नई दिल्ली: गायों के मामले में साहीवाल भारत की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति है। हमारे देश में यह गाय मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, और मध्य प्रदेश में पाई जाती है। यह गाय सालाना दो से तीन हजार लीटर तक दूध देती हैं, जिसकी वजह से दूध का व्यवासाय करने वाले लोग इस नस्ल की गाय को काफी पसंद करते हैं। यह गाय एक बार मां बनने पर करीब 10 महीने तक दूध देती है। अच्छी देखभाल करने पर यह कहीं भी रह सकती है।
साहीवाल नस्ल की गाय का शरीर सामान्यतः लंबा और मांसल होता है। इसकी टांगें छोटी, खाल चिकनी व पूंछ पतली और छोटी होती है। ढीली चमड़ी, छोटा सिर व छोटे सींग साहीवाल गाय की अन्य प्रमुख विशेषताएं हैं। यह गाय लाल और गहरे भूरे रंग की होती है। कभी-कभी इसके शरीर पर सफेद चमकदार धब्बे भी देखने को मिलते हैं। इस नस्ल की प्रौढ़ गाय का औसतन भार लगभग 4 क्विंटल तक होता है।
साहीवाल नस्ल की गाय के दूध में पर्याप्त वसा मौजूद होता है। यह विदेशी गायों की तुलना में कम दूध देती है, लेकिन इसपर खर्च भी काफी कम होता है। साहीवाल की खूबियों और उसके दूध की गुणवत्ता के चलते वैज्ञानिक इसे सबसे अच्छी देसी दुग्ध उत्पादक गाय मानते हैं। इनकी कम होती संख्या से चिंतित वैज्ञानिक ब्रीडिंग के जरिये देसी गायों की नस्ल सुधार कर उन्हें साहीवाल में बदलने पर जोर दे रहे हैं, जिसके तहत देसी गाय की पांचवीं पीढ़ी पूर्णत: साहीवाल में बदलने में कामयाबी हासिल हुई है।
इस नस्ल की गायों को जरूरत के अनुसार ही खुराक देना बेहतर होता है। अगर आप इस नस्ल के गायों को फलीदार चारा खिलाने जा रहे हैं तो पहले उसमें तूड़ी या अन्य चारा ज़रूर मिला लें। इससे उनमें अफारा या बदहजमी की समस्या उत्पन्न नहीं होगी। इस नस्ल की गाय को आप चारे के रूप में कई अनाज दे सकते हैं। जैसे – मक्की, जौ, ज्वार, बाजरा, गेहूँ, जई, चोकर, चावलों की पॉलिश, मक्की का छिलका, सरसों और अलसी इत्यादि। हरे चारे के रूप में आप इस नस्ल के गायों को बरसीम, लूसर्न, लोबिया, ज्वार, मक्की, जई, बाजरा, हाथी घास और सुडान घास इत्यादि दे सकते हैं।
किसान मित्रों, किसी भी पालतू पशु के अच्छे प्रदर्शन के लिए अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थिति बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। पशुओं को भारी बारिश, तेज धूप, बर्फबारी, ठंड और परजीवी से बचाने के लिए शैड की आवश्यकता होती है। इसलिए यह सुनिश्चित करें कि चुने हुए शैड में साफ हवा और पानी की सुविधा मौजूद हो। पशुओं की संख्या के अनुसान भोजन के लिए जगह बड़ी और खुली होनी चाहिए, ताकि वे आसानी से भोजन कर सकें।
पालतू पशुओं में अक्सर विभिन्न रोगों के संक्रमण का खतरा बना रहता है। इसलिए पशुओं को विभिन्न रोगों से बचाने के लिए समय-समय पर उनकी निगरानी करते रहना चाहिए। पशुओं में जैसे ही रोगों के आरंभिक संकेत मिलें, उनके उचित उपचार का प्रबंध करें। इन सावधानियों को बरत कर आप निश्चित रूप से साहीवाल नस्ल की गायों के स्वास्थ्य की उचित देखभाल कर पाएंगे। इससे आपको अधिक दुग्ध उत्पादन में सहायता मिलेगी।