भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सब्जी उत्पादक देश है। जबकि सब्जियों एवं फल वाली बागवानी फसलों में चीन पहले स्थान पर है। भारत में आलू, टमाटर, भिंडी, बैगन वाली सब्जियाँ एवं बेलवाली सब्जियाँ इत्यादि मुख्य रुप से उगाई जाती है। फूल-गोभी, प्याज एवं बंद-गोभी के उत्पादन में भारत की विश्व के पहले तीन देषो में गिनती होती है। नेषनल होर्टीकल्चर बोर्ड की 2012-13 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 9,21 मिलियन हैक्टर भूमि पर सब्जियों की खेती की जाती है। अैार हमारे देष में कुल सब्जियों का उत्पादन 162,19 मिलियन मैट्रिक टन था। इसमें कोइ शक नहीं की हम कुल उत्पादन ज्यादा करते है। परन्तु यह भी दुनिया का कड़वा सच है कि हम तैयार माल को बर्बाद भी ज्यादा करतें है। लगभग 25 से 30 प्रतिषत तक। इसके पीछे एक मात्र कारण हैए तुड़ाई उपरान्त प्रबन्धन में अपनाई जाने वाली उपयुक्त तकनीक का अभाव होना।
तुडाई:- यह तुडाई उपरान्त प्रबन्धन की एक महत्वपूर्ण क्रिया एवं पायदान है। जिस पर सभी प्रकार की तूडाई उपरान्त प्रबन्धन की क्रियाऐ निर्भर करती है। अतः सही समय एवं सही अवस्था पर उत्पादों को तोडना चाहिए। तुडाई सुबह या ष्षाम के समय करनी चाहिए। सब्जियों की तुडाई सही अवस्था में करनी चाहिए । इसके लिए कृषक को सदैव तैयार रहना चाहिए।
विभिन्न प्रकार की सब्जियों की तुड़ाई की सही अवस्था
क्र.सं. सब्जियाँ तुड़ाई की अवस्था
1. टमाटर एक जैसा रंग विकसित होने पर
2. गाजर जड़ का उपरी भाग 1.25 इंच व्यास होने पर
3. आलू जब पते सूख जायें
4. मटर जब दाने बन जाये
5. बैगन रंग हल्का पड़ने से पहले
6. खीरा 16 से 23 सेमी लम्बाई (सलाद), 0.5 सेमी (अचार) हल्का हरा होने पर फूल सफेद होने पर
7. फूल-गोभी फूल सफेद होने पर
8. बंद-गोभी गोभी अन्दर से सक्त होने पर
9. मूली जड़ का उपरी हिस्सा एक इंच व्यास की होने पर
मुख्य तुड़ाई उपरान्त क्रियाएँ
(अ) प्री कूलिंग:- तुड़ाई पश्चात फल एवं सब्जियों का सम्पर्क मातृ पौधे से टूट जाता है। जिससे फल एवं सब्जियों को पानी एवं पोषक तत्वों की उपलब्धता मातृ पौधे से नहीं हो पाती है। परन्तु गर्मी की वजह से श्वसन क्रिया एवं पानी की खपत बढ़ जाती है। फल एवं सब्जियों में इस का असर उनके स्वाद एवं गुणवता पर भी पड़ता है। परन्तु प्री कूलिंग द्वारा इन समस्याओं से निजात पाई जा सकती है। आम तौर पर अपनायें जाने वाले प्री कूलिंग, फोर्सड एयर कूलिग, हाइड्रो कूलिंग पैकेज, आईसिगं वैक्यूम कूलिंग इत्यादि।
(ब) धुलाई सफाई और काट छाँट:- सबसे पहले फार्म के उत्पादो की धुलाई उन पर लगी मिट्टी के कणों कीटनाषियों के अंष इत्यादि हटाने के लिए की जाती है। ज्यादातर सब्जियों को क्लोरीन के 75 से 150 पी.पी.एम. वाले पानी के घोल से धुलाई करनी चाहिए। आमतौर पर संक्रमण रोकने के लिए सोडीयम या कैलषियम हायपो क्लोराइड का प्रयोग किया जाता है। जड़ वाली सब्जियाँ जैसे गाजर, मूली, चकुंदर इत्यादि सब्जियों से डठल एवं साईड वाली पतियों की काट छाँट कर देनी चाहिए। जिससे उपलब्ध संसाधनो का सदुपयोग किया जा सके।
छटाई पष्चात साईज रंग वजन इत्यादि के आधार पर फल एवं सब्जियों की ग्रेडीग की जाती है। ग्रेडींग कामगारों द्वारा या फिर आटोमैटीक ग्रेडींग मषिनों द्वारा की जाती है।
(क) क्यूरींग:- यह एक विषेष प्रकार की प्रक्रिया है जो कि कंद एवं मूल वाली सब्जियों के लिए काम मे ली जाती है। इसे अपनाकर निम्न फायदे उठाये जा सकते हैं। जैसे तुड़ाई पश्चात कंद एवं मूल वाली सब्जियों से पानी की होने वाली कमी को रोका जा सकता है। तुड़ाई (उखाड़ते) वक्त अगर औजार से कोई जख्म जो गया हो तो वह ठीक हो या भर जाता हैं यह क्रिया भंडारण के दौरान संक्रमण से बचाता है। प्याज एवं लहसुन की गर्दन एवं बाहरी चमड़ी को सूखने से बचाता है, नमी बनाये रखता और उनके बाहरी आकार को सुधारता है।
कंद एवं मूल वाली सब्जियों की क्यूरींग के लिए उपयुक्त वातावरण
सब्जियाँ तापमान;डिग्रीसेद्ध आर, एच ;ःद्ध क्यूरींग का समय दिनों में
प्याज 35-45 60-75 0.5-1
लहसुन 35-45 60-75 0.5-1
आलू 13-17 झ80 7-15
(ख) वैक्सिंग (मोम चढ़ाना):- सब्जियों की सतह पर फूड ग्रेड वेक्स (मोम) को लगाना वैक्सिंग कहलाता है। इस तकनीक को अपनाकर साँस लेने की तीव्रता को कम किया जा सकता है। उत्पाद से होने वाली नमी की हानि को कम किया जा सकता है। और उत्पाद की गुणवता को बनाये रखने का यह सस्ता एवं अच्छा विकल्प है उन सभी उत्पादों के लिए जिनकी बाजार में कम किमत होती है। वेक्स (मोम) गर्म पानी या तेलीय पद्धार्थों में घुलनषील होते हैं। इसलिए इन्हे ग्रोथ रेगुलेटरस एवं प्रिजर वेटिव के साथ मिलाकर भी उपयोग में लिया जा सकता है। केसिन का प्रयोग आलू, गाजर, षिमला मिर्च के लिए किया जाता है। सेम पर फ्रेस का प्रयोग, टमाटर के लिए और कारनुबा वेक्स का प्रयोग बेल वर्गीय उत्पादो के लिए किया जाता है। वेक्सोल.12 को सेंट्रल फूड ट्रेनिंग एंड रिसर्च सेंटर द्वारा तैयार किया गया। वैक्सिंग कामगारो द्वारा डीपींग तरिके से किया जाता है। जिसमें उत्पादों को वेक्स के घोल में डूबोकर बाहर निकाला जाता है। वैक्सिंग मषीनों द्वारा भी की जाती है।
(ग) इरेडीएषन (विकिरणों द्वारा):- यह एक विधि है जिसके अंर्तगत खाने वाली सामग्री या उत्पादों को उच्च ऊर्जा विकिरणों या तीव्रगति के इलेक्ट्रोन द्वारा उपचारित किया जाता है। जिससे उत्पादों को तुड़ाई उपरान्त होते वाले नुकसान से बचाया जा सकता है। प्याज एवं आलू में भण्डारण के दौरान अंकुरण हो जाता है, जिससे 30-50 प्रतिषत प्याज में और 25-30 प्रतिषत आलू में नुकसान हो जाता है। उपरोक्त विधि द्वारा इस नुकसान को रोका जा सकता है।
भारत के अन्दर खाने के उत्पादो में अधिकतम विकिरण 10 ज्ञळल्तक किया जा सकता है। प्याज में (0.03-0.09 ज्ञळल्) आलू में (0.05-0.15 ज्ञळल्) और लहसुन में (0.03 से 0.15 ज्ञळल्) तक किया जाता है।
(ड़) ग्रोथ रेगुलेटर का इस्तेमाल:- इनका उपयोग करके ताजी सब्जियों की तुड़ाई उपरान्त प्रबंधन को सुधारा जा सकता है। कटाई से पहले वृद्वि नियामक व निरोधको का प्रयोग करके भण्डारण क्षमता बढाई जा सकती है। प्याज व आलू की फसल में कटाई के 15 -20 दिन पहले मैलिक हाई-ड्रेजाईड रसायन के 1500 से 2500 पी,पी,एम का छिडकाव करने पर इनमें कटाई के पष्चात 4-5 महिने तक फुटान नही होती है और उनकी भण्डारण क्षमता बढ जाती है। इसी तरह एन-6 बेन्जाईन एडेमीन के छिडकाव से पत्तेदार सब्जियाँ देरी से खराब होती है।
हरी सब्जियों के तुड़ाई उपरान्त प्रबन्धन में ग्रोथ रेगुलेटरस का योगदान यह कि अगर उन्हें ठ।च् (10 च्च्ड) के घोल से तुड़ाई उपरान्त 10 मिनिट के लिए डुबोया जाने पर सब्जियों मंे ज्यादा समय तक हरा पन रहता है।
(ड़) सब्जियों एवं फल को पकाना:- व्यवसायिक तौर पर कृत्रिम रुप से टमाटर को पकाया जाता है। इसके लिए इथलीन से टमाटरो को उपचारित किया जाता है। जब बाजार में पके हुए लाल टमाटरो की आवक कम होती है और बाजार भाव उॅंचे होते है । तब इस प्रकार कृत्रिम तरिके से टमाटर पकाये जाते है ।
च उत्पादो की पैकेजिगं एवं आवागमन:- उत्पादो की तुडाई उपरान्त प्रबन्धन में सबसे ज्यादा हानि उत्पादों को किसान के खेत से बाजार तक स्थानांतरित करने के दौरान होती है।
लेनो बैग्स का इस्तेमाल आमतौर पर प्याज, आलू, लहसुन, बन्दगोभी, चकंुदर एवं बैगन इत्यादि की पैकेजिगं के लिए किया जाता है। लेनो बैग्स जूट के बैगस की अपेक्षा ज्यादा अच्छे रहते है। इनकी भण्डारण क्षमता 1से 50 किलो गा्रम तक की होती है।
एकल पैकेजिगं मे एक सब्जी उत्पाद या 1से 5 किलो ग्राम तक के उत्पाद का भण्डारण किया जाता है। आमतौर पर यह पोलीइथाइलीन के बने होते है।
भण्डारण:- आमतौर पर भण्डारण दो प्रकार से किया जाता है। कम अवधि का भण्डारण मुख्य रुप से उत्पाद स्थानांतरण से पूर्व किया जाता है। जबकि लम्बी अवधि का भण्डारण कुछ सप्ताह से कई महिनों तक के लिए किया जाता है।सब्जियों की अत्यघिक आवक के समय जब बाजार भाव बहुत ही कम हो जाता है। तब सब्जियों को ष्षीत भण्डारण में रखकर पानी के हांॅस व ष्वसन क्रिया को कम करके लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। और अच्छे बाजार भाव प्राप्त किये जा सकतेे है।
सब्जियों के भण्डारण के प्रकार एवं तरिके कुछ मुद्वो पर निर्भर करते है। जैसे की उत्पाद का प्रकार, बाजार मंे उसकी माँॅग, किसानो की आर्थिक क्षमता, उत्पाद की मात्रा इत्यादि।
क्र, स, सब्जी तापक्रम(डिगी्र सेन्टी) आर्द्रता (प्रतिषत) भण्डारण समय( सप्ताह)
1 खीरा 10-11.7 92 02
2 हरी मिर्च 7.2 85-90 3-5
3 टमाटर 7.2 90 1
4 मटर 0 95 2-3
5 बैगन 0 ़95 3-4
6 पालक 0 95 1-2
7 पता गोभी 0-1.7 92-95 12
8 फूल गोभी 0-1.7 85-95 7
9 गाजर 0 95 20-24
10 करेला 0.6-1.7 85-90 4
11 आलू 3-4.4 85 34
12 प्याज 0 70-75 20-25
13 लहसुन 0 65 28-36
14 षकरकंद 10-12.8 80-90 13-20
आर्थिक आधार पर भण्डारण को दो भागो में विभाजित किया जा सकता है। जैसे किलो कोस्ट कम किमत वाले भण्डारण के ढॉँचे और हाईकोस्ट ज्यादा किमत वाले भण्डारण के ढॉँचे । उदाहरण के तौर पर रेफ्रीजरेटर भण्डारणए कंट्रोल एटमोषफीयर भण्डारण सी.ए.एस.ए मोडीफाइड एटमोषफीयर भण्डारण एम.ए.एस. इत्यादि।