कृषक को अपने आस पास तेजी से घटने वाली घटनाओ पर ध्यान रखना चाहिए नही तो वह विकास की दौड़ से बाहर हो सकता है। ऐसी ही एक नई तकनीक है पोली हाऊस (ग्रीन हाऊस)। पोली हाऊस लगाकर कृषक अपनी आमदनी बढ़ा सकता है। इस तकनीक का प्रयोग कर कृषक एक हैक्टर के भी दषवें हिस्से के बराबर पोलीहाऊस बनाकर एक हैक्टर की खेती से होने वाली आय के बराबर लाभ कमा सकते है परन्तु इसके लिए व्यवहारिक एवं प्रायोगिक प्रषिक्षण लेना अत्यन्त आवष्यक है।
1008 वर्ग मीटर की पोलीहाऊस परियोजना लगभग 9.5 लाख रूपये में तैयार कर उत्पादन प्रारम्भ कर सकता है, सरकार द्वारा इस पर 50-75 प्रतिषत सब्सिडी भी देय है। ऐसे में पोलीहाऊस लगाना आसान है परन्तु इस का रख-रखाव बहुत ही अहम हो जाता है। एक पोलीहाऊस की उम्र लगभग 15 से 20 वर्ष तक आंकी गई है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कृषक के लिए कि वह अपने पोलीहाऊस का रख रखाव ठीक प्रकार से करें। इसलिए आइये जानते हैं पोलीहाऊस सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य।
1) अगर किसी घटक एवं जोड़ों के नट बोल्ट ढ़ीले पड़ गये हो तो उसकी जाँच करे एवं उन्हे कस लेवें। और नट बोल्ट टूट गये हो या फिसल रहे हो तो अच्छी गुणवŸाा के नट बोल्ट लगाये और अगर स्वयं सम्भावना हो तो निर्माता के सम्पर्क कर ठीक करवायें या बदलवाए। साथ ही अगर सम्भव ना हो तो कम्पनी ग्रीन हाऊस निर्माण में लगी हुई कम्पनियों से ए. एम. सी. (एनुवल मेनटेनेंस कान्ट्रेक्ट) की भी बात करें। साथ ही इंषोरेन्स कम्पनी द्वारा ढाँचे एवं पोलीफिल्म का बीमा करवायें।
2) सही आरियन्टेषन में हरित ग्रह का निर्माण:- गट्टर का पानी निकालने वाली नाली की दिषा हमेषा उŸार-दक्षिण दिषा में होनी चाहिए। नये गट्टर में किसी प्रकार का जोड़ नहीं होना चाहिए।
3) पुराने गटर से पानी का स्राव हो रहा है तो उसमें डामर पिघला कर उसकी सतह पर डाले। पहली बरसात में पानी का स्राव होने वाली जगह चिन्हित कर लेवे और बरसात रूकने पर उपरोक्त कार्यवाही करें।
4) टेलीस्कोपिक फाउन्डेषन होना चाहिए ताकि वायु का दाब कॉलम्ब पर ना पड़े और ढाँचे में लचीलापन रहे। पाइप जमीन में गाड़े, सीमेंट कंकरीट से भरे और रोज तराई करें। 76 मीमी व्यास वाला पाईप उसके ऊपर चढ़ाये और यह पाईप सीमेंट कांकरिट की सतह पर टिका होना चाहिए। और नट 2 जगह बोल्ट से कसा होना चाहिए। किसी प्रकार की बेल्डिंग दोनों पाईपों के बीच नहीं होनी चाहिए। साथ ही ढॉचे की पंक्ति बद्धता महŸवपूर्ण भूमिका अदा करती है जैसे सभी कॉलम्ब, लाइन से होने चाहिए क्लैम्प वगैरह उचित अवस्था में पंक्तिबद्ध होने चाहिए। ढाँचा तैयार करने के लिए काम में लिये गये पाइपों, कलैम्प, आर्क इत्यादि चीजें किसी प्रकार से मुड़ी हुई नहीं होनी चाहिए।
5) हरित गृह का दरवाजा, सहज रूप से खुलना एवं बंद होना चाहिए अगर इसमें परेषानी आ रही हो तो दरवाजों की रेल, पुली और बीयरिंग की पक्तिं बद्धता को जाँच लेवे। साथ ही रेल, बीयरिंग और पुली को ग्रीस लगाये ताकि दरवाजा सहज रूप से खुल सके। महीने से एक या दो बार उपरोक्त प्रक्रिया को अपनाऐं, साथ ही साइड वेन्टस के हैण्डलस, शेड नेट के व्हील की भी उचित ग्रीसिंग करे ताकि वह जंग से जाम ना हो और उनका चलन ठीक तरिके से हो। अगर गटर से बरसात के दौरान आने वाले अमृत रूपी पानी को संचय पाईपों की मदद से टेंक से कर लिया जाये तो इस एकत्रित पानी का उपयोग पोलीहाऊस को लगाये जाने वाली शाक-सब्जियों या कट फ्लॉवर की खेती के रूप में किया जा सकता है। जिन क्षेत्रो से पानी का पर पी. एच. एवं ई. सी. ज्यादा है वहाँ वर्षा के संचित पानी एवं उस क्षेत्र पर उपलब्ध पानी को आपस में मिला कर शाक-सब्जियों या कट फ्लॉवर उत्पादन के लिए काम से लिया जा सकता है।
6) खेंचकर बाँधी गई पोलीफिल्म दूर से काँच के समान दिखायी देती है। हमेषा धूप आने के पष्चात् की पोलीफिल्म की बँधाई का काम करना चाहिए। अकसर देखने सें आता है कि सर्दियों केे समय ठण्डे मौसम से बाँधी गई पोलीफिल्म गर्मियों के मौसम में ढीली पड़ जाती है और बाद में हवा उसमें घर कर लेती है और वह फट जाती है।
7) प्लास्टिक पद्धार्थ होने के कारण तापीय फेलाव गुणांक ऊँचा होता है, इससे गर्मी के मौसम सें पॉलीथीन फिल्म ढ़ीली पड़ जाती है। ऐसे में आवष्यकतानुसार इसे फिर से कसा जाना चाहिए।
8) पोलीहाऊस से लोहे की गेल्वेनाइसड पाईपों का प्रयोग किया जाता है। जो कि गर्मियों से गर्म हो जाती है और जो पोली फिल्म उससे सम्पर्क में आती है वह वहाँ से कमजोर हो जाती है। अतः ऐसी पाइपों पर सफेद पेंट कर देना चाहिए ताकि वह ज्यादा गर्म ना हो पायें।
9) पर्दो को आँधी या तेज हवा चलने पर बंद कर देना चाहिए। अगर उŸार दिषा से तेज हवा आ रही है तो पहले उŸार दिषा का पर्दा बन्द करे और बाद मे बाकि। अन्यथा पोलीफिल्म फटने का डर रहता है। साथ ही ऐसी परिस्थिति से दरवाजे भी बंद करें। ऐसे में पोलीहाऊस बाहर का एरोडायनेमीक्स आकर भी आँधी एवं तेज हवाओं से बचाने में अहम भूमिका अदा करना।
10) कभी कभी आँधी आने या तेज हवा चलने की वजह से लाकिंग प्रोफाइल ढिली पड़ जाती है और जिंक जेक स्प्रिंग प्रोफाइल पट्टी से बाहर निकल जाती है और पोलीफिल्म बाहर निकल आती है ऐसे में आँधी (तेज हवायंे) बंद होने पर पुनः नई स्प्रिंग फिट करनी चाहिए।
11) पोलीफिल्म का रोल खोलते वक्त ध्यान रखे कि नीचे की सतह समतल हो और किसी प्रकार के कंकड़ पत्थर ना हो। साथ ही उस पर चलना नहीं चाहिए वरना उस पर निषान हो जाते है और पोलीफिल्म कमजोर पड़ जाती है। जिससे फटने का डर बढ़ जाता है पोलीफिल्म पर इनर साईड एंव आऊटर साईड लिखा होता है। उसी प्रकार से उसे लगाई जानी चाहिए।
12) समयानुसार महिने सें कम से कम एक बार पोलीफिल्म की धुलाई पानी एवं सर्फ के पानी के घोल से करनी चाहिए। यह कार्य गट्टर पर चलकर फूट पम्प द्वारा किया जा सकता है। हरित गृह का रखरखाव एवं मरम्मत करते वक्त सबसे महŸवपूर्ण बात है स्वयं की सुरक्षा। अतः अपनी सुरक्षा के लिए यथा सम्भव हर प्रकार के जरूरी कदम उठाये जैसे बिना किसी सहारे के घटको को न हटाये, फस्ट एड बाक्स पोलीहाऊस को रखे इत्यादि।
13) गर्मियों की शुरूवात होते ही प्रकाष की तीव्रता एवं तापमान कम करने के लिए सफेदी या सफेद डिस्टेम्पर की पुताई पोलीहाऊस की पोलीफिल्म पर बाहरी रूप से करे। इससे 3 से 4 डिग्री सेल्सियस तापमान एवं 20 से 25 किलो लक्स प्रकाष की तीव्रता कम हो जाती है 1008 वर्गमीटर के पोलीहाऊस के लिए 40 किलोग्राम चूने को 300 लीटर पानी में मिलाकर ऊपरी प्लास्टिक पर फूट पम्प स्प्रे के द्वारा गटर पर चलकर स्प्रे किया जाता है। यह कोटिंग करने से पूर्व पोलीफिल्म पानी से धोयी जाती है। साथ ही उपरोक्त घोल से फेविकोल या गोंद मिलाकर चिपचिपाहट बढ़ाई जाती है मार्च के अन्तिम सप्ताह या अप्रेल के प्रथम सप्ताह में आमतौर पर यह कार्य किया जाता है। आमतौर पर 15 जुलाई पष्चात् या मानसून आने पर स्वयं साफ हो जाती है। बरसात ना होने पर पानी से धो दी जाती है।
14) अप्रोन की पोलीफिल्म को 20-45 स.े मी. मिट्टी के अन्दर दबाना चाहिए।
15) पोलीफिल्म के आसपास बड़े साईज का बोल्ट ना लगा हो अगर पाईप को या हॉकी में या क्लैम्प में लगा है तो इससे पोलीफिल्म फट या कट सकती है। ऐसे में बोल्ट की साइज काट कर कम कर देनी चाहिए।
16) पोलीफिल्म फिटींग करते समय अल्यूमीनियम पट्टी एवं जिक-जेक स्प्रिंग जो कि गेलबेनाइजड हो, लगाई जानी चाहिए। पोलीफिल्म खेंचकर लगानी चाहिएं वह ढीली ना हो ओर ना ही उसमें सलवटे हो। अन्यथा हवा उसमें घर कर जायेगी और वायु दाब से फट जायेगी।
17) कभी भी किसी कारणवंष पोलीफिल्म में कट लग जाये तो उस पर तुरन्त पैरा बैंगनी स्थिरीकृत पारदर्षी टेप द्वारा रिपेयर करनी चाहिए।
18) पोलीहाऊस का बीमा अनिवार्य कराना चाहिए।
19) वायु प्रतिरोधी पेड़ लगायेः- पोलीहाऊस के पष्चिम एवं पूर्वी छोर पर, ढाँचे से लगभग 6 से 10 मीटर की दूरी पर वायु प्रतिरोधी पेडों की दो कतार लगा दी जाती है। जिसमें वायु की त्रीवता कम होती है, तिकोने तरिके से 2.5 मीटर ग् 2.5 मीटर या 3 मीटर ग् 3 मीटर की दुरी पर लगाऐ।
20) आमतौर पर गेलवेनाइजड़ पाइपों से बने पोलीहाऊस के ढाँचे की व्यवसायिक उम्र 15 से 20 वर्ष होती है और पाँलीथीन फिल्म जो काम से ली जाती है उसे तीन वर्ष के अन्दर बदलना पड़ता है। अगर ठीक ढ़ंग से पोलीहाऊस का रखरखाव एवं प्रबंधन किया जाये तो उपरोक्त लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है। साथ ही प्राकृतिक आपदाओं के दौरान कम से कम नुकसान होने की सम्भावनायें रहती है अगर हम उपरोक्त वर्णित छोटी-छोटी बातों का ख्याल रखें। और बीमा कम्पनियों से बीमा करवा कर विकास शील कृषक अपना जोखिम काफी हद तक कम कर सकता है वो भी बहुत कम प्रीमियम भर कर।