(नई दिल्ली) अपनी कई मांगों को ले कर एक बार फिर किसानों ने दिल्ली का रुख किया है. मौसम के लिहाज से एक तरफ राजधानी के तापमान में गिरावट हो रही है वहीं दूसरी ओर, इस समय दिल्ली में कई हज़ार किसानों की मौजूदगी का अहसास यहाँ की सियासत के तापमान को बढ़ा रहा है. सियासत का तापमान इसलिए भी बढ़ रहा है क्योंकि इस किसान आन्दोलन को देश के 21 राजनीतिक दल भी समर्थन दे रहे हैं.
आपको याद होगा, अभी छः महीनें भी नहीं गुज़रे, यही किसान थे और इन्हीं मुद्दों के साथ सरकार को घेरने की कोशिश की गयी थी. इसके बावजूद आज किसान दोबारा आन्दोलनरत हैं. देश के विभिन्न हिस्सों से 29 नवम्बर को दिल्ली के रामलीला मैदान में इकठ्ठा हो रहे किसान 30 नवम्बर को संसद मार्ग पहुँचने वाले हैं. आन्दोलन का नेतृत्व करने के लिए अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) और स्वराज इंडिया आगे हैं. इस आन्दोलन के समर्थन के लिए 200 से अधिक संगठन मौजूद हैं. इनकी मुख्य मांगें हैं, एमएसपी की गारंटी देने के लिए कानून का निर्माण तथा कृषि संकट के मसले पर संसद में तीन हफ्ते का विशेष सत्र बुलाया जाय. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के अध्यक्ष वीएम सिंह ने पूछा है कि, “अगर सरकार जीएसटी के लिए संसद का विशेष सत्र बुला सकती है तो फिर किसानों का बिल पास करने के लिए विशेष सत्र क्यों नहीं बुलाया जा सकता है?”
किसान नेता सरकार से कर्ज़ मुक्ति और फसलों के C2 लागत का डेढ़ गुना एमएसपी की गारंटी दिलाने वाले विधेयकों संसद के इसी सत्र में पारित कराने की मांग कर रहे हैं. आल इंडिया किसान महासभा के अध्यक्ष राजाराम सिंह कहा है कि, “सरकार हमारी मांगों के साथ खेल खेल रही है और हमें धोखा दे रही है. ये नहीं चलने दिया जाएगा – यही कहने देश के किसान दिल्ली आ रहे हैं.”
इस आन्दोलन को रिटायर्ड फौजियों का समर्थन प्राप्त हो रहा है. कुछ आंदोलनकारी इस समर्थन से जय जवान – जय किसान के नारे को सार्थक होता हुआ मान रहे हैं. आंदोलन से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने कहा, “यह आन्दोलन केवल संख्या का खेल नहीं होगा. ये संगठनों का मेल होगा.” उन्होंने यह भी कहा कि, “इस आन्दोलन में महिलाएँ, पशुपालक, दलित, आदिवासी शामिल होंगे, क्योंकि वो भी किसान हैं. आन्दोलन में बुद्धिजीवी, छात्र संगठन और नर्मदा के मील मजदूर भी शामिल होंगे.” आपको बता दें कि इस किसान आन्दोलन को सफल बनाने के लिए किसानों और कृषि मजदूरों के अलावा पत्रकारों, छात्रों, बैंक कर्मचारियों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और घरेलु सहायकों सहित तमाम मेहनतकश लोगों से भी समर्थन की मांग की गयी है. अब देखना ये होगा कि 30 नवम्बर को किसान जब रामलीला मैदान से संसद मार्ग पहुँचते हैं तो सरकार से उन्हें अपनी मांगों को लेकर क्या भरोसा मिलता है.