कृषि पिटारा

भारत से चीनी निर्यात की रफ्तार धीमी, 6 महीने में उत्पादन में 18% की गिरावट

नई दिल्ली: भारत, जो दुनिया के प्रमुख चीनी उत्पादक और निर्यातक देशों में शामिल है, मौजूदा मार्केटिंग वर्ष 2024-25 में अब तक 2.87 लाख टन चीनी का निर्यात कर चुका है। यह जानकारी अखिल भारतीय चीनी व्यापार संघ (AISTA) द्वारा जारी की गई है। AISTA के अनुसार, 8 अप्रैल 2025 तक भारत ने कुल 2,87,204 टन चीनी का विदेशों में निर्यात किया है, जिसमें सबसे बड़ा आयातक देश सोमालिया रहा, जिसने अकेले 51,596 टन चीनी मंगवाई है।

यह आंकड़े उस समय सामने आए हैं जब केंद्र सरकार ने 20 जनवरी 2025 को चालू वर्ष के लिए चीनी निर्यात को मंजूरी दी थी। सरकार ने इस वर्ष के लिए चीनी निर्यात की अधिकतम सीमा 1 मिलियन टन तय की है, जिसके तहत अब तक करीब 29% चीनी निर्यात हो चुकी है।

AISTA के अनुसार, 8 अप्रैल तक सोमालिया के बाद सबसे ज्यादा चीनी अफगानिस्तान (48,864 टन), श्रीलंका (46,757 टन), लीबिया (30,729 टन), जिबूती (27,064 टन), संयुक्त अरब अमीरात (21,834 टन), तंजानिया (21,141 टन), बांग्लादेश (5,589 टन) और चीन (5,427 टन) को निर्यात की गई है। इसके अलावा, 17,837 टन चीनी फिलहाल लोडिंग की प्रक्रिया में है।

हालांकि चीनी का निर्यात अभी तक अपेक्षाकृत धीमी गति से हो रहा है, लेकिन AISTA को उम्मीद है कि अगले एक महीने में इसमें तेज़ी देखने को मिल सकती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का असर चीनी की कीमतों पर भी पड़ सकता है, क्योंकि इथेनॉल—जो गन्ने से ही बनता है—परिवहन ईंधन में एक अहम भूमिका निभाता है। वर्ष 2023-24 के दौरान भारत से चीनी का निर्यात प्रतिबंधित था, जिससे इस साल की निर्यात नीति को लेकर व्यापारियों में उत्सुकता बनी हुई है।

वहीं दूसरी ओर, भारत में चीनी उत्पादन को लेकर चिंता के बादल मंडरा रहे हैं। नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज़ (NFCSF) के मुताबिक, चालू विपणन वर्ष 2024-25 के शुरुआती छह महीनों (अक्टूबर 2024 से मार्च 2025 तक) में देश में केवल 248.5 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है। जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में 302.5 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। यानी इस बार चीनी उत्पादन में 18 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।

विशेषज्ञों के अनुसार, इस गिरावट की मुख्य वजह है गन्ना पेराई का काम समय से पहले बंद हो जाना। इससे न केवल उत्पादन प्रभावित हुआ है, बल्कि देश की आंतरिक मांग और वैश्विक बाजार में आपूर्ति संतुलन पर भी असर पड़ सकता है।

फिलहाल, सरकार की नज़र निर्यात पर लगी सीमा और घरेलू मांग के बीच संतुलन बनाए रखने पर है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले महीनों में भारत की चीनी नीति और बाजार की प्रतिक्रिया किस दिशा में जाती है।

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