कृषि पिटारा

मूंग की खेती के दौरान इन बातों का ध्यान रखना है ज़रूरी

नई दिल्ली: मूंग एक दलहनी फसल है, जो भारत में विभिन्न राज्यों में उगाई जाती है। इसकी खेती खरीफ और रबी दोनों ही मौसम में किया जा सकता है, लेकिन खरीफ में इसकी खेती ज्यादा फायदेमंद होती है। मूंग की खेती के लिए तापमान का भी बहुत महत्व है। अंकुरण के लिए तापमान 22°C की आवश्यकता होती है। पुष्पन अवस्था में पाला फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा सकता है। फसल की वृद्धि के लिए तापमान 13°C से 18°C के बीच होना चाहिए। मूंग का पौधा न्यूनतम 5°C और अधिकतम 25°C तापमान को सहन कर सकता है। मूंग की बुवाई के लिए उपयुक्त समय 15 मार्च से 15 अप्रैल तक है। देरी से वर्षा होने पर शीघ्र पकने वाली किस्म की बुवाई 30 जुलाई तक की जा सकती है।

मूंग की खेती के लिए भूमि का P.H. मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए। क्षारीय गुण वाली भूमि को मूंग की खेती के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है। बीज को बुवाई से पहले थायरम या कैप्टन में डुबोकर साफ करना चाहिए। बीज को 3-4 cm की गहराई में रखना चाहिए। बीज के बीच की दूरी 20-25 cm और रिज के बीच की दूरी 45-60 cm होनी चाहिए। मूंग की खेती के लिए अलग-अलग किस्में उपलब्ध हैं, जैसे कि आर. एम. जी. – 62, आर. एम. जी. – 344 और पूसा विशाल आदि।

मूंग की खेती के लिए जलवायु और जमीन के अनुसार उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए। मूंग की फसल को नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की आवश्यकता होती है। इन उर्वरकों को बुवाई के समय या बाद में जमीन में मिलाना चाहिए। उर्वरकों की मात्रा जमीन के प्रकार और उपजाऊता पर निर्भर करती है। आम तौर पर, 40-50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60-80 किलोग्राम फॉस्फोरस और 40-50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की मात्रा में देना चाहिए।

मूंग की फसल का नियमित रूप से सिंचाई करना चाहिए। सिंचाई की आवश्यकता जलवायु, जमीन और फसल के विकास के अनुसार होती है। आम तौर पर, मूंग की फसल को 4-5 बार सिंचाई करनी चाहिए। पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद, दूसरी सिंचाई 20-25 दिनों के बाद, तीसरी सिंचाई 40-45 दिनों के बाद, चौथी सिंचाई 60-65 दिनों के बाद और पांचवीं सिंचाई 80-85 दिनों के बाद करनी चाहिए।

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