नई दिल्ली: ट्राइकोडर्मा एक जैविक फफूंदनाशी या कवकनाशी है, जो मिट्टी में पाए जाने वाले कई प्रकार के हानिकारक कवकों या फफूंद को नष्ट कर देता है। यह फसलों में लगने वाले जड़ सड़न, तना सड़न, उकठा और आर्द्र गलन जैसे रोगों से भी सुरक्षा प्रदान करता है। ट्राइकोडर्मा का उपयोग सभी प्रकार की फसलों में बीज उपचार, मिट्टी उपचार, जड़ों के उपचार तथा ड्रेंचिंग के लिए किया जाता है। इसका उपयोग विभिन्न फसलों जैसे कपास, चना, जीरा, सब्जीवर्गीय फसलें और दलहनी फसलों में किया जा सकता है। ट्राइकोडर्मा का उपयोग बीज उपचार, मिट्टी उपचार तथा खड़ी फसल में किसी भी अवस्था में किया जा सकता है।
अगर आप ट्राइकोडर्मा का उपयोग बीज उपचार के लिए करना चाहते हैं तो प्रति किलोग्राम 5-10 ग्राम ट्राइकोडर्मा मिलाकर इसका उपयोग करें। इसके उपयोग के लिए पानी में गुड़ मिलाकर एक गाढ़ा घोल तैयार करें। फिर इस घोल के ठंडा होने के बाद इसमें ट्राइकोडर्मा पाउडर मिला दें। उसके बाद उपचारित किए जाने वाले बीज को इस गाढ़े घोल में मिलाकर पतली परत चढ़ा लें। इससे बीज तमाम प्रकार के बीजजनित रोगों से सुरक्षित हो जाएंगे।
वहीं, अगर आप ट्राइकोडर्मा का उपयोग जड़ों के उपचार के लिए करना चाहते हैं तो इसके लिए 100 लीटर पानी में 10 किलो अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाकर एक घोल तैयार करें। फिर इसमें 1 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर मिला कर तीनों पदार्थों का मिश्रण तैयार कर लें। इसके बाद इस मिश्रण में पौध की जड़ों को रोपाई के पहले 10 मिनट के लिए डुबोकर निकाल लें व इसके बाद उनकी रोपाई करें।
खड़ी फसल में ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल करने के लिए 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति लीटर पानी में मिलाकर जड़ों के आस पास मिश्रण का छिड़काव करें। ऐसा करने से पौधों में उकटा, जड़ सड़न तथा आद्र गलन जैसी समस्याएँ देखने को नहीं मिलेंगी।
इसी तरह ट्राइकोडर्मा का उपयोग मिट्टी उपचार के लिए भी किया जा सकता है। इसके लिए 4 टन अच्छी सड़ी गोबर की खाद में 2 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर मिलाकर प्रति एकड़ की दर से खेत में छिड़काव करें। ऐसा करने से मिट्टी में उपस्थित उकटा, जड़ सड़न और विभिन्न प्रकार की अलग अलग फफूंदों से राहत मिलेगी।
आपको बता दें कि आधुनिक तकनीकी में ट्राईकोडर्मा का उपयोग किसानों के लिए हर हाल में फायदेमंद है। इसकी कीमत या लागत भी रासायनिक दवाईयों से काफी कम है। ट्राइकोडर्मा सभी सरकारी बीज भंडारों दवा की दुकानों में उपलब्ध है। किसान इसको अपनाकर फसल की लागत कम कर सकते हैं। इसके प्रयोग से फसल का उत्पादन भी अच्छा होता है।