नई दिल्ली: सोयाबीन प्रोटीन का एक बहुत ही अच्छा स्रोत है। इसमें 40-45 प्रतिशत प्रोटीन तथा 20-22 प्रतिशत तक तेल की मात्रा उपलब्ध होती है। इसलिए बाज़ार में सोयाबीन की अच्छी मांग है। सोयाबीन की खेती मैदानी क्षेत्रों में अभी हाल के वर्षो में ही शुरू हुई है। इसकी खेती के जरिये तमाम किसान बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं। अगर आप भी सोयाबीन की खेती करने के इच्छुक हैं तो बेहतर होगा कि शुरुआत में ही आप उन तमाम कारकों के बारे में जान लें, जो सोयाबीन की पैदावार को प्रभावित करते हैं।
मैदानी क्षेत्रों में सोयाबीन की बुआई का उपयुक्त समय 20 जून से 10 जुलाई तक है। सोयाबीन की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए यह बेहद ही आवश्यक है कि आप इसकी उन्नत किस्मों का चुनाव करें। पी.के. 472, पी.एस. 564, पी.के. 262, जे.एस. 2, पूसा 20 और एम.ए.यू.एस. 47 सोयाबीन की कुछ अच्छी किस्में हैं। लेकिन, बेहतर होगा कि इनमें से किसी भी किस्म का चुनाव करने से पहले अपने क्षेत्र की उन्नत किस्मों के बारे में अवश्य जानकारी हासिल करें। सोयाबीन की बुआई के लिए 75-80 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से बीज का उपयोग करें। बीजों को बोने से पहले थीरम और कार्बेन्डाजिम से शोधित कर लें। ऐसे खेतों में जहां सोयाबीन पहली बार या काफी समय बाद बोई जा रही हो, कल्चर का प्रयोग अवश्य करें।
सोयाबीन की बुआई 45 से.मी. की दूरी पर लाइनों में करें। बीज से बीज की दूरी 3 से 5 से.मी. रखें और इन्हें 3 से 4 से.मी. से अधिक गहरा नहीं बोएँ। उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के परिणाम के आधार पर करें। यदि मृदा परीक्षण नहीं कराया गया है तो उन्नतिशील प्रजातियों के लिए नत्रजन 20 कि.ग्रा., फॉसफोरस 80 कि.ग्रा तथा पोटोश 40 कि.ग्रा. प्रति हे. की दर से प्रयोग करें। खाद की पूरी मात्रा अन्तिम जुताई में हल के पीछे 6-7 से.मी. की गहराई पर डालें। बुआई के 30 से 35 दिनों के बाद सोयाबीन का एक या दो पौध उखाड़कर देख लें कि जड़ो में ग्रन्थियां पड़ी हैं या नहीं। यदि ग्रन्थियां नहीं पड़ी हों तो 30 कि.ग्रा. प्रति हे. की दर से फूल आने के एक सप्ताह पहले नत्रजन का प्रयोग करें।
आपको बता दें कि सोयाबीन एक वर्षा आधारित फसल है। इसे समुचित मात्रा में जल की आवश्यकता होती है। इसलिए यदि वर्षा न हो तो फूल एवं फली आने पर सिंचाई ज़रूर करें। साथ ही साथ बेहतर उपज के लिए खेत में जल–निकास का भी अच्छा प्रबन्ध रखें।