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खाद के असली होने की पहचान

वर्तमान समय में एक ओर, जहाँ सरकार जैविक खेती को अपनाने पर ज़ोर दे रही है वहीं दूसरी ओर, देश के अधिकांश किसान आज भी रासायनिक उर्वरकों को ही उन्नति का जरिया मानते हैं. उनका मानना है कि, रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के दूरगामी दुष्प्रभाव भले ही हैं मगर वर्तमान उपज की मात्रा उनके लिए कहीं ज्यादा मायने रखती है. जैविक खादों का प्रयोग व उनके निर्माण-उपयोग की विधि जब तक खासी लोकप्रिय और सर्वसुलभ नहीं हो जाती देश के किसानों की भविष्य के बजाय वर्तमान में जीने की वजह समझ में आ रही है. किन्तु, विडंबना यह भी है कि देश के किसानों का एक बड़ा तबका वैसा भी है जो आज भी बाज़ार में मौजूद विभिन्न प्रकार के खादों की पहचान व उनके उपयुक्त इस्तेमाल से अनजान है. नतीजा यह होता है कि कुछ ग़ैरज़रूरी मद में अधिकांश किसानों की जेब ढीली होती है. हाँ, नकली या मिलावटी उर्वरक फायदे की जगह पर उपज की उम्मीद पर पानी ज़रूर फेर सकते हैं. तो आइये, आगे जानते है कि सही उर्वरकों की पहचान कैसे की जा सकती है? 

यूरिया एक ऐसा उर्वरक है जिसके नाम से अमूमन सभी किसान वाकिफ़ होंगे. मगर जब इसके पहचान की बारी आती है तो मसला अलग हो जाता है. असली यूरिया की पहचान है इसका सफेद और चमकदार होना व इसका पानी में पूरी तरह से घुल जाना. इस घोल को छूने पर थोड़ी ठंढक का आभास होता है. असली यूरिया के साथ सबसे खास बात यह है कि यदि इसे तवे पर गर्म करें तो इसके दाने पिघल जाते हैं और आँच को तेज करते ही इसके दाने पूरी तरह से गायब हो जाते हैं.

किसानों द्वारा पोटास का काफी इस्तेमाल किया जाता है. असली पोटास की पहचान है इसे थोड़ा नम करने पर इनके दानों का एक-दुसरे से नहीं चिपकना. साथ ही इसका नमक और लाल मिर्च के मिश्रण जैसा इसका रंग. इसके अलावा पानी में घुलने पर इसका लाल भाग पानी में ऊपर तैरने लगता है. 

यदि जिंक सल्फेट की बात करें तो इसकी असली पहचान है इसके दानों का हल्के सफेद पीले तथा भूरे रंग का होना. वैसे देखा जाए तो असली और नकली जिंक सल्फेट की पहचान करना काफी कठिन है. फिर भी, यदि जिंक सल्फेट के घोल में पतली कास्टिक का घोल मिलाया जाय तो एक सफेद मटमैले मांड जैसा अवशेष बनता है. जबकि यदि इसमें गाढ़ा कास्टिक का घोल मिलाया जाय तो ये अवशेष पूरी तरह से घुल जाता है.

जहाँ तक असली डी.ए.पी. की पहचान की बात है तो इसकी विधि अन्य के मुकाबले काफी आसान है. यदि इसके कुछ दानों को धीमी आंच में तवे पर गर्म किया जाय तो ये दाने फूल जाते हैं. डी.ए.पी. के दाने भूरे, काले और बादामी रंग के होते हैं और ये इतने कठोर होते हैं कि इन्हें हाथ से आसानी से तोड़ा नहीं जा सकता.

अब बात सुपर फास्फेट की. असली सुपर फास्फेट की पहचान है, इसके दानों का भूरा काला बादामी रंग व इनका सख्त होना. यदि इसके कुछ दानों को गर्म करें और ये नहीं फूलें तो समझना चाहिए कि सुपर फास्फेट असली है. साथ ही नाखून से तोड़ने पर असली सुपर फास्फेट के दाने आसानी से नहीं टूटते हैं. 

इस प्रकार, उर्वरक के असली और नकली होने के फर्क को जान कर किसान अपनी गाढ़ी कमाई को जाया होने से बचा सकते हैं.

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