कृषि पिटारा

अबोरीकल्चर का महत्व

आज हमारा देश तेजी से विकास कर रहा है। जल्दी ही हम विकासशील देश की श्रेणी से निकल कर हम विकसित देशो की पंक्ती में खडे़ होने वाले है। जहाँ आज हमारे देश में हर गाँव को शहरों को महानगरों से फोर लेन या सिक्स लेन वाली सड़को द्वारा जोड़ा जा रहा है ताकि परिवहन को बढ़ावा दिया जा सके और समय की बचत की जा सके। आज सड़के विकास का पर्याय बन चुकी है ऐसा कहने से कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी। बड़ी सड़के जैसे फोर लेन एवं सिक्स लेन सड़को का चलन काफी तेजी से बढ़ा है जिसके फलस्वरुप  किसानो की जमीनों का, चारागाह जमीनों, वनों की जमीनों का अधिकरण बढ़ा है। साथ ही पेड़ों की कटाई भी बढ़ी है जिसके चलते वन क्षैत्र पर दबाव बढ़ा है। ऐसे में अबोरीकल्चर (तइवतपबनसजनतम ) का महत्व बढ़ जाता है।

अबोरीकल्चर (तइवतपबनसजनतम ) का मतलब होता है वृक्षों की एवं झाड़ियों को रोपित करना, हस्तांतरित करना एवं उनकी देखभाल करना। साथ ही उनको सही तरिके से लगाना जिससे वृक्षों से छायाँ मिल सके और क्षैत्र की सुन्दरता को बढ़ाया जा सके। पहले लोग सफर करते थे मंजिल या तय मुकाम तक पहँुचने के लिए। परन्तु समय के साथ बदलाव भी आया है। कुछ लोग लांग ड्राईव (लम्बी दुरी) के लिए जाना पसंद करते है अगर सड़के लम्बी चौड़ी, सुविधा जनक एंव हरियाली एवं फूलों की झड़ियों से सुसज्जित हो तो सफर का आनन्द अलग ही आता है। आज के युग में यह भी एक मनोरंजन का एक साधन बन गया है। ऐसे में सड़कों के साथ अबोरीकल्चर (तइवतपबनसजनतम ) एवं स्ंदकेबंचपदह की जरुरत महसूस की जाने लगी।                                                                           

इसके लिए प्त्ब् ;प्दकपंद त्वंक ब्वदहतमेेद्ध की स्थापना की गई और उसके बाद तो अबोरीकल्चर (तइवतपबनसजनतम ) एवं स्ंदकेबंचपदह को सड़को की गुणवता के साथ जोड़ा जाने लगा और ज्यादा महत्व दिया जाने लगा। इसके साथ ही ।अमदनम च्संदजंजपवद (एक पंक्ति/ दो पंक्तियों/तीन पंक्तियों मंे) रोपित करने का चलन बढ़ा है। पहली पंक्ति मंे छोटे झाड़ीनुमा पौधे 3-3 मीटर की दूरी पर लगाये जाते है। दूसरी पंक्ति मंे मध्यम ऊँचाई वाले वृक्ष 6-6 मीटर की दूरी पर लगाये जाते है। तीसरी पंक्ति मंे बडे़ वृक्ष 12-12 मीटर की दूरी पर लगाये जाते है। सड़क के मध्य मंे प्लान्टर बना कर झाड़ीनुमा पौधों जैसे कनेर, टिकोमा, विभिन्न रंगों वाली बोगनवेल इत्यादि पौधांे को 3 मीटर की दूरी पर (एक पंक्ति/दो पंक्ति) क्रमबद्ध तरिके से लगाया जाता है जिसे डमकपंद च्संदजंजपवद कहते है। मिडियन में एक ही किस्म के पौधे कम से कम 200 मीटर की दूरी तक लगाये जाने चाहिए।जैसे की सफेद रंग, पीले रंग, लाल रंग, गुलाबी रंग वाली बोगनवेल, कनेर की प्रत्येक किस्मांे का 200 मीटर की दूरी तक एक ही पट्टा होना चाहिए। मिडियन में पौधें लगाने से मुख्य रुप से निम्न लाभ होते है, पहला गाड़ियों के प्रकाश को यह सड़कांे की दूसरी ओर जाने से रोकता है जिससे दूसरी ओर वाले वाहन चालक की आँखांे मंे रोशनी नहीं पड़ती है और इससे रात में दुर्घटना होने की सभांवना कम हो जाती है। दुसरा यह जीवंत बाड़ बंदी काम भी करती है । तीसरा सड़क के सौन्दर्यकरण में चार चांद लगाती है। यह धूल मिट्टी एवं वायु प्रदूषण को रोकने का कार्य भी करती है और जैसा की हम सब जानते है कि वृक्षांे एवं झाड़ियों को श्रृख्ंालावृत तरिके से लगा कर धूल मिट्टी एवं वायु प्रदूषण के तत्वों को रोका एवं अवशोषित किया जाता है। दिन प्रतिदिन वाहनो के आवागमन से होने वाले ध्वनि प्रदूषण को भी यह काफी हद तक कम करते है।                     

 सड़क के दोनों तरफ मिट्टी के ढलान पर आमतोर पर दुब घास लगाई जाती है जिससे वर्षा होने पर मिट्टी के कटाव को रोका जा सके।  वृक्षांे का चयन करने के लिए कुछ बातों को ध्यान मंे रखा जाता है जैसे कि जलवायु की अनुकुलता, बढवार की तीव्रता, कम रखरखाव की आवश्यकता, आर्थिक एवं सामाजिक लाभ, भविष्य में वृक्ष का आकार (फैलाव) एवं ऊँचाई, पत्तो एवं फूलो के रंग को ध्यान में रखकर, वृक्षांे मंे होने वाले पतजड़ की ऋतु  को ध्यान मंे रखते हुए, मिट्टी एवं पानी की विधुत चालकता (म्ब्) एवं पीच (च्भ्) मानक की रिड़िग को देखते हुए (जैसे कि अम्लिय, क्षारियता,) को देखते हुए वृक्षों का चयन किया जाता है। उदाहरण के लिए शुष्क एवं सुखे क्षैत्र दक्षिण हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र एवं मध्य भारत के मैदानी क्षैत्रों मंे मुख्य रुप से नीम, पलास, अमलतास, शिशम, पिपल, बरगद, बकायन नीम, करंज, जामुन, ईमली, काशीद, सप्तपर्नी, बुश, रोहिड़ा आस्ट्रेलियन बबूल इत्यिादि प्रकार के पेड़ लगा सकते है। क्षारिय क्षैत्रों मंे आस्ट्रेलियन बबूल, करंज, ईमली, अर्जुन, केजुराईना, काशीद, पार्किनसोनिया इत्यिादि के पेड़ लगाये जा सकते है।

पेड़ लगाने के लिए सर्वे करना, क्षैत्र की साफ सफाई, खड्डे खोदना ( मिडियन के लिए 2ग्2ग्2 फुट एवं ऐवन्यु के लिए 1ग्1ग्1 मीटर के खड्डे), बाड़ बंदी का सामान खरीदना ये सभी कार्य जनवरी से मार्च माह में कर लेने चाहिए। खड्डे भरने की सामग्री एकत्रित करना, खड्डे भरने का कार्य, वृक्षंों को खरीदना एवं नर्सरी में रखना यह कार्य अप्रेल से जून माह तक कर लेने चाहिए। मिडियन के पौधांे की ऊँचाई 3 फुट से ज्यादा होनी चाहिए। वहीं ऐवन्यु के वृक्षेांे की ऊँचाई 6 फुट से ज्यादा होनी चाहिए और तने की मोटाई अंगुठे के आकार की होनी चाहिए। जुलाई अगस्त माह में वृक्षा रोपण का कार्य कर देना चाहिए तथा दूब घास मानसून आने से पूर्व (मई -जून) माह मंे लगानी चाहिए।

सभी रोपित पौधांे का सितम्बर से लेकर मार्च तक रखरखाव कार्य जैसे कि घास निकालना, निराई गुड़ाई करना, कटाई छँटाई करना इत्यादि। मिडीयन के पौधों की ऊँचाई 1.5 से 2 मीटर तक रखी जानी चाहिए। दूसरे वर्ष जुलाई अगस्त में कुल रोपित पौधों का 20 प्रतिशत संख्या मरणोपरांत बदली जाती हैं। चौथे वर्ष जुलाई अगस्त में कुल रोपित पौधों का 10 प्रतिशत संख्या मरणोपरांत बदली जाती हैं।

हमारे देश में कटाई छँटाई मुख्य रुप से दिसम्बर से जनवरी एवं मई से जून माह तक की जाती है। मिडियन के पौधों मंे फूलों का खिलना मुख्य रुप से फरवरी से जून एवं सितम्बर से दिसम्बर तक रहता है। वैसे जरुरत पडने पर कटाई छँटाई कभी भी की जा सकती है। मिडियन में पौधे लगाने से ज्यादा महत्वपूर्ण ह,ै पौधे कहाँ नहीं लगाने चाहिए, इसकी जानकारी होना आवश्यक है। मिडियन के जिस क्षैत्र मंे पौधें नहीं लगायंे जाते है उसे वृक्षा रोपण निषेधित क्षैत्र (नो प्लानटेंशन जोन) कहते है। उदाहरण के लिए मिडियन में रास्ता खुलना (मिडियन कट), ग्रेड सेपरेटर से कम से कम 5 मीटर की जगह पर कोई पौधा नहीं लगाना चाहिए क्योंकि इससे ट्रेफिक का आवागमन दिखाई नहीं देता है जिससे दुर्घटना होने की सम्भावना हमेशा बनी रहती है। मीडियन की चौड़ाई 1.5 मीटर से कम है तो उस पर सिर्फ दूब घास लगाये। 1.5 से 3 मीटर तक की चौड़ाई वाले मिडियन मंे एक पंक्ति मंे पौध लगाये इस प्रकार लगभग 1 किलोमीटर लम्बाई वाले मिडियन मंे 333 पौधंे आने चाहिए। इसी प्रकार से 4.5 से 5 मीटर की चौड़ाई वाली मिडियन मंे दो पंक्तियाँ झाँडियांे की लगाये इसमें लगभग 1 किलोमीटर लम्बाई वाले मिडियन मंे 666 पौधंे आने चाहिए।

सड़के विकास का पर्याय है। परन्तु विकास के साथ पर्यावरण का ध्यान भी रखना महत्वपूर्ण है। ऐेसे मंे  अबोरीकल्चर (।तइवतपबनसजनतम ) का महत्व काफी बढ़ जाता है। साथ ही अबोरीकल्चर (।तइवतपबनसजनतम ) विशेषज्ञ की मांग भी देश मंे तेजी से बढ़ रही है। इसके लिए कृषि स्नातक या बागवानी मंे स्नातक डीग्री के साथ कम से कम 5 वर्ष का प्रायोगिक अनुभव होना आवश्यक होता है। इस क्षैत्र मंे युवाआंे के लिए असीम रोजगार की  सम्भावनायंे है। ऐसे मंे आज का युवा इस क्षैत्र से जुड़कर अबोरीकल्चरीस्ट (।तइवतपबनसजनतपेज ) अबोरीकल्चर सलाहकार (।तइवतपबनसजनतम बवदेनसजंदज ) के रुप मंे कार्य कर 20000 से 80000 रुपये हर माह कमा सकता है।  इसमें काम के साथ पैसा, एवं कार्य संतुष्टि भी व्यक्ति को प्राप्त होती है। 

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