नई दिल्ली: आजकल किसान कृषि के जरिये अपनी आमदनी बढ़ाने के उपायों की तलाश में हैं। इसके लिए वे लागत और मुनाफे के गणित पर भी ध्यान दे रहे हैं। ऐसे में कटहल (Jackfruit) की खेती किसानों के लिए एक अच्छा विकल्प साबित हो सकती है। इसमें एक बार पैसा लगाकर कई वर्षों तक फसल प्राप्त की सकती है। कटहल की मांग देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक भी है, हाँ इसके लिए कटहल की अच्छी गुणवत्ता विशेष रूप से आवश्यक है।
कटहल एक सदाबहार फसल है, जिसका पेड़ सिर्फ 8 सेमी ऊंचा और इसके फल हरे पत्तों से घिरे होते हैं। जल निकासी वाली गहरी बलुई मिट्टी में इसकी खेती करके आप अच्छा उत्पादन ले सकते हैं। यह एक उष्ण कटीबंधीय फल है जिसकी खेती किसी भी मौसम में कर सकते हैं। भारत में कटहल की खेती उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत के राज्यों में बड़े पैमाने पर की जाती है। इतनी बड़ी संख्या में खेती और उत्पादन के कारण दुनियाभर में इसका निर्यात भी किया जा रहा है।
कटहल को किसी भी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन कटहल की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी को उपयुक्त माना गया है। इसके अलावा इस बात का विशेष ध्यान रखे की भूमि जल-भराव वाली न हो। इसके खेती में भूमि का पी.एच मान 7 के आस-पास होना चाहिए। अगर जलवायु की बात करें तो इसकी खेती शुष्क एवं शीतोष्ण दोनों जलवायु में सफलतापूर्वक कर सकते हैं, क्योंकि यह उष्णकटिबंधीय फसल का पेड़ है।इसलिए इसकी खेती के लिए शुष्क और नम, दोनों प्रकार की जलवायु को काफी उपयुक्त माना गया है। इसके पौधे अधिक गर्मी और वर्षा के मौसम में आसानी से वृद्धि कर लेते है, किन्तु ठंड में गिरने वाला पाला इसकी फसल के लिए हानिकारक होता है। इसके साथ ही 10 डिग्री से नीचे का तापमान पौधों की वृद्धि के लिए हानिकारक होता है। अगर आप कटहल की व्यापारिक खेती करना चाहते हैं, तो इस प्रकार की भूमि एंव जलवायु वाले क्षेत्र का ही प्रयोग करें।
कटहल की खेती के लिये जमीन को जैविक विधि से तैयार किया जाता है, जिसमें गहरी जुताईयां लगाकर 10 सेमी. प्रति गड्ढे की दूरी पर इसके पौधे लगाये जाते हैं। इन गड्ढों में गोबर की खाद, उर्वरक और नीम की खली डाली जाती है, ताकि मिट्टी और पौधों के रोगों की रोकथाम की जा सके। गड्ढे तैयार करने के 15 दिन बाद इनमें कटहल के पौधों की रोपाई करके सिंचाई का काम किया जाता है। अगर आप बीजसहित कटहल की खेती कर रहे हैं, तो पौधे से फलों का उत्पादन लेने में 5 से 6 साल लग जाते हैं। जबकि गूटी विधि से कटहल की खेती करने पर 3 साल में ही फल लगना शुरु हो जाते हैं। इसकी फसल में नमी कायम रखने के लिये हर 15 से 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई कार्य किये जाते है। बेहतर उत्पादन के लिये निराई-गुड़ाई करके इसके पौधे के थालों को साफ रखना चाहिये। बड़े पैमाने पर कटहल की खेती करते समय हर 2 साल में खेत में जुताई लगाना फायदेमंद रहती है।
ग्राफ्टिंग या कटिंग द्वारा तैयार किये गए कटहल के पौधे पर लगभग तीन से चार साल में फल आना शुरू हो जाते है। कटहल की व्यापारिक खेती के लिए ग्राफ्टिंग विधि से तैयार पौधे का उपयोग करें। क्योंकि इस विधि से पौधे को तैयार करना बहुत आसान होता हैं। ग्राफ्टिंग विधि से पौध तैयार करने के लिए सबसे पहले आपको इसके बीजों द्वारा उगाया गया कटहल का पौधा लेना है। इसके बाद आपको एक बड़े कटहल के पेड़ की कटिंग लेनी है। कटिंग आपको लगभग तीन इंच की लेनी है। जिसकी मोटाई पेन्सिल की बराबर होनी चाहिए। कटिंग को लेने के बाद आपको कटहल के पौधे के तने को बीच में से काटकर उसके अंदर लगभग तीन इंच का चीरा लगाना है। कटिंग को पेना करके चीरा लगे हुए तने के अंदर फंसा दें। इसके बाद आपको इसके ऊपर कसकर टेप या फिर पॉलीथिन बांध देनी है। इसके बाद इसमें से जड़े निकल आती है, उन्हें काट गड्ढे में लगा दिया जाता है।
कटहल की प्रमुख किस्मों में रसदार, खजवा, सिंगापुरी, गुलाबी, रुद्राक्षी आदि शामिल हैं। आप इनकी खेती कर बढ़िया फल प्राप्त कर सकते हैं। ठीक प्रकार कटहल के बागों की देखभाल करने पर आप हर साल 3 से 4 लाख की कमाई कर सकते हैं। इसके एक हेक्टेयर खेत में 150 से ज्यादा पौधे लगाये जाते हैं। कटहल की खेती से अच्छी आमदनी कमाने के लिये इसकी व्यावसायिक खेती या कांट्रेक्ट फार्मिंग से जुड़ना चाहिये। किसान चाहें तो इसकी प्रोसेसिंग करके अचार, चिप्स और दूसरे खाद्य पदार्थ बनाकर भी बेच सकते हैं।