नई दिल्ली: लौकी, जिसे कई स्थानों पर घीया भी कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण सब्जी है जो भारतीय व्यंजनों में काफी लिकप्रिय है। बागवानी फसलों की खेती करने वाले किसान इस फसल की खेती कर अच्छा खासा मुनाफा कमाते हैं। लेकिन बाकी फसलों की तरह इस फसल पर भी कई कीटों का हमला अक्सर होता रहता है। ऐसे में समय पर इन कीटों की पहचान करना व इनपर नियंत्रण करना बहुत आवश्यक है। क्योंकि अगर सही समय पर इनकी पहचान ना की जाए तो ये कीट कभी कभी पूरी फसल को बर्बाद कर देते हैं और किसान की सारी लागत बर्बाद हो जाती है। ये रोग इस प्रकार हैं:
लौकी की बोरर (Lauki Borer): यह कीट लौकी के पौधों को काटकर अंदर घुस जाता है, जिससे पौधों को नुकसान होता है। इसकी पहचान करना बहुत मुश्किल हो सकता है, क्योंकि यह पौधों के अंदर छुपा रहता है। इसके खिलाफ सुरक्षा के लिए जल, खाद्य और प्राकृतिक शत्रुपक्षियों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
लौकी बीटल (Lauki Beetle): यह कीट लौकी के पत्तों को खाती है और पौधों को दुर्बल बना सकती है। इससे पौधे सूख सकते हैं और पत्तियों में पीलापन आ सकता है। इसके खिलाफ इनफेस्टेशन को नियंत्रित करने के लिए नीम तेल और नीम की पत्तियों का उपयोग किया जा सकता है।
लौकी फ्रूट फ्लाई (Lauki Fruit Fly): यह कीट लौकी के फलों को प्रभावित करती है, जिससे उनकी गुणवत्ता पूरो तरह से खराब हो सकती है। इस कीट की वजह से फलों के छिद्रों में मेंजीब का उत्थान हो सकता है और फल गिर सकते हैं। इससे बचाव के लिए प्राकृतिक शत्रुपक्षियों, धूप, पंखेवाले और ब्रेकोनिड्स को बड़ी मात्रा में प्रोत्साहित करना फ़ायदेमंद हो सकता है।
लौकी ब्लाइट (Lauki Blight): यह रोग लौकी के पौधों को प्रभावित करता है और पौधों की मौत का कारण बन सकता है। इससे बचाव के लिए स्वच्छता और स्वस्थ बुआई प्रणाली का चयन करना बहुत ही महत्वपूर्ण है।
इन तमाम कीटों को देखते हुए लौकी की खेती करने वाले किसानों को चाहिए कि वे अपनी फसलों की सुरक्षा के लिए नियमित रूप से फसल की स्वास्थ्य स्थिति का मूल्यांकन करें और जरूरत के अनुसार कीटनाशकों का इस्तेमाल करें। साथ ही, प्राकृतिक रूप से उपायोगी शत्रुपक्षियों का भी सहारा लें। इससे न केवल फसल की उपज में वृद्धि होगी, बल्कि पर्यावरण की सुरक्षा भी होगी।