नई दिल्ली: रासायनिक उर्वरकों के दुष्परिणामों से अभी तक लगभग हम सभी वाकिफ हो चुके हैं। इन उर्वरकों की वजह से मिट्टी की संरचना में विपरीत बदलाव आ जाता है। इससे मिट्टी में जीवांश की मात्रा कम हो जाती है। रासानिक उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल और गलत फसल चक्र की वजह से जमीन बंजर हो जाती है। इसके अलावा रसायनिक खाद काफी महंगे भी होते हैं। इससे किसानों के खर्चे भी बढ़ जाते हैं। ऐसे में किसानों को वो तरीके अपनाने चाहिए जिनमें मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़े और ज्यादा खर्च भी ना हो। मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए हरी खाद एक अच्छा विकल्प साबित हो रही है। इसलिए आजकल काफी किसान इसे अपना रहे हैं।
अगर हरी खाद के कुछ प्रमुख फायदों की बात करें तो इसकी वजह से नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थ मिट्टी में अच्छी तरह से मिलते हैं। इससे मिट्टी की संरचना में काफी सुधार होता है।
हरी खाद की वजह से फसल, खरपतवारों के मुक़ाबले तेजी से वृद्धि करती है। दूसरे शब्दों में इस खाद की वजह से फसल में विपरीत परिस्थतियों में भी उगने की क्षमता विकसित होती है।
हरी खाद बनाने का खर्च बहुत कम और लाभ ज्यादा है।
हरी खाद के इस्तेमाल से मिट्टी भुरभुरी होती है। साथ ही उसकी जल धारण क्षमता में वृद्धि, अम्लीयता और क्षारीयता में सुधार होता है।
हरी खाद के प्रयोग से मृदा में सूक्ष्मजीवों की क्रियाशीलता बढ़ जाती है। इससे मृदा की उर्वरा शक्ति और उत्पादन क्षमता बढ़ती है।
हरी खाद के उपयोग से मृदा जनित रोगों में कमी देखने को मिल रही है।
यह खरपतवारों की वृद्धि रोकने में भी सहायक हैं।
इसके अलावा, हरी खाद के उपयोग से रासायनिक उर्वरकों पर आने वाली लागत को कम किया जा सकता है।