नई दिल्ली: केला उत्पादन के मामले में भारत पूरे विश्व में पहले स्थान पर है। भारत में महाराष्ट्र सबसे बड़ा केला उत्पादक राज्य है। केले का उत्पादन करने वाले अन्य राज्य कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश और आसाम हैं। केले की खेती के लिए गहरी गाद चिकनी, दोमट और उच्च दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.5 के बीच होने पर केले की खेती से बेहतर पैदावार प्राप्त होती है। केला उगाने के लिए अच्छे जल निकास वाली पर्याप्त उपजाऊ और नमी क्षमता वाली मिट्टी का चयन करना चाहिए। रेड बनाना, बसराई, रसथाली, पूवन, न्याली, अर्धपुरी और रोबुस्ता केले की कुछ बेहतर किस्में हैं। अपने क्षेत्र की संस्तुति के अनुसार इन किस्मों का चुनाव करने पर बढ़िया पैदावार प्राप्त करने की संभावना और भी बढ़ जाती है।
केले की खेती शुरू करने से पहले गर्मियों में खेत की कम से कम 3 से 4 बार जुताई करनी चाहिए। किसान मित्रों, आखिरी जुताई के समय 10 टन अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद या गाय का गला हुआ गोबर मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएँ। ज़मीन को समतल करने के लिए ब्लेड हैरो या लेज़र लेवलर का प्रयोग करें। केले की बिजाई के लिए मध्य फरवरी से लेकर मार्च का पहला सप्ताह उपयुक्त होता है। इसकी बिजाई के लिए रोपाई विधि का प्रयोग किया जाता है।
केले की जड़ों को 45x 45×45 से.मी. या 60x60x60 से.मी. आकार के गड्ढों में बोना चाहिए। गड्ढों को कुछ समय के लिए धूप में खुला छोड़ दें। इससे हानिकारक कीट मर जाते हैं। इसके बाद 10 किलो रूड़ी की खाद या गला हुआ गोबर या नीम केक डालें। फिर केले की जड़ों को इन गड्ढों के ठीक बीचोबीच बोएँ। अगर आपने केले की बुआई 1.5 x1.8 के फासले पर की है तो प्रति एकड़ में 1452 पौधे लगाएं। यदि फासला 2 मीटर x 2.5 मीटर का है तो एक एकड़ में 800 पौधे लगाएँ।
किसान मित्रों, केला एक ऐसी फसल है जिसकी जड़ें ज्यादा गहराई तक नहीं जाती हैं। इसलिए इसकी उत्पादकता बढ़ाने के लिए काफी मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। अच्छी उपज के लिए इसे 70-75 सिंचाइयाँ इस फसल के लिए ज़रूरी मानी जाती है। सर्दियों में आप 7-8 दिनों के अंतराल पर जबकि गर्मियों में 4-5 दिनों के अंतराल पर सिंचाई कर सकते हैं। बारिश के मौसम में आवश्यकतानुसार सिंचाई की जा सकती है। किसान मित्रों, केले की रोपाई के बाद 11-12 महीनों में केले के फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। बेहतर होगा कि आप बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुसार फलों की तुड़ाई करें। स्थानीय बाज़ार के लिए फलों की तुड़ाई पकने की अवस्था में करें और लंबी दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए 75-80 प्रतिशत पक जाने पर फलों की तुड़ाई करें।