कृषि पिटारा

संरक्षित खेती – समय की मांग

आज सारी दुनिया में जलवायु परिवर्तन को लेकर चर्चायेें हो रही है और आज सब लोग यह मान रहे है कि मौसम मे बड़ी तेजी से बदलाव आ रहा है और साथ ही हम लोगों की खाने की आदते भी बदलती जा रही है। पहले हम मौसम के हिसाब से खान पान करते थे परन्तु अब हम हर सब्जियाँ पूरे वर्ष खाना पसंद करते है। चाहे कोई भी मौसम हो। जैसे टमाटर, धनियाँ पूरे वर्ष चाहिए इत्यादि। ऐसे में ताजा बेमौसमी सब्जियाँ पैदा करने का एक ही तरिका है वह है संरक्षित खेती।

संरक्षित खेती का मतलब होता है खेती करने का एक आधुनिक और वैज्ञानिक तरीका जिसके अर्न्तगत पौधों को विपरीत प्रकृतिक परिस्थितियों या प्रतिकूल वातावरण जैसे तेज गर्मी, तेज सर्दी, तेज हवा, तेज प्रकाश की तीव्रता, अतिवृष्टि, अनावृष्टि इत्यादि से पौधों का बचाव किया जाता है पौधों को संरक्षण दिया जाता है और उन्हें अनूकुल परिस्थितियाँ प्रदान की जाती है जो कि उनकी बढ़वार में सहायक होती है। इस तरीके से उनसे अच्छी गुणवत्ता की एवं ज्यादा पैदावार प्राप्त की जाती है। इस प्रकार से जो खेती की जाती है उसे हम संरक्षित खेती कहते हैं। संरक्षित खेती के अर्न्तगत कई कृत्रिम संरचनाऐं बनानी पड़ती हैं जैसे पोलिहाऊस, शेडनेट हाऊस, ग्लास हाऊस, वाकिंग टनल, लो टनल इत्यादि। इन संरचनाओं के अन्दर तापमान, आद्रता, वायु का बहाव, प्रकाश की तीव्रता और सी.ओ.टू. (कार्बन डाय आक्साईड) का स्तर काफी हद तक नियत्रित किया जाता है और पौधे की बढ़वार में सहायक सभी अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान की जाती हैं। इस प्रकार से जो खेती कि जाती हैं उसे संरक्षित खेती कहते हैं। अगर हम ग्रीन हाऊस के बारे में बात करें तो ग्रीन हाऊस लोहे की पाईपों से बना एक ऐसा घर है जो की पारदर्शी आवरण से ढ़का रहता है। अगर ये पारदर्शी आवरण पोलिथीन है तो इसे हम पोली हाऊस कहते हैं पोली हाऊस का इस्तेमाल आमतौर पर कट फ्लोवर की खेती यानि डण्डी वाले फूलों की खेती के लिए किया जाता है और डण्डी वाले फूल जो हमारे राजस्थान के अन्दर लगाये जा सकते हैं वो हैं डच्च गुलाब, जरबेरा और कुछ जगहों पर हम कारनेशन भी लगा सकते हैं। इसके अलावा बेमौसमी सब्जियों की खेती भी पोली हाऊस में की जा सकती है। शेड़नेट के बारे में कहा जाता है शेड़नेट लोहे की पाईपों से बना ऐसा ढ़ांचा होता है जो कि हरे रंग की या सफेद रंग की जाली से या शेड़ नेट से ढ़का होता है। उसे हम शेड़नेट करते हैं। शेड़नेट हाऊस के अर्न्तगत हम सब्जियों की खेती कर सकते हैं बेमौसमी सब्जियाँ लगा सकते हैं बेल वाले टमाटर, हरी, लाल, पीली, बैंगनी, नारंगी रंगो वाली शिमला मिर्च, धनियाँ, बीज रहित खीरा इत्यादि। पर सबसे अच्छा व्यवसाय तो नर्सरी का व्यवसाय है जिसको की आप शेड़नेट हाऊस के अन्दर कर सकते हैं। इसके अन्दर आप सब्जियों की पौध भी तैयार कर सकते हैं उसके लिए आप को चाहिए प्लास्टिक की प्रो ट्रे या नर्सरी ट्रे जिसमें की लगभग 98 छेद होते हैं उन छेदों के अन्दर कोको पिट एवं वर्मीकम्पोस्ट भरा जाता है और कोको पिट भरने के पश्चात् उनमें एक-एक बीज लगा दिया जाता है इस तरीके से पौध तैयार की जाती है टमाटर की पौध तैयार होने में लगभग 25 से 28 दिन लगते हैं। शिमला मिर्च या हरी शिमला मिर्च की पौध तैयार करने में 35 से 40 दिन लगते हैं और वैसे ही अगर आप खीरे की पौध तैयार करना चाह रहे हैं सर्दियों के अन्दर, तो सर्दियों में लगभग आप को 20 से 21 दिन लगते हैं और गर्मीयों में यह 15 से 18 दिन में तैयार हो जाती है। इस तरीके से जो पौध तैयार की जाती है इसके अपने फायदे हैं। ग्लास हाऊस आमतौर पर हमारे हिन्दुस्तान के अन्दर खाली एक्सपेरिमेन्टल प्रयोगशालाओं तक ही सीमित हैं। ‘लो टनल’ लो टनल का मतलब होती है छोटी सुरंगनूमा संरचना या एक ढ़ाचा जो कि छोटा सुरंगनुमा आकार का होता है खासतौर से इसको बनाया जाता है लगभग जब तेज सर्दियाँ पड़ती हैं दिसम्बर जनवरी माह में (15 दिसम्बर से 15 जनवरी तक) इसको बनाया जाता है और पहले एक मीटर की बेड बनाई जाती है जो की ऊपर से 90 से.मी. होती है और उसके ऊपर यू शेप या अर्द्धचन्द्राकार में पाईप या लोहे का तार लगा दिया जाता है प्लास्टिक की पाईप या मोटा तार बेन्ड करके लगा दिया जाता है और उसको हर ढाई से तीन मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। इसे हुप्स कहा जाता है और इन हुप्स को ऊपर से पोलिथिन से ढ़क दिया जाता है और उसके अन्दर खेती की जाती है। बेड के ऊपर दो लेटरल लाईन ड्रिप इरिगेशन के लिए (इन लाईन ड्रीपर्स) लगा दिये जाते हैं और उनसे बूंद-बूंद पानी और खाद मिश्रित पानी दिया जाता है और जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती जाती है वैेसे-वैसे इन पोलिथिन के अन्दर छेद निकाले जाते हैं शुरू में बारीक छेद बाद में बड़े छेद और जब गर्मी तेज हो जाती है वातावरण गर्म हो जाता है तब इसको पूर्ण रूप से हटा दिया जाता है। पोलिथिन के स्थान पर नोन वोवन प्लास्टिक का इस्तेमाल भी किया जा सकता है और इसमे छेद करने की जरूरत नही होती है। इस तरह की खेती जो कि जाती है लो टनल के अन्दर ये आमतौर पर सर्दियो में की जाती है। कुछ सब्जियाँ या फसले होती हैं जो उग नहीं पाती सर्दियों की वजह से परन्तु इस तरीके की सुरंगनुमा लो टनल बनाकर उसके अन्दर अच्छी तरह से ना केवल उगाई जा सकती है बल्कि अच्छी गुणवत्ता का उत्पाद एवं ज्यादा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है जिनका बाजार में अच्छा भाव मिलता है जैसे खासतौर से बेल वाली फसलें जैसे छप्पन कद्दू, टिन्डा, खरबूजा, तरबूज इत्यादि आमतौर पर लगाये जाते हैं और इनसे अच्छे बाजार भाव प्राप्त होते हैं और इस तरह की जो लो टनल होती हैं इनकी ऊॅचाई एक सवा मीटर की होती है और इसके अन्दर व्यवसायिक खेती की जा सकती है और इसका चलन बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। शहर के आसपास जिन लोगों के खेत हैं उनके आस पास के क्षेत्र में किसान इस तरह की संरचनायें (लो टनल) बनाकर बेमौसमी सब्जियाँ बेल वाली सब्जियाँ लगा रहे हैं और अच्छा मुनाफा कमा रहें हैं। इससे थोड़ा सा बड़ा ढ़ाचा होता है जिसको की हम बोलते हैं वाकिंग टनल। वाकिंग टनल के अन्दर सबसे महत्वपूर्ण चीज यह होती है कि किसान भाई उसमें खड़े होकर कार्य कर सकता है। इसकी लो टनल की मुकाबले ज्यादा ऊचाई होती है और उसके अन्दर ज्यादा ऊचाई वाली बेमौसमी सब्जियाँ लगाई जा सकती हैं और अच्छी गुणवत्ता का उत्पाद और ज्यादा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। तो ये सारी संरचनायें ये सब संरक्षित खेती की संरचनायें हैं और संरक्षित खेती आज हमारे किसान भाईयों के लिए वरदान सिद्ध हो रही है और किसान भाई इसे अपना कर ना केवल अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं बल्कि समाज में अच्छा नाम, अच्छी इज्जत और अपनी अच्छी पहचान बना रहें हैं। युवा वर्ग भी इस प्रकार के वैज्ञानिक और आधुनिक खेती के प्रति आकर्षित हो रहा है और खेती से जो उनका मोह पूर्व में भंग हो गया था। वह मोह वापस पैदा हो रहा है और वह खेती के प्रति आकर्षित हो रहे हैं और इससे जुड़ रहे हैं।

पिछले कुछ सालों में किसान भाईयों ने मल्च का प्रयोग करना भी खेती में चालू कर दिया है। मल्च का मतलब होता है प्लास्टिक की एक पतली फिल्म जिसको की उठी हुई क्यारियों पे बिछा दिया जाता है। इसके अपने फायदे हैं। मल्च वैसे तो कई रंगों में आती है। पर हमारे हिन्दुस्तान की बात करें तो दो रंगों में आ रही है एक तो दोनों तरफ से काली दुसरे प्रकार की एक तरफ से काली और दुसरी तरफ से सिल्वर कलर वाली यानि चाँदी रंग वाली। आम तौर पर जब हम इसे काम में लेते हैं तो काले रंग वाला हिस्से को जमीन की तरफ रखते हैं और जो सिल्वर कलर को आकाश की तरफ रखते हैं। सबसे पहले मिट्टी की उठी हुई क्यारियाँ बनाई जाती हैं क्यारियों के ऊपर बूंद-बूंद सिचाई तंत्र बिछाया जाता है और इसके पश्चात् मल्च को ऊपर बिछा दिया जाता है। मल्च बिछाने के पश्चात् सिल्वर कलर को ऊपर की तरफ रखा जाता है, फिर एक निश्चित दूरी पर छेद निकाले जाते हैं। आज कल बाजार में पहले से मल्च के अन्दर छेद निकले हुए आते हैं आप चाहे तो ऐसी मल्च भी बाजार से खरीद सकते हैं और अगर आपने बिना छेद वाली मल्च खरीदी तो आप उसको बिछाने के पश्चात् उसमें एक निश्चित दूरी पर छेद निकाल सकते हैं और उसमें बीज रोपण या पौध रोपण कर सकते हैं। मल्च के अपने कुछ फायदे हैं, पहला इससे पौधे के आस पास खरपतवार नहीं उगती है जिससे आपको अतिरिक्त मजदूर या मेहनत नहीं लगानी पड़ती है दूसरा पानी का संरक्षण होता है, क्योंकि पानी का वाष्पीकरण नहीं हो पाता और नमी ज्यादा समय तक रहती है, तीसरा जो सिल्वर रंग की परत ऊपर की तरफ है तो उस पर सूर्य की किरणें गिरती हैं और दर्पण के रूप में परावर्तित हो जाती हैं और ये किरणे परावर्तित होकर मल्च से निचले पत्तों पर निचली तरफ पड़ती है जिससे वहाँ पर किसी प्रकार के कीट-पतंगे उस प्रकाश के कारण वहाँ रह नही पाते और वहाँ से जाने को मजबूर हो जाते हैं। इस प्रकार से सिल्वर रंग के मल्च का प्रयोग करते हैं तो कीट-पतंगों का प्रकोप भी कम होता है। तो मोटे तौर पर हम देखें तो खरपतवार उग नहीं पाती है मल्च का प्रयोग करने से, दूसरा पानी का संरक्षण होता है, तीसरा कीट-पतंगों का भी प्रकोप कम होता है जिससे पौधे में बिमारियाँ कम होती हैं। इस तरह से हमारे शेखावाटी क्षेत्र के किसान अपने खेतों में मल्च का प्रयोग कर सकते हैं और बहुत से किसान इसका प्रयोग कर भी रहे हैं और इस प्रकार से इसमें तरबूजे की खरबूजे की खेती कर रहे हैं, बेल वाली फसलें लगा रहे हैं और अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं। मैं आप सब भाईयों को कहना चाहूँगा कि इस प्रकार की जो तकनीक है इससे जुड़े, इसके बारे में जानकारी एकत्रित करें, प्रयोगिक जानकारी ले, इसमें सरकार का जो अनुदान है उसके बारे में जानकारी लें और इन्हें अपने खेतों पर अपनाए और दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की करें।

भाईयों अगर हम गुजरात एवं राजस्थान राज्यों की बात करें तो हमारे इन क्षेत्रो में सबसे ज्यादा गर्मी और सबसे ज्यादा ठण्ड दोनों ही पाई जाती है और ऐसे में ये संरक्षित खेती हमारे यहां के लोगों के लिए वरदान सिद्ध हो रही है। क्योंकि इन संरचनाओं में जैसे कि पोली हाऊस, शेडनेट हाऊस, ग्लास हाऊस, लो टनलस्, वाकिंग टनल इनके अर्न्तगत हमारे भाई पूरे वर्ष भर खेती कर सकते हैं। बेमौसमी सब्जियाँ लगा सकते हैं, कट फ्लोर की खेती कर सकते हैं और अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। जैसे की अभी गर्मियों के समय में हम हमारे भाईयों को कहते हैं कि आप अपने यहा पर पोली हाऊस या शेड़नेट हाऊस के अन्दर हरा धनिया लगाइयें, हरे धनियें के भाव इस समय गर्मियों में काफी अच्छे मिलते हैं और इस तरह से हमारे भाईयों को चाहिए कि जो भी बेमौसमी सब्जियाँ हैं उनको वह अपने खेतों में कृत्रिम संरचाऐं बनाकर लगाये और उनसे अच्छा उत्पाद और ज्यादा पैदावार प्राप्त करें और अच्छा मुनाफा कमाये। अब सरकार भी इस प्रकार की संरक्षित खेती को प्रोत्साहन दे रही है। इसके लिए वह अनुदान भी दे रही है। साथ में समय-समय पर किसानों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी रखे जाते हैं। ऐसे में हमारे भाई अपने नजदीकतम उद्यान विभाग या कृषि विभाग के कार्यालय में सम्पर्क कर सकते हैं और वहां के अधिकारियों से इस प्रकार के कार्यक्रमों का प्रशिक्षण एवं जानकारी प्राप्त कर सकते हैं प्रशिक्षण के लिए रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं और इन्हें अपना कर विकास की दौड़ में आगे बढ़ सकते हैं। भाईयों अगर आप संरक्षित खेती करना चाहते हैं तो इसके लिए प्रशिक्षण बेहद जरूरी है और इस प्रकार का प्रशिक्षण समय-समय पर उद्यान विभाग और कृषि विभाग द्वारा जिला स्तर पर या तहसील स्तर पर प्रदान किया जाता है। उसमें आप सहभागी हो सकते हैं और वहां के अधिकारियों से पूर्ण जानकारी प्राप्त कर इस प्रकार की स्कीम का फायदा उठा सकते हैं। और संरक्षित खेती कर दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की कर सकते है। यह कार्य रिटायरमेन्ट के बाद भी किया जा सकता है। अतः सभी भाइयों को चाहिए की एक नई शुरूआत करे। आओ हम सब संरक्षित खेती अपनाये और अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करे। 

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