़ता रुझान। यह कुछ प्रमुख कारण हैं इस प्रजाति के लुप्त होने के कगार पर पहुंचने की।स्वयंसेवी संस्थाएं व व्यक्तियों को निस्वार्थ भाव से आगे आना होगा एवं सरकारी कर्मचारी एवं वेटरनरी डॉक्टर को आगे आकर इस नस्ल को बचाने के लिए सरकार को पाबंद करना होगा ताकि समय रहते गाय की इस प्रजाति को संरक्षित कर एवं जनसंख्या बढ़ाई जा सके।उल्लेखनीय है कि गाय की यह प्रजाति एक शुद्ध भारतीय नस्ल है, जिसे मुख्य रूप से मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में पाला जाता है. वहीं मध्य प्रदेश में बालाघाट, छिंदवाड़ा, दुर्ग और राजनांदगांव जिले, जबकि महाराष्ट्र के वर्धा और नागपुर जिले में पाला जाता हैl गाओलाओ गाय को आर्वी और गॉलगानी गाय के नाम से भी जाना जाता हैi इस नस्ल के मवेशियों की कद काठी अच्छी होती हैl शरीर पर सफेद से सलेटी रंग होता हैl सिर लंबा, कान के आकार मध्यम और सींग छोटे होते हैं. यह गाय प्रति ब्यांत में औसतन 470-725 लीटर दूध देती हैl वहीं दूध में 4.32 प्रतिशत वसा की मात्रा होती हैl प्रथम ब्यांत के समय औसत आयु 4 से 4.5 वर्ष होती हैl इस नस्ल का ब्यांत अंतराल 1 से 1.25 वर्ष होता हैl
गाय की इस विलुप्त होती प्रजाति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह गाय ज्यादा से ज्यादा तापमान में रह लेती हैं l आज जरूरत है अंगरेजों के बनाए हेटीकुन्डी फार्म की दुर्दशा को सुधारने की एवं उचित वित्तीय सहायता प्रदान करने की और जिस उद्देश्य से इसकी स्थापना की गई थी उस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए प्रशिक्षित कर्मचारियों द्वारा कार्य करने की l सरकार की गलत नीतियों एवं शासन की अपेक्षा के चलते भारत का यह एकमात्र गवलाऊ गाय प्रजनन केंद्र अपना मकसद पूर्ण करने में असमर्थ नजर आता है।
श्री परसाई, राधाकृष्ण बजाज, सेवाग्राम आश्रम के पारेख, पारनेरकर, पशुवैद्यकीय अधिकारी मार्किन टिटायनस व हर्ष बहादुर शाही इन धर्मात्माओं ने महात्मा गांधी जी के सानिध्य में गवलाऊ गाय के उन्नयन में अपना जीवन लगा दिया।गांधीवादी संस्थाओ को चाहिए कि गिर, हरियाणवी गाय के पालन के साथ गवलाऊ गाय को भी महत्व देवे ताकि वास्तव में हम महात्मा गांधी जी के सपनों को साकार कर सके । ऐसा नहीं है कि लोगों ने इस प्रजाति को संरक्षित करने एवं संवर्धन करने के लिए प्रयास नहीं किए l पूर्व में श्री गुप्ते ( जिला पशुसंवर्धन अधिकारी १९७३) श्री वानखेडे (जिप स.अ. १९८४) व श्री कदम (१९९० ) गवलाऊ गाय के उन्नयन में विशेष कार्य किए।
जिसके फल स्वरुप १९९० तक घास विकास व हैबिटेट (गवलाऊ गाय का) रक्षण का कार्य होता रहा उनका योगदान सदैव सराहनीय है l
हमारे पास इस प्रजाति के विकास का इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार रहने के बाद भी हम उसे खो रहे हैंl यह चिंतित करने वाला है। कम खर्च के औसतन ५ लीटर दूध देने वाली व भारत वर्ष में सब से अच्छे खेती लायक बैल देने वाली इस प्रजाति का संरक्षण एवं संवर्धन करने की आवश्यकता है।
हर राज्यों में गौ सेवा आयोग का गठन करना होगा और आयोग को यह सुनिश्चित करना होगा की ऐसी नीतियां बनाई जाए जिससे गायों की विलुप्त होती प्रजातियों को संरक्षित किया जा सके एवं उनका संवर्धन किया जा सकेl गोसेवकों गौशालाओं भामाशाहों और आम लोगों को भी आगे आना होगा केवल सरकारी तंत्र पर निर्भर रहकर इन विलुप्त होती गायो की प्रजातियां को संरक्षित एवं उनका संवर्धन नहीं किया जा सकता l
अमन सैनी (पोस्ट ग्रेजुएट – वेटरनरी एजुकेशन एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट, जयपुर, राजस्थान)