खेती-किसानी

विस्तार से जानिए मल्चिंग तकनीक के बारे में, क्या हैं इसके फायदे?

नई दिल्ली: मल्चिंग, खेती का एक अत्यंत प्रभावी और आधुनिक तरीका है, जो मिट्टी की सतह को ढँकने के माध्यम से फसलों की सुरक्षा, जल संरक्षण और खरपतवार नियंत्रण जैसे कई लाभ प्रदान करता है। यह तकनीक आजकल किसानों में तेजी से लोकप्रिय हो रही है, खासकर सब्जियों, फलों और बागवानी फसलों में इसका उपयोग बड़े स्तर पर किया जा रहा है। मल्चिंग का मुख्य उद्देश्य मिट्टी की ऊपरी सतह को किसी सामग्री से ढक देना होता है, जिससे उसमें नमी बनी रहे, तापमान नियंत्रित रहे और खरपतवार (जंगली घास) न उगें। इससे न केवल पौधों की ग्रोथ बेहतर होती है बल्कि उपज की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में वृद्धि होती है।

मल्चिंग के लिए दो प्रकार की सामग्री का उपयोग किया जाता है – जैविक (ऑर्गेनिक) और अजैविक (इनऑर्गेनिक)। जैविक मल्च में पुआल, सूखी पत्तियाँ, घास, लकड़ी की छाल, गन्ने की खोई आदि चीजों का प्रयोग किया जाता है। ये धीरे-धीरे सड़कर मिट्टी में मिल जाती हैं और उसे उर्वर बनाती हैं। वहीं अजैविक मल्च में काले या चांदी रंग के प्लास्टिक शीट, पॉलीथीन, या बायोडिग्रेडेबल फिल्म का प्रयोग होता है, जो लंबे समय तक मिट्टी को ढक कर रखते हैं।

मल्चिंग से कई लाभ मिलते हैं। सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह मिट्टी में नमी को बनाए रखता है, जिससे सिंचाई की आवश्यकता कम हो जाती है। गर्मी के मौसम में यह फसलों को अधिक तापमान से बचाता है, जबकि ठंड के मौसम में यह मिट्टी की गर्मी को बरकरार रखता है। मल्चिंग से पौधों की जड़ों को स्थिर तापमान मिलता है जो उनकी वृद्धि के लिए अनुकूल होता है। इसके अलावा मल्चिंग की वजह से मिट्टी में पोषक तत्वों का क्षरण नहीं होता और बारिश या तेज हवा से मिट्टी का कटाव भी नहीं होता।

खरपतवार नियंत्रण में भी यह तकनीक अत्यंत उपयोगी है। चूंकि मिट्टी की ऊपरी सतह ढकी रहती है, इसलिए वहां सूर्य की रोशनी नहीं पहुँच पाती और जंगली घास पनप नहीं पाती। इससे न केवल मेहनत बचती है बल्कि खरपतवारनाशी दवाओं का खर्च भी कम होता है। मल्चिंग से होने वाली फसल की गुणवत्ता भी बेहतर होती है। जैसे टमाटर, स्ट्रॉबेरी, शिमला मिर्च जैसी सब्जियों और फलों को मिट्टी से सीधा संपर्क नहीं होता, जिससे वे सड़ने या दागदार होने से बचते हैं। इससे बाजार में उनकी अच्छी कीमत मिलती है।

कई राज्यों में मल्चिंग को बढ़ावा देने के लिए कृषि विभाग सब्सिडी भी देता है, खासकर प्लास्टिक मल्चिंग पर। किसान कृषि विभाग की वेबसाइट या नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से इसके लिए आवेदन कर सकते हैं। ऐसे में, कहा जा सकता है कि मल्चिंग एक ऐसी तकनीक है जो कम लागत में फसल की सुरक्षा, उत्पादन और गुणवत्ता बढ़ाने में मदद करती है। यह आधुनिक और टिकाऊ खेती की दिशा में एक अहम कदम है, जिसे आज के हर प्रगतिशील किसान को अपनाना चाहिए।

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