उत्तर प्रदेश सरकार किसानों की आय बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है, और अब मखाने की खेती को प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया गया है। सरकार इस दिशा में कदम उठाते हुए मखाना उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रति हेक्टेयर 40,000 रुपये का अनुदान प्रदान करेगी। यह पहल विशेष रूप से पूर्वांचल के उन क्षेत्रों के लिए की गई है, जहां की जलवायु मखाना उत्पादन के लिए उपयुक्त मानी गई है, जैसे बिहार का मिथिलांचल क्षेत्र।
33 हेक्टेयर का लक्ष्य
गोरखपुर, कुशीनगर, और महाराजगंज जिलों में इस साल मखाना की खेती के लिए 33 हेक्टेयर का लक्ष्य रखा गया है। पिछले साल देवरिया जिले में इसका सफल प्रयोग हुआ था। मखाने की खेती उन क्षेत्रों में अधिक लाभकारी होती है, जहां जलभराव की समस्या रहती है। इन क्षेत्रों में खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं, क्योंकि गोरखपुर मंडल की जलवायु और तालाबों की प्रचुरता मखाने की खेती के लिए उपयुक्त है।
मखाना की खेती की प्रक्रिया
मखाना की खेती तालाब नुमा खेतों में की जाती है, जिनमें तीन फीट पानी भरा होता है। नवंबर में नर्सरी लगाई जाती है और फरवरी-मार्च में पौधों की रोपाई की जाती है। लगभग पांच महीने बाद पौधों में फूल लगने शुरू हो जाते हैं और कटाई अक्टूबर-नवंबर में की जाती है। मखाना की खेती में करीब 10 महीने का समय लगता है, जिससे किसानों को तालाबों का अच्छा उपयोग भी हो जाता है, खासकर मछली पालन करने वाले किसानों के लिए यह एक अतिरिक्त आय का स्रोत बन सकता है।
मखाना: एक सुपरफूड
मखाना को स्वास्थ्य के लिए एक सुपरफूड माना जाता है, जिसमें प्रोटीन, फाइबर, आयरन, कैल्शियम, और फास्फोरस जैसे पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं। इसकी बढ़ती मांग, खासकर कोरोना महामारी के बाद, सेहत के प्रति जागरूकता बढ़ने के कारण और अधिक हो गई है। मखाना हृदय रोग, उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसी बीमारियों में भी फायदेमंद माना जाता है। सरकार की इस पहल से किसानों की आय में वृद्धि होगी और मखाने की बढ़ती मांग को पूरा करने में भी सहायता मिलेगी।