कृषि समाचार

उत्तर प्रदेश सरकार की आलू विकास नीति: किसानों के लिए नई उम्मीदें और अवसर

उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश में आलू की खेती को बढ़ावा देने और किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए आलू विकास नीति 2014 लागू की है। इस नीति का उद्देश्य न केवल आलू उत्पादन को बढ़ाना है, बल्कि गुणवत्ता युक्त बीजों के उत्पादन, प्रोसेसिंग उद्योग की स्थापना और निर्यात को भी प्रोत्साहित करना है। इस नीति के तहत किसानों को प्रति हेक्टेयर 25,000 रुपये की सब्सिडी प्रदान की जाती है, जो डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर (DBT) के माध्यम से उनके खातों में ट्रांसफर की जाती है। यह सब्सिडी आलू बीज उत्पादन और प्रमाणीकरण की प्रक्रिया में सहायता प्रदान करती है।

आलू विकास नीति के लाभार्थी बनने के लिए किसानों को कुछ शर्तों को पूरा करना होता है। सबसे पहले, उनके पास अपनी भूमि और सिंचाई के पर्याप्त साधन होने चाहिए। इसके बाद, उन्हें आलू बीज के प्रमाणीकरण और उत्पादन में रुचि दिखानी होती है। इसके लिए, किसान को प्रसंस्कृत प्रजाति का प्रमाणित बीज प्राप्त करना होता है और उसकी रसीद जिला उद्यान अधिकारी को प्रस्तुत करनी होती है। इसके बाद, उन्हें उत्तर प्रदेश राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था में पंजीकरण कराना होता है, जिसके बाद फसल का निरीक्षण और उत्पादित आलू बीज की टैगिंग की जाती है। प्रमाणीकरण संस्था की रिपोर्ट के आधार पर, किसान के खाते में सब्सिडी की राशि ट्रांसफर की जाती है।

किसान इस नीति का लाभ लेने के लिए विभागीय वेबसाइट upagriculture.com पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं। इसके अलावा, वे साइबर कैफे, कस्टमर केयर, किसान लोकवाणी संस्थान या अपने खुद के संसाधनों के माध्यम से भी रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। इस नीति के तहत, प्रदेश के विभिन्न जिलों में आलू की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। किसानों को गुणवत्तायुक्त बीज, तकनीकी सहायता और उचित मूल्य दिलाने के लिए सरकार निरंतर कार्यरत है। आलू विकास नीति न केवल किसानों की आय बढ़ाने में सहायक है, बल्कि प्रदेश की कृषि अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बना रही है।

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