कृषि पिटारा

राजमा की उन्नत खेती से किसानों के लिए खुल रहे हैं आर्थिक उन्नति के द्वार

नई दिल्ली: राजमा अब भारतीय रसोई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। खासकर उत्तर भारत में लोग राजमा चावल को अपना पसंदीदा भोजन मानते हैं। इसके चलते इसकी मांग बढ़ती जा रही है और इसकी खेती देश के मैदानी इलाकों में भी की जा रही है। राजमा की खेती किसानों के लिए एक बड़ा और आर्थिक लाभकारी क्षेत्र साबित हो रहा है। इसकी उन्नत किस्मों की खेती करके किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं। लेकिन इससे पहले कि खेती का आरंभ हो, किसानों को यह जानना चाहिए कि इसकी खेती कैसे की जाती है और अच्छी कमाई के लिए कौन सी उन्नत किस्मों की खेती करनी चाहिए।

राजमा की खेती से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए शुरूआती बीजों की गुणवत्ता का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है। अच्छी नस्ल से अधिक पैदावार होती है, जिससे किसानों की आय में वृद्धि होती है। राजमा की खेती के लिए किसान राजमा की उन्नत किस्मों का इस्तेमाल कर सकते हैं, जैसे – कि पी.डी.आर-14 (उदय), मालवीय-137, वी.एल.-63, अम्बर (आई.आई.पी.आर-96-4), उत्कर्ष (आई.आई.पी.आर-98-5) और अरूण। इनके उपयोग से किसान अधिक उत्पादन कर सकते हैं और उन्हें बढ़िया लाभ मिल सकता है।

राजमा की बुवाई का सही समय बहुत महत्वपूर्ण है। उत्तर भारत में अक्टूबर के तीसरे और चौथे सप्ताह में राजमा की बुवाई का सही समय है, जबकि पूर्वी भारत में नवंबर के पहले सप्ताह में बुवाई की जाती है। इसके बाद बुवाई करने से पहले किसानों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि खेत में पर्याप्त नमी हो। राजमा की खेती के लिए दोमट और हल्की दोमट मिट्टी उपयुक्त हैं। इसकी खेती के लिए खेत को दो से तीन बार कल्टीवेटर से जुताई करके तैयार किया जाता है। खासकर बुवाई के समय में, खेत में पर्याप्त नमी बनी रहनी चाहिए ताकि उपज में वृद्धि हो सके। बुवाई से पहले बीजों का उपयोग ध्यानपूर्वक किया जाना चाहिए ताकि वे पूरी तरह से नम हो सकें।

राजमा की खेती में उच्च नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है। प्रति हेक्टेयर के लिए 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फेट और 30 किलोग्राम पोटाश का छिड़काव करने की आवश्यकता होती है। समय पर खेत में यूरिया का छिड़काव करना भी महत्वपूर्ण है ताकि उच्च उत्पादन हो सके। यही नहीं, निराई-गुड़ाई का ध्यान रखते हुए राजमा की बुवाई करना बहुत महत्वपूर्ण है। निराई गुड़ाई करने से पौधों को अच्छा सहारा मिलता है और उच्च प्रदर्शन वाले पौधों का निर्माण हो सकता है। इसके अलावा खेत में 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर गंधक का छिड़काव करने से बेहतरीन परिणाम मिलते हैं। फल लगने के साथ ही खर-पतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमेशलीन का छिड़काव करना भी आवश्यक है।

राजमा की खेती उन किसानों के लिए एक नए आय का स्रोत बन सकती है जो उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल करके और सही विधियों का अनुसरण करके इसमें सफलता प्राप्त करते हैं। आधुनिक खेती की प्रवृत्ति में कदम बढ़ाते हुए, राजमा की खेती न केवल किसानों को बेहतर आय प्रदान कर सकती है बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा में भी मदद कर सकती है।

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