कृषि पिटारा

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लेकर कृषि संबंधी संसदीय समिति ने सौंपी अपनी रिपोर्ट

नई दिल्ली: किसानों की वित्तीय स्थिति में सुधार करने तथा उनकी उपज को बीमा के माध्यम से सुरक्षित करने के लिए केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत कर रखी है। यह योजना किसानों के लिए बहुत मददगार साबित हो रही है, विशेष रूप से उस स्थिति में जब उनकी फसल किसी प्रकृतिक आपदा की वजह से बर्बाद हो जाती है। ऐसा होने पर उन्हें इसके बदले में मुआवजा दिया जाता है।

इन तमाम सकारात्मक पहलुओं के बावजूद भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लागू करने के स्तर पर कुछ खामियाँ देखने को मिल रही हैं, जिनके बारे में पीसी गद्दीगौदर की अध्यक्षता वाली कृषि संबंधी संसदीय स्थाई समिति ने लोकसभा में अपनी 29वीं रिपोर्ट प्रस्तुत की है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में योजना को लेकर सरकार को कुछ सुझाव दिये हैं। साथ ही फसल बीमा योजना के तहत किसानों द्वारा किए गए दावों के निपटान में देरी की वजह से सरकार की आलोचना भी की है। अपनी रिपोर्ट में समिति ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को और अधिक तकनीक आधारित व किसानों के अनुकूल बनाने का सुझाव दिया है।

यह देखने में आ रहा है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत काफी किसान फसल के मुआवजे के लिए बीमा कंपनियों के पास क्लेम करते हैं, लेकिन बीमा कंपनियां निर्धारित समय सीमा के अंदर दावा राशि का भुगतान नहीं करती हैं, जबकि इसके लिए 30 दिन की समय सीमा दी गई है। संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में केंद्रीय कृषि मंत्रालय को तय समय सीमा के भीतर दावों का निपटान नहीं करने वाली बीमा कंपनियों के विरुद्ध कार्रवाई करने का सुझाव दिया है। यही नहीं, समिति ने सरकार से पंजाब, बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना और झारखंड द्वारा योजना को वापस लेने या लागू नहीं करने के कारणों का विश्लेषण करने व उपयुक्त कदम उठाने के लिए कहा है।

पीसी गद्दीगौदर की अध्यक्षता वाली कृषि संबंधी संसदीय स्थाई समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि, ‘‘समिति का मानना है कि दावों के निपटारे में देरी किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं है। इसलिए हम कृषि मंत्रालय से इस योजना को अधिक से अधिक तकनीक आधारित बनाने की सिफारिश करते हैं।’’

आपको बता दें कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को वर्ष 2016 के खरीफ सत्र से लागू किया गया था। यानी इस योजना को लागू हुए अब लगभग 5 वर्ष हो चुके हैं। इसे सार्वजनिक क्षेत्र की पांच और निजी क्षेत्र की 13 कंपनियों के जरिये चलाया जा रहा है।

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