गेहूं दुनिया में सबसे ज्यादा खाए जाने वाला अनाज है l गेहूं उत्पादन में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है l गेहूं की बहुत सी किसमें होती हैं पर हम आज बात करेंगे काले गेहूं की l आज पूरे भारतवर्ष के किसानों का रुझान काले गेहूं की तरफ बढ़ रहा है और हमारे प्रदेश के किसान भी इससे अछूते नहीं हैं l
काले गेहूं के गुणों के कारण एवं लोगों में स्वास्थ्य के प्रति पिछले कुछ वर्षों में आई जागरूकता के कारण काले गेहूं का निर्यात बढ़ा है साथ ही बाजार में भी इसकी मांग बढ़ी है l इसलिए काले गेहूं की फसल की बुवाई का रकबा हर वर्ष बढ़ रहा है l आज हमारे अन्नदाता का रुझान भी सामान्य गेहूं की तुलना में काले लोगों की तरफ बढ़ रहा है क्योंकि इसमें मुनाफा ज्यादा है l
वैज्ञानिक डॉ मोनिका गर्ग के नेतृत्व में वर्ष 2010 में काले गेहूं का पर शोध शुरू किया गया था l मोहाली स्थित नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट के 7 साल के शोध के बाद काले गेहूं का पेटेंट कराया गया l एन ए बी आई ने इस गेहूं को “नाबी एम जी ” नाम दिया l
काला गेहूं एक जेनेटिक मॉडिफाइड प्रोडक्ट है l इसमें प्रोटीन एंटी ऑक्सीडेंट वह पॉलिसैचेराइड होते हैंl काले गेहूं की खेती पहली बार 2017 में पंजाब में की गई थी l उसके पश्चात राजस्थान हरियाणा मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश एवं अन्य प्रदेशों मे भी इसकी खेती प्रायोगिक तौर पर शुरू हो गई l
काले गेहूं के औषधीय गुण
इसमें पाए जाने वाला एंथ्रोसाइनीन एक नेचुरल एंटी ऑक्सीडेंट व एंटीबायोटिक है, जो हार्ट अटैक, कैंसर, शुगर, मानसिक तनाव, घुटनों का दर्द, एनीमिया जैसे रोगों में काफी कारगर सिद्ध होता है। काले गेहूं रंग व स्वाद में सामान्य गेहूं से थोड़ा अलग होते हैं, लेकिन बेहद पौष्टिक होते हैं।
नाबी ने विकसित की काले गेहूं की नई किस्में
सात बरसों के रिसर्च के बाद काले गेहूं की इस नई किस्म को पंजाब के मोहाली स्थित नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नॉलजी इंस्टीट्यूट या नाबी ने विकसित किया है। नाबी के पास इसका पेटेंट भी है। इस गेहूं की खास बात यह है कि इसका रंग काला है। इसकी बालियां भी आम गेहूं जैसी हरी होती हैं, पकने पर दानों का रंग काला हो जाता है। नाबी की साइंटिस्ट और काले गेहूं की प्रोजेक्ट हेड डॉ. मोनिका गर्ग के अनुसार नाबी ने काले के अलावा नीले और जामुनी रंग के गेहूं की किस्म भी विकसित की है।
काले गेहूं की तरह ही काला चावल भी होता है। इंडोनेशिअन ब्लैक राइस और थाई जैसमिन ब्लैक राइस इसकी दो जानीमानी वैरायटी हैं। म्यामांर और मणिपुर के बॉर्डर पर भी ब्लैक राइस या काला चावल उगाया जाता है। इसका नाम है चाक-हाओ। इसमें भी एंथोसाएनिन की मात्रा ज्यादा होती है।
काले गेहूं में एंथोसाइएनिन पाया जाता है जो कि एक प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट एवं एंटीबायोटिक है l जो की हर्ट अटैक, कैंसर, मधुमेह, मानसिक तनाव, घुटनों का दर्द, एनीमिया जैसे रोगों से निजात दिलाने में काफी हद तक सक्षम है l
काला गेहूं स्वाद एवं रंग में सामान्य तौर से उगाए जाने वाले गेहूं से भिन्न होता है परंतु यह स्वास्थ्यवर्धक है साथ ही बेहद पौष्टिक भी l
काले गेहूं में जिंक 60 प्रतिशत एवं एंथोसाइएनिन 100 से 200 पीपीएम तक पाया जाता है l वहीं सामान्य तौर पर गाए जाने वाले गेहूं में जिंक शुन्य प्रतिशत एवं एंथ्रोसाइनइन 5 पीपीएम पाया जाता है बाकी पोषक तत्व एवं स्टारच समान रूप से पाया जाता है l काला गेहूं शुगर फ्री की श्रेणी में आता है l
इस गेहूं की विशेषता यह है की इसका रंग काला होता है l इस की बालियां आम तौर पर उगाए जाने वाले गेहूं की तरह होती हैं परंतु पकने के बाद दानों का रंग काला हो जाता है l
काले गेहूं, इस नई किस्म को पंजाब के मोहाली स्थित नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट ने विकसित किया है साथ ही इसका पेटेंट भी करवाया गया है l
काले गेहूं की बुवाई सामान्य गेहूं की तरह ही होती है l काला गेहूं लगाने का कार्य किसान 30 नवंबर तक कर सकते हैं अगर इसकी बुआई में देरी होती है तो फसल की पैदावार में कम होती है l 75 से 150 किलो काले गेहूं की बीज दर रखी जाती है l काले गेहूं को 6 से 7 सिंचाई की आवश्यकता होती है l फसल की पहली सिंचाई 3 सप्ताह बाद करें, फूटाव आने पर , गांठ बनते समय, बालियां निकलने से पहले, दूधिया दशा में और दाना पकते समय सिंचाई अवश्य करें l
खरपतवार नियंत्रण
गेहूं के साथ अनेक प्रकार के खरपतवार उग जाते हैं। यदि इन पर नियंत्रण नहीं किया जाए तो गेहूं की उपज में 10-40 प्रतिशत हानि पहुंचने की संभावना होती है। गेहूं के खेत में चौड़ी पत्ती वाले और घास कुल के खरपतावारों का प्रकोप होता है। कृष्णनील, बथुआ, हिरनखुरी, सैंजी, चटरी-मटरी, जंगली गाजर आदि खरपतवारों पर के नियंत्रण के लिए 2,4-डी इथाइल ईस्टर 36 प्रतिशत (ब्लाडेक्स सी, वीडान) की 1.4 किग्रा. मात्रा अथवा 2,4-डी लवण 80 प्रतिशत (फारनेक्सान, टाफाइसाड) की 0.625 किग्रा. मात्रा को 700-800 लीटर पानी मे घोलकर एक हेक्टर में बोनी के 25-30 दिन के अन्दर छिडक़ाव करना चाहिए। वहीं संकरी पत्ती वाले खरपतवारों में जंगली जई व गेहूंसा का प्रकोप अधिक देखा गया है। यदि इनका प्रकोप अधिक हो तब उस खेत में गेहूं न बोकर बरसीम या रिजका की फसल लेनी लेना फायदेमंद रहता है।
इनके नियंत्रण के लिए पेन्डीमिथेलिन 30 ईसी (स्टाम्प) 800-1000 ग्रा. प्रति हेक्टर अथवा आइसोप्रोटयूरॉन 50 डब्लू.पी. 1.5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर को बोआई के 2-3 दिन बाद 700-800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिडक़ाव करना चाहिए। इकसे बाद खड़ी फसल में बोआई के 30-35 दिन बाद मेटाक्सुरान की 1.5 किग्रा. मात्रा को 700 से 800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिडक़ाव करना चाहिए। मिश्रित खरपतवार की समस्या होने पर आइसोप्रोट्यूरान 800 ग्रा. और 2,4-डी 0.4 किग्रा. प्रति हे. को मिलाकर छिडक़ाव करना चाहिए। गेहूं व सरसों की मिश्रित खेती में खरपतवार नियंत्रणके लिए पेन्डीमिथालिन का छिडक़ाव किया जा सकता है। काले गेहूं का उत्पादन 15 से 18 क्विंटल प्रति एकड़ प्राप्त किया जा सकता है l
काला गेहूं क्या भाव बिकता है?
काला गेहूं 7 से 8 हजार रुपए प्रति क्विंटल में बिकता है। जबकि साधारण गेहूं का भाव 2 हजार रुपये क्विंटल है। ऐसे में सामान्य की अपेक्षा काले गेहूं में चार गुणा ज्यादा मुनाफा है। काले गेहूं में कई पौष्टिक तत्व होते हैं।
अच्छी पैदावार के लिए 30 नवंबर से पहले करें बुवाई
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि मौजूदा समय काला गेहूं खेती के लिए उपयुक्त है, क्योंकि इसकी खेती के लिए खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। किसान 30 नवंबर तक की इस गेहूं की बुवाई आसानी से कर सकते हैं। अगर इसकी बुवाई देर से की जाए, तो फसल की पैदावार में कमी आ जाती है
काले गेहूं का बाजार में मूल्य 4000 से लेकर ₹10000 प्रति क्विंटल तक देखा गया है जोकि सामान्य गेहूं की मिनिमम सपोर्ट प्राइस से दो से 5 गुना ज्यादा है l