नई दिल्ली: केले को भारत ही नहीं बल्कि विश्व स्तर पर एक प्रमुख फल के रूप में जाना जाता है। यह न केवल एक स्वादिष्ट फल है, बल्कि इसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं, जो लगभग हर समय इसकी मांग को बरकरार रखने में मदद करते हैं। कई औषधीय गुणों का उच्च स्रोत होने के साथ-साथ इसमें कार्बोहाइड्रेट्स और विटामिन, विशेषकर विटामिन बी की प्रचूरता पाई जाती है। इसलिए जाहिर तौर पर वैज्ञानिक विधि से इसकी खेती करने वाले किसानों को इसकी खेती से अच्छा मुनाफा प्राप्त होता है। इससे किसान चिप्स, केले की प्यूरी, जैम, जेली, जूस, बैग, बर्तन और वॉली हैंगर जैसे उत्पाद बना सकते हैं, जो केले के रेशे से निर्मित होते हैं।
भारत में केला उत्पादन के मामले में महाराष्ट्र राज्य अग्रणी है, जबकि अन्य प्रमुख राज्यों में कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश और असम शामिल हैं। केले की अच्छी पैदावार के लिए यूरिया और म्यूरेट ऑफ पोटाश के मिश्रण का प्रयोग किया जा सकता है। प्रति पौधा पांच बार इसे डालने के लिए यूरिया 450 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 350 ग्राम की आवश्यकता होती है, जो फरवरी, मार्च, जून, जुलाई और अगस्त महीनों में दी जा सकती है।
केले की खेती के लिए गर्म और मध्यम जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। इसकी खेती में अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए जल स्वच्छता अच्छी होनी चाहिए। इसकी खेती के लिए सही भूमि का चयन भी काफी ज़रूरी है। इसके लिए मिट्टी जाँच का सहारा लिया जा सकता है। अगर आप पौधों के बीच सही दूरी बनाए रखते हैं, तो एक एकड़ में लगभग 1452 पौधे लगते हैं। इस दूरी को 2 मीटर x 2.5 मीटर तक बढ़ाते हैं, तो एक एकड़ में लगभग 800 पौधे होते हैं। इस तरीके से केले की खेती कर किसान बेहतर उपज प्राप्त कर सकते हैं।
जब केले के फल पकने योग्य हो जाएँ तो उन्हें बंद कमरे में कंटेनर में रखा जा सकता है, जो केले के पत्तों से ढँके हों। फिर एक कोने में आग जलाने के बाद, कमरे को मिट्टी से सील कर दिया जाता है। लगभग 48 से 72 घंटे में, केला पककर तैयार हो जाता है और इस विधि से पकाए गए केले न केवल स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद होते हैं। इन फलों की बिक्री से किसान अच्छे भाव की उम्मीद कर सकते हैं।