कृषि पिटारा

पोषक तत्वों की कमी से फसलों पर पड़ते हैं कई नकारात्मक प्रभाव, समय रहते इनपर नियंत्रण ज़रूरी

नई दिल्ली: खेती में सफलता प्राप्त करने के लिए फसलों को सही मात्रा में पोषक तत्व प्रदान करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। मानव शरीर की तरह पौधों को भी उनके समुचित विकास के लिए कई पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इन पोषक तत्वों के चलते ही पौधे अपना विकास, प्रजनन, और विभिन्न जीवाणु क्रियाओं को कर पाते हैं। नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन और पोटाश आदि इन पोषक तत्वों में मुख्यतः शामिल हैं।

पोषक तत्वों की कमी के परिणामस्वरूप फसलों में विभिन्न लक्षण दिखाई देते हैं, जो नकारात्मक रूप से पौधों पर असर डालते हैं। इसका प्रमुख प्रभाव फसल की पैदावार पर पड़ता है और किसानों को उचित उत्पादन नहीं मिल पाता है। कुछ पोषक तत्वों की कमी के लक्षण और उनके प्रभाव ऐसे दिखाई पड़ते हैं-

1. बोरॉन की कमी:

   लक्षण: वर्धनशील भाग के पास की पत्तियों का पीला हो जाना।

   प्रभाव: फसल की पूर्णांकन क्षमता में कमी, परिणामस्वरूप पत्तियों का पीला होना।

2. सल्फर/गंधक की कमी:

   लक्षण: पत्तियों का गहरे हरे से पीले रंग में बदलना।

   प्रभाव: पत्तियों की सफेदी, शिराएं हरी हो जाना।

3. मैगनीज की कमी:

   लक्षण: पत्तियों का रंग पीला-घूसर या लाल घूसर हो जाना, शिराएं हरी हो जाना।

4. जिंक/जस्ता की कमी:

   लक्षण: पत्तियों के ऊपरी भाग पर हरितिमाहीन के लक्षण दिखाई देना।

5. मैग्नीशियम की कमी:

   लक्षण: पत्तियों के अग्रभाग का रंग गहरा हरा, शिराओं का मध्य भाग सुनहरा पीला होना।

6. फास्फोरस की कमी:

   लक्षण: पौधों की पत्तियां छोटी रह जाना, पौधों का रंग गुलाबी हो जाना।

7. कैल्शियम की कमी:

   लक्षण: पहले प्राथमिक पत्तियों का हानिकारक रूप से प्रभावित होना, फिर देर से गिरना।

8. आयरन/लोहा की कमी:

   लक्षण: पत्तियों का रंग पीला/भूरा होना, भूरे रंग के धब्बे या मृत ऊतक के लक्षण।

9. कॉपर/तांबा की कमी:

   लक्षण: नई पत्तियां गहरी पीले रंग की हो जाना, शीर्ष में दाने नहीं होना।

10. मालिब्डेनम की कमी:

   लक्षण: नई पत्तियों का हल्के हरे रंग का हो जाना, पूरी पत्तियों पर सूखे धब्बे दिखाई देना।

11. पोटेशियम की कमी:

   लक्षण: पुरानी पत्तियों का रंग पीला/भूरा होना, बाहरी किनारे पर कंद का फट जाना।

उपरोक्त बीमारियों से बचाव व फसलों से बेहतर पैदावार के लिए मिट्टी की जांच के आधार पर उचित खादों का चयन करना चाहिए और किसान विज्ञान केंद्रों से समय रहते सलाह लेनी चाहिए।

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