नई दिल्ली: मक्के की खेती, दाने, भुट्टे व हरे चारे के लिए की जाती है। अल्प अवधि की फसल होने के कारण बहु फसली खेती के लिए भी मक्के का बहुत महत्व है। यदि आप मक्के की खेती करना चाहते हैं तो उत्तम जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि का चुनाव करें। खेत की तैयारी करते समय पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा अन्य दो या तीन जुताइयां देसी हल, कल्टीवेटर या फिर रोटावेटर द्वारा करें।
अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए उन्नत प्रजातियों के बीज बोएँ। बीज की प्रजाति का चुनाव बुवाई के समय और क्षेत्र अनुकूलता के अनुसार करें। अगर आप मक्के की संकर प्रजातियाँ बोना चाहते हैं तो आप इन क़िस्मों का चुनाव कर सकते हैं, ये हैं – गंगा-11, सरताज, प्रकाश, पूसा संकर मक्का-5 और केएच-510 इत्यादि। अगर आप संकुल क़िस्मों की बुआई करना चाहते हैं तो आप प्रभात, नवजोत, नवीन या सूर्या आदि क़िस्मों को बो सकते हैं। इनसे आपको अच्छी उपज प्राप्त होगी।
देर से पकने वाली मक्का की बुआई मध्य मई से मध्य जून तक पलेवा करके करनी चाहिए। जबकि शीघ्र पकने वाली मक्का की बुवाई जून के अन्त तक कर लेनी चाहिए। जहाँ तक बात है बीज की उचित मात्रा की तो देसी छोटे दाने वाली प्रजाति के लिए 16-18 किग्रा. प्रति हेक्टेयर जबकि संकर प्रजाति के लिए 20-22 किग्रा./हे. बीजों का प्रयोग करें। आप संकुल प्रजातियों के लिए बीज की मात्रा 18-20 किग्रा.प्रति हेक्टर रख सकते हैं।
किसान मित्रों, पौधों को प्रारम्भिक अवस्था में मक्के की फसल के लिए पर्याप्त नमी आवश्यक है। इसलिए यदि वर्षा न हो रही हो तो आवश्यकतानुसार फसल के सिंचाई ज़रूर करें। वर्षा के बाद खेत से पानी के निकास का अच्छा प्रबन्ध करें, अन्यथा मक्के पौधे पीले पड़ जाएंगे और उनकी बढ़वार रूक जाएगी। फसल पकने पर भुट्टों को ढंकने वाली पत्तियां जब 75% झड़कर पीली पड़ने लगें तब भुट्टों की तुड़ाई करके उनकी पत्तियों को छीलकर धूप में सुखाकर, हाथ या मशीन द्वारा दाना निकाल दें।