दिल्ली: मेथी पूरे देश में उगाई जाने वाली फसल है। मेथी के पत्ते और बीज औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। इसलिए इसकी खेती व्यावसायिक दृष्टि से भी काफी मुनाफे से भरी है। मेथी को सभी प्रकार की मिट्टीयों में जिनमें कार्बनिक पदार्थ उच्च मात्रा में मौजूद हों, उगाया जा सकता है। लेकिन अच्छे जल निकास वाली बलुई और रेतली बलुई मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी होती है।
मेथी की बिजाई के लिए अक्तूबर का आखिरी सप्ताह और नवंबर का पहला सप्ताह अच्छा समय होता है। बिजाई के लिए जमीन की तैयारी करते समय मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की दो से तीन बार जुताई करें। उसके बाद सुहागे की सहायता से जमीन को समतल कर लें। आखिरी जुताई के समय खेत में 10-15 टन प्रति एकड़ अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद डालें। बिजाई के लिए 3×2 मीटर समतल बीज बेड तैयार करें।
बिजाई से पहले बीजों को 8 से 12 घंटे तक पानी में भिगो कर रखें। बीजों को मिट्टी से पैदा होने वाले कीट और बीमारियों से बचाने के लिए थीरम 4 ग्राम और कार्बेन्डाज़िम 50 प्रतिशत डब्ल्यू. पी. 3 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज का उपचार करें।
बीजों के जल्दी अंकुरण के लिए बिजाई से पहले सिंचाई करें। मेथी की उचित पैदावार के लिए बिजाई के 30, 75, 85 और 105 दिनों के बाद तीन से चार बार सिंचाई ज़रूर करें। फली के विकास और बीज के विकास के लिए खेत में पानी की कमी नहीं होने देनी चाहिए। क्योंकि इससे पैदावार में भारी नुकसान होता है।
अगर बात करें मेथी की कुछ प्रसिद्ध किस्मों की तो ये हैं – ML 150, कसूरी, मेथी नंबर 47, CO 1, हिसार सोनाली, मेथी नंबर 14, राजेंद्र क्रांति। मेथी की HM 219 किस्म एक अच्छी गुणवत्ता की व्यापारिक किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 8-9 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म पत्तों के सफेद धब्बे रोग की प्रतिरोधक भी होती है।
सब्जी के तौर पर उपयोग के लिए मेथी की कटाई बिजाई के 20-25 दिनों के बाद करें। जबकि बीज प्राप्त करने के लिए इसकी कटाई बिजाई के 90-100 दिनों के बाद करें। दानों उद्देश्यों के लिए इसकी कटाई निचले पत्तों के पीले होने और झड़ने पर और फलियों के पीले रंग के होने पर करें।
अगर आप मेथी के साथ सहफसली खेती करना चाहते हैं तो कुछ खरीफ फसलें जैसे धान, मक्की, हरी मूंग और हरे चारे वाली फसलें उगा सकते हैं।