कृषि पिटारा

बढ़िया मुनाफे से भरी है परवल की खेती, रोग प्रबंधन के लिए अपनाएँ ये उपाय

नई दिल्ली: परवल एक प्रमुख बाग़वानी फसल है, जिसका वैज्ञानिक नाम “Trichosanthes dioica” है। परवल का पौधा उच्चतम गर्मियों में फलदार होता है। इसके फल सामान्यत: हरे रंग के होते हैं, लेकिन इनमें कई बार गहरे हरे से लेकर पीले रंग के फल भी पाए जाते हैं। परवल की खेती भारत में बहुत ही प्रचलित है और इसे अक्सर गर्मियों की फसल के रूप में बोया जाता है। यह फसल देश के विभिन्न भागों में प्राप्त होती है। परवल की खेती के लिए कृषि भूमि की तैयारी करनी पड़ती है, जिसमें खेत की अच्छे से जुताई की जाती है और उपयुक्त उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है। परवल के बीज उस सीजन में बोये जाते हैं जब बारिश की संभावना होती है, जैसे कि मॉनसून के समय।

परवल के पौधों को उचित दूरी पर बोना आवश्यक है, क्योंकि इससे उत्पादन क्षमता प्रभावित होती है। पौधों के बीच में पर्याप्त जगह होने से उनपर सूर्य का प्रकाश ठीक से पड़ता है। परवल के पौधों को नियमित रूप से पानी व खाद्य सामग्री देना भी अति आवश्यक है। जब परवल के फल उचित वृद्धि कर लेते हैं तो उनको सावधानी से काटा जाता है, क्योंकि यह फल कांटेदार होता है।

परवल की खेती में कई प्रकार के रोग प्राकृतिक रूप से उत्पन्न हो सकते हैं और पौधों को प्रभावित कर सकते हैं। इन रोगों की समय पर पहचान और उनका प्रबंधन करना आवश्यक है ताकि फसल की उपज को सुरक्षित रखा जा सके। परवल के कुछ प्रमुख रोग इस प्रकार हैं:

1. डेड़ा दाग या आंख पड़ना (Leaf Spot): यह रोग परवल के पत्तों को छोटे गहरे दागों से ढँक देता है। इसका प्रबंधन फंगीसाइड्स का प्रयोग करके किया जा सकता है।

2. एंथ्रैक्नोजन डायमंड बैक (Anthracnose Diamond Back): यह रोग पत्तियों के केंद्र में दाग या गहरे सीये के रूप में प्रकट होता है। इसका प्रबंधन भी फंगीसाइड्स से किया जा सकता है।

3. ब्लाइट डिसीज (Blight Disease): यह रोग परवल के पौधों के हरे भागों पर धूलीदार दागों के रूप में प्रकट होता है और उन्हें सूखा देता है। ऐसी स्थिति में कीटनाशकों और कीट प्रबंधन उपायों का प्रयोग किया जा सकता है।

4. अपहृत डायमंड बैक (Downy Mildew): इस रोग में पत्तियों पर एक विशेष प्रकार के दाग दिखाई देते हैं और उनकी छाया धूल जैसी होती है। इसका प्रबंधन उपयुक्त फंगीसाइड्स का प्रयोग करके किया जा सकता है।

5. रूट-क्नॉट नेमैटोड (Root-Knot Nematode): इस कीट से पौधों की जड़ों को नुकसान पहुँचता है और फसल की उपज कम हो जाती है। इसका प्रबंधन नेमैटोसाइड्स का प्रयोग करके किया जा सकता है।

परवल की खेती में रोगों के प्रबंधन के लिए सावधानी और नियमित जाँच-परीक्षण की आवश्यकता होती है। किसानों को अपनी फसलों को स्वस्थ और सुरक्षित रखने के लिए स्थानीय कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए और उनके मार्गदर्शन के अनुसार फसल की देखभाल करनी चाहिए।

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