एमएसपी के मुद्दे पर एक तरफ जहाँ सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है वहीं एक स्थिति ऐसी बन रही है कि आने वाले कुछ ही दिनों में सरकार की नींद उड़ने वाली है। मगर इस बार सरकार की नींद कोई और नहीं बल्कि उनकी नीतियों के केंद्र में रहने वाले किसान और खेतिहर ही उड़ाने वाले हैं। दरअसल, केंद्र सरकार की ओर से चालू वर्ष में खरीफ की कुल 14 फसलों के लिए एमएसपी की ताज़ा दरें घोषित हुए अभी ठीक से एक महीना भी नहीं गुज़रा और किसानों का असंतोष खुल कर सामने आने लगा है। देश भर के तक़रीबन 200 किसान संगठनों ने वर्तमान एमएसपी को किसानों के साथ धोखा बताया है और अपने असंतोष से सरकार को वाकिफ करवाने के लिए ये किसान संगठन पूरी तरह से कमर भी कस चुके हैं। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में यह फैसला लिया गया है कि एमएसपी के मुद्दे पर चार माह में चार सौ बैठक होंगी। 20 जुलाई को देशभर के किसान दिल्ली में मंडी हाउस से लेकर संसद मार्ग तक काली पट्टी बांधकर विरोध मार्च निकालेंगे। एआईकेएससीसी के संयोजक वी एम सिंह ने कहा कि, “नरेन्द्र मोदी की 40 बैठकों का जवाब देशभर में 400 मीटिंग करके दिया जाएगा।” बताते चलें कि, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने फसलों के एमएसपी को सी2 के फार्मूले के तहत उत्पादन की कीमत तय कर उस पर 50 फीसदी मुनाफा दिए जाने की मांग की थी।
एमएसपी के अंतर्गत निर्धारित दरों के बारे में श्री सिंह खुल कर बोलते हैं, “सरकार समर्थन मूल्य लागत का डेढ़ गुना करने के नाम पर झूठ बोल रही है। इसलिए 18 जुलाई से शुरू हो रहे मॉनसून सत्र में दोनों बिल ‘किसानों की पूर्ण कर्ज माफी’ एवं फसलों के लिए ‘सुनिश्चित लाभकारी मूल्य अधिकार बिल 2018’ को संसद में 20 जुलाई को पेश करेंगे। इस मौके पर हजारों किसान लोकसभा का घेराव कर सांसदों से किसानों के दोनों बिलों को समर्थन देने की मांग करेंगे।” उन्होंने यह भी कहा कि, “देश का किसान अब जागरुक हो गया है, तथा अपनी लड़ाई खुद ही लड़ेगा। केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ 30 नवंबर को दिल्ली में किसान मुक्ति मोर्चा निकाला जायेगा। इसमें दिल्ली के सभी प्रवेश द्वारों से लाखों की संख्या में किसान दिल्ली पहुंचेंगे।”
इंडिया अगेंस्ट करप्सन से निकल कर आये जननेता व स्वराज अभियान के संस्थापक सह जय किसान आंदोलन के संयोजक योगेंद्र यादव ने भी अपना रुख स्पष्ट कर दिया है और कहा है कि, “सरकार दावा कर रही है धान के एमएसपी में 200 रुपये की बढ़ोतरी, लागत का डेढ़ गुना के आधार पर तय की गई है। जबकि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) द्वारा तय लागत सी2 के आधार पर यदि धान का एमएसपी तय होता तो यह 2,340 रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिए था जबकि धान का वर्तमान एमएसपी 1,750 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। अत: किसानों को 590 रुपये प्रति क्विंटल का घाटा हो रहा है। इसी तरह से ज्वार पर 845 रुपये और रागी पर 660 रुपये प्रति क्विंटल का घाटा लगेगा।” योगेन्द्र यादव ने यह भी बताया कि 8 से 10 अक्टूबर तक किसान संगठन देशभर की मंडियों का दौरा करेंगे और यह जानने की कोशिश करेंगे कि जो तथाकथित एमएसपी तय किया गया है वह भी किसानों को मिल रहा है या नहीं। साथ ही इस दौरान वो किसानों को अपने अधिकारों के लिए जागरुक भी करेंगे।
अब देखना यह है कि, किसानों के विरोध का सरकार पर क्या असर पड़ता है। पर एक बात तो स्पष्ट है कि, देर से ही सही मगर अब देश की खेतिहर जमात तकनीक संपन्न तो हो ही रही है, साथ ही अपने सम्बन्ध में बन रही नीतियों का भला बुरा भी समझने लगी है। और यही नहीं, अब किसानों का विरोध सुदूर गाँव से चलकर सड़क तक और सड़क से सत्ता के गलियारे तक भी सुनाई दे जाता है। अब समय और किसान दोनों बदल चुके हैं शायद।