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मसूर की फसल के लिए खतरनाक हैं ये कीट, ऐसे करें इनके हमले से बचाव

नई दिल्ली: भारत दुनिया का सबसे बड़ा मसूर उत्पादक देश है। हमारे देश में मसूर का उपयोग दाल के एक प्रमुख अवयव के रूप में किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण प्रोटीनयुक्त दलहनी फसल है। यह दाल गहरी संतरी और संतरी पीले रंग की होती है। इसका उपयोग बहुत सारे पकवानों में भी किया जाता है। यह कपड़ों की छपाई के लिए स्टार्च का स्त्रोत भी मुहैया कराता है। इसे गेहूं के आटे में मिलाकर ब्रैड और केक भी बनाये जाते हैं। इस तरह से मसूर का उपयोग दाल के अलावा भोजन के विभिन्न रूपों में किया जाता है। इसलिए इसका बाज़ार बना बनाया हुआ है। अगर आप मसूर की खेती कर रहे हैं तो इस फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कुछ प्रमुख रोगों व कीटों के नियंत्रण के प्रति जागरूक रहें। ताकि पैदावार के मामले में आपको नुकसान नहीं उठाना पड़े।

मसूर की फसल को कुंगी नाम की बीमारी से काफी नुकसान होता है। इस रोग के प्रकोप से मसूर की टहनियां, पत्ते और फलियों के ऊपर हल्के पीले रंग के उभरे हुए धब्बे पड़ जाते हैं। ये धब्बे एक समूह के रूप में नज़र आते हैं। शुरू में ये धब्बे छोटे होते हैं, लेकिन समय के साथ ये धीरे-धीरे बड़े धब्बों में बदल जाते हैं। इस रोग की वजह से कई बार तो प्रभावित पौधा पूरी तरह से सूख जाता है। इससे बचाव के लिए रोग की प्रतिरोधक किस्मों का प्रयोग करें और रोकथाम के लिए 400 ग्राम M-45 को 200 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ में छिड़काव करें।

मसूर की फसल को नुकसान पहुंचाने वाला अगला रोग है – झुलसा रोग। इस रोग की वजह से मसूर की टहनियों और फलियों के ऊपर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। ये धब्बे धीरे-धीरे लंबे आकार के बनने लगते हैं। कुछ समय बाद ये धब्बे गोल आकार लेने लगते हैं। इस बीमारी से फसल को बचाने के लिए बीमारी रहित बीज का प्रयोग करें। यदि इनकी बुआई के बाद भी किसी और कारण से पौधों में झुलसा रोग का प्रभाव दिखने लगे तो प्रभावित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें। इसके अलावा इस बीमारी की रोकथाम के लिए आप 400 ग्राम बाविस्टिन को 200 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ में छिड़काव कर सकते हैं।

मसूर की फसल पर फली छेदक नामक कीट भी हमला करता है। यह कीट मसूर के पत्तों, डंडियों और फूलों को खाता है। यह मसूर का एक खतरनाक कीट है, जो पैदावार को बहुत नुकसान पहुँचाता है। इसकी रोकथाम के लिए हेक्ज़ाविन 900 ग्राम 50 डब्लयु पी को 90 लीटर पानी में मिलाकर फूल लगने के समय प्रति एकड़ में निर्देशित अंतराल पर कम से कम दो बार छिड़काव करें। यदि जरूरत हो तो आप तीसरा छिड़काव भी 3 हफ्तों के बाद कर सकते हैं। मसूर के उपरोक्त प्रमुख रोगों पर नियंत्रण कर आप काफी हद तक इस फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।

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