नई दिल्ली: थ्रिप्स एक ऐसा कीट है जो प्याज, लहसुन, मिर्च और टमाटर की फसल को बहुत नुकसान पहुँचाता है। इन फसलों में इस कीट का प्रकोप अक्सर देखने को मिलता है। इससे किसानों को काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। थ्रिप्स नामक कीट काफी महीन और सूक्ष्म होता है। इस वजह से यह सामान्यतः नग्न आंखों से नहीं दिखाई देता है।
प्याज, लहसुन, मिर्च और टमाटर की फसल को नर और मादा दोनों थ्रिप्स नुकसान पहुंचाते हैं। थ्रिप्स नर कीट हल्के भूरे या फिर काले रंग का होता है। जबकि, मादा हल्के पीले रंग की होती है। यह कीट इन फसलों के नाजुक हिस्सों पर प्रहार करता है। इस वजह से पौधा छोटा रह जाता है और ठीक तरह से उसका विकास नहीं हो पाता है।
थ्रिप्स प्याज, लहसुन, मिर्च और टमाटर की पत्तियों को सबसे पहले अपने मुंह से खरोचता है। इन पौधों के नाजुक भाग को खरोचने के बाद ये उनके रस को चूसने लगता है। इस वजह से पौधों का रस बाहर आने लगता और वे धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगते हैं। फिर एक समय ऐसा आता है कि इन पौधों की पत्तियों का पूरा रस निकल जाता है और वे पीले पड़ने लगते हैं। फिर धीरे-धीरे सुखने लगते हैं। जब यह समस्या काफी अधिक बढ़ जाती है तो पौधों की पत्तियां जलेबी का आकार लेने लगती हैं।
किसान मित्रों, थ्रिप्स नामक कीट पर नियंत्रण के लिए लैम्ब्डासाइहेलोथ्रिन 2.5प्रतिशत ई.सी. का उपयोग करना चाहिए। एक एकड़ में इस दवाई की 400 एमएल मात्रा का प्रयोग करें। अगर आप लैम्ब्डासाइहेलोथ्रिन 5 प्रतिशत ई.सी. का इस्तेमाल कर रहे हैं तो एक एकड़ में इसकी 250 एमएल मात्रा का उपयोग करें। यदि आप थ्रिप्स के हमले की पहचान प्रारंभिक अवस्था में ही कर लेते हैं तो आप एसीफेट 75 प्रतिशत एसपी का भी छिड़काव कर सकते हैं। इसकी मात्रा 300 से 400 ग्राम प्रति एकड़ रखें।
थ्रिप्स से बचाव के लिए आप एक संयुक्त दवाई एसीफेट 50 प्रतिशत और इमिडाक्लोप्रिड प्रति एकड़ 300 ग्राम का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इनमें से किसी भी दवाई का इस्तेमाल करते समय यह ध्यान रखें कि कोई भी दवाई एक-दो बार ज्यादा बार इस्तेमाल नहीं होनी चाहिए।