कृषि पिटारा

बेमौसमी सब्जियों की पौध तैयार करने के आधुनिक गुर

भारतीय कृषक अब जान गया हैे कि सब्जी उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने से बीज की महत्वपूर्ण भूमिका है। उच्च गुणवत्ता के बीजों से स्वस्थ नर्सरी बनाकर सब्जी उत्पादन करने से 15-20 प्रतिषत तक उत्परदन में वृद्वि की जा सकती है।

कृषि जगत से आये इस बदलाव की वजह सें आज भारतीय कृषकों का रूझान संकर किस्मों के बीजो की तरफ बढ़ा है। आमतौर पर विभिन्न सब्जियों के संकर बीज बिभिन्न कम्पनियों द्वारा महॅंगें दामों पर बेचे जातें है। ऐसे में हर कृषक को हर बीज के अकुंरण के बारें में जागरूक होना आवष्यक हो जाता है।परन्तु आमतौर पर समस्या यह होती है कि ज्यादातर उत्पादकों के परस इन महॅंगें बीजों से उच्च गुणवत्ता वाली स्वस्थ पौध तैयार करने वाली तकनीकी जानकारी का आभाव रहता है।

वर्षा ऋतु  एवं उसके पष्चात् सब्जियों की स्वस्थ पौध तैयार करना कठिन कार्य होता हेै। क्योंकि अत्यधिक खरपतवारों के खुले खेत में उग जाने से विभिन्न प्रकार के कीटों जैसे एफिड, सफेदमखी, इत्यादि की जनसंख्या में बढ़ोत्तरी होती हे जो कि स्वस्थ पौध तैयार करने की प्रक्रिया में बॉंधा डालते है। दूसरा, उच्च आर्द्रता एवं अधिक  तापमान होने के कारण मिटृी में मिटृी जनित रसेग फैलाने वाले कवकों की सक्रियता अत्यधिक हो जाती हे । इन सब से बचा कर उत्पादक अगर नर्सरी तेयार भी कर लेता है तो भी मुख्य मौयम होने के कारण उत्पादको का उनके उत्पाद का बहुत कम भाव ही मिल पाता है क्योंकि बाजार में उत्पाद की आवक बढ़ जाती है। ऐसे में कृषक के पास एक मात्र विकल्प रह जाता है वह है बेमौसमी सब्जी उत्पादन।

इससे कृषक का उत्पाद उनके मौसम से पहले या मौसम के बाद बाजार में जाता हे जिस समय मॉग अत्यधिक  और आवक कम होती हेै जिससे कृषक को ज्यादा मुनाफा प्राप्त होता हेै। परन्तु इसके लिए आवष्यक हो जाता है बेमौसमी सब्जी उत्पादन के लिए पौध तैयार करना, जोकि एक कठिन कार्य होता है। ग्रीन हाऊस जैसी संरक्षित संरचनाओं के प्रयोग द्वारा बेमौसमी एवं विषाणु रोग रहित पौध को तैयार किया जा सकता है।

(अ)ग्रीन हाऊस (हरित गृह)ः- 500 वर्ग मीटर क्षेत्रफल के ग्रीन हाऊस में लगभग 2.5लाख पौध तैयार की जा सकती है।

1.      ग्रीन हाऊस में दो दरवाजे होने चाहिये जिससे की दरवाजांे के द्वारा कीटों का प्रवेष पूर्णरूप से रोका जा सके।

2.      पहले दरवाजें के बाहर वॉषबेसिन या वॉष टब होना चाहिए जिसमें फारमेलीन का घोल मिला होना चाहिए ताकि हर आगन्तुक उसमें जूते चप्पल डूबोकर ग्रीन हाऊस के अन्दर जाये। ताकि संक्रमण को रोका जा सके।

3.      ग्रीन हाऊस के चारों ओर 50 मेष आकार का नायलोन नेट लगाकर उसके ऊपर प्लास्टिक ढ़का जाता है जिससे कीटों जैसे जैसिड़,एपिड़, सफेदमखी, थ्रिप्स इत्यादि का प्रवेष निषेध किया जा सके। ताकि विषाणु रोग फेैलाने वाले मुख्य स्त्रोत पर अंकुष लगाया जा सके एवं स्वस्थ पौध तैयार की जा सके।

4.      गर्मियों के समय 50 प्रतिषत षेडनेट को फैलाकर छाया की जाती हे और सर्दियों में बंद (इकठ्ठी) एक जगह की दी जाती है ताकि धूप आ सके और जरूरत पड़ने पर हिटर का भी प्रयोग किया जा सकता हे आमतौर पर जब 14-15 डिग्री सेल्सियस से तापमान नीचे चला जाता है।

5.      सीमेंट,कंक्रीट या ईटों का इस्तेमाल कर ग्रीन हाऊस के अंदर पक्का फर्ष बनाया जा सकता हेै।

6.      जहॉं सर्दियॉं ज्यादा पड़ती हेै वहॉं उचित समय पर सब्जियों के बीज अंकुरित करने के लिए एक छोटा सा अंकुरण गृह भी प्लास्टिक फिल्म की सहायता से ग्रीन हाऊस के अंन्दर बनाया जा सकता है जिसमें 24-25 डिग्री सेल्सियस तापमान रखा जाता है।

(ब) पौध उगाने के लिए माध्यमः- परलाइट, वरमीकुलाइट व कोकोपीट का 113 अनुपात का मिश्रण तैयार करके उसका उपयोग मिटृी रहित माध्यम के रूप में किया जा सकता है।

परलाइट वोल्केनिक उत्पत्ति की चटृानों से निकले पदार्थ को अत्यधिक तापक्रम (980 डिग्री सेल्सियस ) पर गर्म करके तैयार किया जाता है।

कोकोपीट को नारियल के कवच के ऊपर उपस्थित रेषों से तैयार किया जाता है। कोकोपीट सप्लाई करने वाले ज्यादातर कम्पनीयॉं कोयम्बटूर(केरला) में स्थित है।

उपरोक्त तैयार मिश्रण में जड़ों का विकास अच्छा होता है और यह माध्यम पूर्णतया रोगाणु रहित होते है।साथ ही पानी का निकास एवं वायु संचार तीनों माध्यमों के मिश्रण में अच्छा होता है।

(स) प्लास्टिक टेª (प्रो ट्रे) का उपयोगः-

विभिन्न सब्जियों की पौध तैयार करने के लिए दो प्रकार के छेदों के आकार वाली प्रो टेª का इस्तेमाल किया जाता है। 1.0 से 1.5 वर्ग इंच छेदों के आकार वाली प्लास्टिक टेª का प्रयोग आमतौर पर रंगीन षिमला मिर्च, ब्रौकली, लेट्यूस, लालगोभी, पत्तागोभी, गॉंठगोभी, फूलगोभी इत्यादि की पौध तैयार करने के लिये की जाती है। जबकि 1.5 से 2.0 वर्ग इंच छेदों के आकार वाली प्लास्टिक टेª का प्रयोग लौकी, तरबूज, खरबूजा, खीरा, टमाटर, तोरई, बैंगन, कद्दू, इत्यादि की पौध तैयार करने के लिये की जाती है। प्लास्टिक टेª में लचक होनी चाहिए। 98 छेदों वाली प्लास्टिक टेª ज्यादा प्रचलन में है। एक मजदूर द्वारा लगभग 200 प्लास्टिक की टेª माध्यमों के मिश्रण से एक कार्यदिवस (8 घंटे) भरी जानी चाहिए।

टेª भरने के पष्चात् प्रत्येक छेद में एक बीज बोया जाता है। बाद में बीजों के ऊपर वर्मीकुलाइट की एक पतली परत डाली जानी चाहिए। अंकुरण के लिए 24 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त रहता है। टेª में बीजों के अंकुरण होने पर ग्रीन हाऊस के फर्ष पर फैलाकर रखनी चाहिए। फर्ष अगर कच्चा है तो प्लास्टिक फिल्म फैलाई जानी चाहिए। ताकि पौधे की जड़ों का सम्पर्क ना हो सके वरना संकमर्ण होने का डर रहता हेै।

पौध की प्रारम्भिक अवस्था में 70 पी.पी.एम. (10 लाख भाग में 70 भाग) घोल जिसमें नत्रजन, फास्फोरस व पौटाष को 111 अनुपात में मिला कर बनाया जाता है। खाद एवं पानी को फव्वारा पद्वति या बूम प्रणाली द्वारा दिया जाता हैं जिससे समान मात्रा में खाद एवं पानी सभी पौधों को प्राप्त हो सकें, ताकि उनकी समान बढ़वार एवं अच्छी गुणवत्ता बनाई रखी जा सके। तैयार पोैधों को माध्यम सहित निकाल कर मुख्य खेत में रोपाई की जाती है। माध्यम के चारों ओर अच्छा जड़ तंत्र विकसित हो जाता है जो कि एक अच्छी पौध की ओज एवं गुणवत्ता को दर्षाता है।

टेª के फायदेः-

1.      पौध को कम समय में तैयार किया जा सकता है।

2.      बीज की मात्रा कम लगती हैं।

3.      मरण क्षमता (उवतजंसपजल) स्थानांतरण के समय कम होती है।

4.      पौध मुख्य खेत में स्थानांतरण के उपरान्त तुरन्त स्थापित हो जाती हैं।

5.      पौधे की जड़ तंत्र का विकास बहुत अच्छा होता हैं

6.      बेैमौसमी सब्जियों की पौध आसानी से तेैयार की जा सकती हैं

7.      पोैध अधिक गुणवत्ता वाली होती है जिसके फलस्वरूप अधिक  उत्पादन प्राप्त किया जाता हैं।

8.      इस विधि में कम खाद एवं पानी की आवष्यकता होती है।

9.      इस विधि में पौधों की बढ़वार एक समान होती हैं।

10.    पौध को समस्त प्रकार के मिटिृ जनित रोगों (कवक) एवं विषाणु रोगों प्रकोप से बचाया जा सकता हैं।

11.    कद्दू वर्गीय सब्जियों की पौध को भी इस विधि द्वारा आसानी से तेयार किया जा सकता है। जिसको की जमीन पर क्यारियॉं बना कर पौध तैयार करना संभव नहीं होता था।

परम्परागत विधि द्वारा अन्य सब्जियों की स्वस्थ पौध तैयार करने के लिए नर्सरी की मिटृी, फार्म यार्ड मेन्योर या वर्मीकम्पोस्ड को फोर्मेल्डिहाइड के घोल द्वारा कीटाणु रहित किया जा सकता है और 21 (मिटृी: फार्म यार्ड मेन्योर या वर्मीकम्पोस्ड ) के मिश्रण में बीजो का रोपण कर, जमीन पर ऊठी हुई क्यारियों पर पौध तैयार की जा सकती है।

इन सब के अलावा कम लागत वाली संरक्षित संरचनाओं जैसे पोलीटनलस में भी सब्जियों की स्वस्थ एवं मौसमी पौध तैयार की जा सकती है। इस प्रकार लोटनल का निमार्ण कयारियों की चौडाई एवं लम्बाई के अनुरूप की जाती है एवं ऊॅंचाई जमीन की सतह से 1.0 से 1.5 फुट तक आमतौर पर रखी जाती है । इसको बनाने के लिए पतले तारों को इस्तेमाल किया जाता है एवं ढ़ॉंचे को ढ़कने के लिए 40 मेष का नेट काम में लिया जाता है और नेट के किनारों को मिटृी में दबा दिया जाता है। इस ढॉंचे का निर्माण जमीन से 15 से.मी. की ऊंॅची उठी क्यारियों में बीज की रूपाई करने के बाद किया जाता है। इसको बनाने कि लिए वाक-इन-टनल के मुकाबले कम खर्च आता है।

इस प्रकार के ढ़ॉंचे में पौध तैयार करने से पौध पर किसी प्रकार के कीटों का विषेषतौर पर सफेदमखी का आक्रमण नहीं हो पाता है जिससे पौधों को विषाणु रोगों से बचाव होता है। साथ ही पौधों को सर्दियों में पाले से बचाया जा सकता है एवं अच्छी गुणवत्ता की स्वस्थ पौध तेैयार की जा सकती हेै। साथ ही बाहरी वातावरण में तेयार की गई पोैध के मुकाबलें कम समय में तैयार की जा सकती है।

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