नई दिल्ली: आज के समय में काफी लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हो रहे हैं। खास तौर पर अनियमित जीवनशैली जीने वाला शहरी वर्ग इसके दुष्प्रभावों को लेकर अब चेतने लगा है। इस वजह से भोजन की गुणवत्ता को लेकर अब बात होने लगी है। लोग रासायनिक खाद्य पदार्थों के स्थान पर जैविक उत्पादों को तरजीह देने लगे हैं। इससे कहीं न कहीं पारंपरिक भोजन की ओर लोगों का झुकाव बढ़ने लगा है। इनमें से एक है – बाजरा। बाजरे की मांग भी अब लगातार बढ़ रही है। इसलिए किसानों को अब बाजरे का अच्छा दाम मिलने लगा है।
अगर आप बाजरा की खेती शुरू करना चाहते हैं तो कुछ बातों का ज़रूर ध्यान रखें। बाजरा एक ऐसा अनाज है जिसकी खेती कम सिंचाई वाले क्षेत्रो में भी की जा सकती है। बाजरा की बुआई मार्च के प्रथम सप्ताह से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है। इसकी खेती के लिए वैसी भूमि का चुनाव करें जिसमें जल निकासी बेहतर तरीके से हो सके। बलुई दोमट या दोमट भूमि बाजरा के लिए अच्छी रहती है। भली भॉति समतल व जीवांश वाली भूमि में बाजरा की खेती करने से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
जहाँ तक बात है बाजरा की खेती के लिए भूमि की तैयारी की तो पलेवा करने के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से 10–12 सेमी. गहरी एक जुताई तथा उसके बाद कल्टीवेटर या देसी हल से दो-तीन जुताई कर पाटा लगाकर खेत की तैयारी करें।
अगर आप बाजरा की संकुल श्रेणी के बीज बोना चाहते हैं तो आप आई.सी.एम.वी.-221, आई.सी.टी.पी.-8203 और राज-171 किस्मों में से किसी का भी चुनाव कर सकते हैं। इसके अलावा संकर प्रजातियों में आपके पास 86 एम-52, जी.एच.बी.-526, पी.बी.-180 और जी.एच.बी.-558 आदि विकल्प मौजूद हैं।
बाजरा की खेती के लिए 4-5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज पर्याप्त होता है। बुआई से पहले बीज को 2.5 ग्राम थीरम या 2.0 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम की दर से ज़रूर शोधित कर लें। जहाँ तक बात है बुवाई की विधि तो बाजरा की बुआई पंक्ति में करने से अधिक उपज प्राप्त होती है। बुआई में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेंटीमीटर बरकरार रखें। बाजरा की फसल के लिए 4-5 सिंचाइयॉ पर्याप्त होती है। 15-20 दिन के अन्तर से सिंचाई करते रहें। इसके अलावा कल्ले निकलते समय व फूल आने पर खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखने की कोशिश करें।
उर्वरकों का प्रयोग मृदा परिक्षण के परिणामों के आधार पर ही करें। यदि मृदा परीक्षण की सुविधा उपलब्ध न हो तो संकुल प्रजातियों के लिए 60 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग करें। संकर प्रजातियों के लिए 80 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें। यदि आप आलू के खेत में बाजरा की बुआई करेंगे तो उर्वरकों की खपत 25 प्रतिशत तक कम होगी।