इन दिनों उत्तर भारत समेत देश के कई हिस्सों में पड़ रही भीषण गर्मी और लू का असर अब सिर्फ इंसानों तक सीमित नहीं रह गया है। इसका सीधा प्रभाव दुधारू पशुओं पर भी देखने को मिल रहा है। पशुपालक इस बात से चिंतित हैं कि गर्मी के कारण गाय-भैंसों में दूध उत्पादन तेजी से घट रहा है। पशु चिकित्सकों का कहना है कि तेज धूप, बढ़ता तापमान और हीट स्ट्रेस की वजह से पशुओं की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है, जिससे वे बीमार भी पड़ रहे हैं और कम दूध दे रहे हैं।
हर साल अप्रैल से जून के बीच तापमान में तेज़ी से बढ़ोतरी होती है। इस दौरान गाय-भैंसों में हीट स्ट्रेस का खतरा सबसे अधिक होता है। यह स्थिति न केवल उनकी शारीरिक क्षमता को प्रभावित करती है, बल्कि प्रतिरोधक क्षमता को भी कम कर देती है, जिससे वे कई संक्रामक बीमारियों की चपेट में आ जाती हैं। इससे पशुपालकों को दोहरी मार झेलनी पड़ती है—एक तरफ दूध उत्पादन में गिरावट और दूसरी ओर इलाज और खुराक का अतिरिक्त खर्च।
पशु विशेषज्ञों का कहना है कि इस मौसम में विशेष देखभाल की जरूरत होती है, खासकर दोपहर के समय जब लू और तापमान चरम पर होता है। अच्छी बात यह है कि पशुओं को गर्मी से बचाने के लिए बहुत अधिक खर्च करने की जरूरत नहीं होती। विशेषज्ञों ने ऐसे उपाय सुझाए हैं जो केवल देखभाल पर आधारित हैं और जिनमें कोई आर्थिक भार नहीं पड़ता।
इन उपायों में सबसे पहले पशुओं को दोपहर की तेज धूप से बचाने की सलाह दी गई है। गर्भवती और बीमार पशुओं को सुबह और शाम के समय टहलाना चाहिए, ताकि वे थोड़ी हलचल कर सकें और गर्मी का असर कम हो। पशुओं को हमेशा साफ और ताजा पानी पिलाना चाहिए, लेकिन यह पानी ठंडा नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे सर्द-गर्म का खतरा हो सकता है। गर्मी के असर को कम करने के लिए उन्हें सुबह-शाम ताजे पानी से नहलाना भी एक अच्छा तरीका है।
पशुओं के रहने की जगह भी इस मौसम में अहम भूमिका निभाती है। बाड़ा पूरी तरह हवादार होना चाहिए ताकि हवा का प्रवाह बना रहे। फर्श कच्चा होना चाहिए, जिसमें रेत या मिट्टी हो। बाड़े में नमी या सीलन नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह संक्रमण का कारण बन सकती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि गर्मियों में अगर पशु हीट में आएं, तो समय रहते गर्भाधान कराना चाहिए ताकि वे बिना तनाव के स्वस्थ रह सकें। खुरपका और मुंहपका जैसे संक्रामक रोगों से बचाव के लिए टीकाकरण आवश्यक है। इसके अलावा पेट के कीड़ों की रोकथाम के लिए डॉक्टर की सलाह पर समय-समय पर दवाइयां देना चाहिए।
खाद्य पदार्थों की बात करें तो गेहूं के भूसे की पौष्टिकता बढ़ाने के लिए उसमें उचित मात्रा में यूरिया मिलाना चाहिए। दूध निकालने के बाद पशु के थनों को कीटाणुनाशक घोल में डुबोकर साफ करना चाहिए ताकि थनों में किसी तरह का संक्रमण न फैले। थैनेला रोग जैसी समस्याओं से बचाव के लिए भी डॉक्टर की सलाह ली जानी चाहिए।
अगर पशु को अफरा हो जाए तो घरेलू उपाय के तौर पर 500 ग्राम सरसों के तेल में 50 ग्राम तारपीन का तेल मिलाकर दिया जा सकता है। इसके अलावा पशु की सेहत और दूध उत्पादन को बनाए रखने के लिए रोजाना 50 से 60 ग्राम मिनरल मिक्चर देना लाभकारी होता है। हरे चारे की कमी को दूर करने के लिए गेहूं की कटाई के तुरंत बाद ज्वार, मक्का या लोबिया की बुआई करनी चाहिए।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इन उपायों को नियमित रूप से अपनाया जाए तो गर्मियों के मौसम में भी पशुओं को स्वस्थ रखा जा सकता है और दूध उत्पादन में गिरावट से बचा जा सकता है। इससे न केवल पशुपालकों को मानसिक शांति मिलेगी बल्कि आर्थिक रूप से भी वे मजबूती के साथ आगे बढ़ सकेंगे।