पशुपालन

पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए उचित पोषण है आवश्यक

भारत पशुपालन और दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में दुनिया के अग्रणी देशों में शुमार है। दूध उत्पादन में भारत लगातार नंबर वन की पोजिशन बनाए हुए है। अंडा उत्पादन में भी देश ने छलांग लगाते हुए दूसरा स्थान हासिल कर लिया है, जबकि चिकन और मीट के मामले में भारत पांचवें स्थान पर पहुंच गया है। लेकिन जब बात डेयरी प्रोडक्ट, जैसे – चीज, दही, पनीर और मिल्क पाउडर आदि के वैश्विक व्यापार या खपत की आती है, तो भारत काफी पीछे छूट जाता है।

बड़ी संख्या में पशु, लेकिन कम उपयोग

एनिमल एक्सपर्ट बताते हैं कि भारत में दूध उत्पादन का आंकड़ा इसलिए ऊंचा है क्योंकि देश में पशुओं की संख्या अन्य देशों के मुकाबले काफी अधिक है। लेकिन यह संख्या ही भारत की ताकत और कमजोरी दोनों बन गई है। भारत में दूध देने योग्य पशुओं की संख्या करीब 30 करोड़ है, लेकिन इनमें से केवल 10 करोड़ पशु ही वास्तव में दूध देते हैं। बाकी 20 करोड़ पशु ऐसे हैं जो दूध नहीं देते या जिनकी क्षमता का सही से उपयोग नहीं हो पा रहा।

डेयरी प्रोडक्ट क्यों नहीं बढ़ रहे?

डेयरी प्रोडक्ट की खपत और उत्पादन कम होने के पीछे दो प्रमुख कारण माने जा रहे हैं—पशुओं की बीमारियां और प्रोडक्ट की लागत। एक्सपर्ट बताते हैं कि बीमार पशु कम दूध देते हैं और यदि उनकी देखभाल और पोषण पर ध्यान नहीं दिया जाए, तो वे पूरी तरह अनुपयोगी बन जाते हैं। दूसरी ओर, डेयरी प्रोडक्ट को बनाने की लागत भी भारत में अपेक्षाकृत अधिक है, जिससे किसानों और दुग्ध उत्पादकों को कम मुनाफा होता है।

दूध चाहिए तो देना होगा सही पोषण

फीड एक्सपर्ट डॉ. दिनेश भोंसले के मुताबिक, देश में सालाना करीब 24 करोड़ टन दूध का उत्पादन होता है, जिसमें से 55% दूध भैंसों से और 45% गायों से आता है, जबकि बकरियों की हिस्सेदारी मात्र 3% है। वे कहते हैं कि उत्पादन बढ़ाने के लिए पशुओं को सही पोषण देना जरूरी है। डॉ. भोंसले के अनुसार, अगर कोई गाय या भैंस रोजाना 5 लीटर दूध देती है, तो उसे कम से कम 2.5 किलो फीड देना जरूरी है। इसके अलावा, हर पशु को रोजाना कम से कम 10 किलो हरा चारा और 5 किलो सूखा चारा मिलना चाहिए। लेकिन असलियत में बहुत कम किसान इस मानक का पालन करते हैं। नतीजतन पशु दूध कम देने लगते हैं और उत्पादन पर सीधा असर पड़ता है।

नस्ल सुधार से होगा क्रांतिकारी बदलाव

भारत में अब ऐसी आधुनिक तकनीकें उपलब्ध हैं जो पशु नस्ल सुधार में मदद कर सकती हैं। डॉ. दिनेश बताते हैं कि आज ‘सेक्स सॉर्टेड सीमेन’ की मदद से बछियों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। इसके अलावा आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) और एआई (आर्टिफिशियल इन्सेमिनेशन) जैसी तकनीक से उच्च गुणवत्ता वाले पशुओं का प्रजनन संभव हो चुका है। देश के विभिन्न राज्यों में सरकारी और निजी सीमेन सेंटर काम कर रहे हैं, जहां किसानों को सस्ती दरों पर बेहतरीन नस्लों का सीमेन मिल रहा है। अब तो कई तकनीकी विशेषज्ञ गांवों में जाकर पशुओं का कृत्रिम गर्भाधान तक कर रहे हैं, जिससे दुग्ध उत्पादन में तेजी आ सकती है।

नीतियों में बदलाव और प्रशिक्षण जरूरी

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार डेयरी सेक्टर में लागत कम करने, प्रशिक्षण बढ़ाने और पशुओं की स्वास्थ्य सुविधाएं सुलभ कराने पर जोर दे, तो भारत केवल दूध के उत्पादन में नहीं बल्कि डेयरी प्रोडक्ट्स के क्षेत्र में भी वैश्विक लीडर बन सकता है। भारत में दूध की कोई कमी नहीं है, लेकिन समस्या यह है कि हम अपने संसाधनों का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पा रहे। अगर पशुओं की सही देखभाल, संतुलित आहार और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाए तो डेयरी सेक्टर भारत की अर्थव्यवस्था को और ऊंचाई पर ले जा सकता है।

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