चंडीगढ़: पंजाब में बासमती धन की खेती करने वाले किसानों के हित में सरकार ने एक अतिआवश्यक अधिसूचना जारी की है। इसके मुताबिक राज्य में 12 अगस्त से लेकर 12 अक्टूबर तक 10 कीटनाशकों के इस्तेमाल पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है। इन 10 कीटनाशकों का इस्तेमाल किसान अमूमन बासमती धान की खेती में करते हैं। सरकार की ओर से प्रतिबंधित कीटनाशकों में एसेफेट, बुप्रोफेज़िन, क्लोरोपायरीफॉस, मेथामिडोफोस, प्रोपिकोनाज़ोल, थियामेथोक्सम, प्रोफेनोफोस शामिल हैं। इनके अलावा आइसोप्रोथियोलेन, कार्बेंडाजिम और ट्राइकोजॉल को भी इस अवधि के लिए प्रतिबंधित किया गया है।
देश के एक प्रमुख अखबार की खबर की मानें तो पंजाब में 10,000 से अधिक कीटनाशक डीलर हैं और सभी के पास इन कीटनाशकों का स्टॉक है। राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव द्वारा जारी एक अधिसूचना में यह कहा गया है कि यह फैसला बासमती धान की किसानों के हित में लिया गया है। इस फैसले के तहत आगामी 60 दिनों के लिए राज्य सरकार द्वारा कीटनाशकों की बिक्री, स्टॉक, वितरण और उपयोग पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया गया है। कीटनाशक बैन का कारण बताते हुए कहा गया कि इन केमिकल्स के इस्तेमाल के कारण बासमती चावल के दानों में निर्धारित मात्रा से अधिक कीटनाशक का पाए जाने का खतरा रहता है। इसके कारण इसकी गुणवत्ता प्रभावित होती है और फिर निर्यात में परेशानी होती है। इसके अलावा इस प्रतिबंध का एक कारण यह भी है कि पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना ने पंजाब में बासमती चावल में कीटों को नियंत्रित करने के लिए वैकल्पिक कृषि रसायनों की सिफारिश की है। वहीं, पंजाब राइस मिलर्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ने यह भी बताया है कि उनके द्वारा परीक्षण किए गए कई नमूनों में इन कीटनाशकों का अवशेष मूल्य बासमती चावल में एमआरएल मूल्यों से बहुत अधिक है।
गौरतलब है कि पंजाब राइस मिलर्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ने अभी हाल ही में बासमती चावल के निर्यात को बधामुक्त बनाने व बासमती की उपज को बचाने के लिए कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया था। हालाँकि, विशेषज्ञों का मानना है कि रासायनिक कीटनाशकों पर इस तरह से समय-समय पर प्रतिबंध लगाए जाने से किसान इनका उपयोग करना नहीं छोड़ सकते हैं और ना ही डीलर उनकी बिक्री रोक सकते हैं। क्योंकि इनमें अधिकांश ऐसे कीटनाशक है जिनका इस्तेमाल गेहूं, सब्जियों, फलों और गन्ने में किया जाता है और इसलिए ये किसानों के पास आसानी से उपलब्ध हैं। इसलिए सरकार जब तक इन कीटनाशकों पर स्थायी प्रतिबंधित नहीं लगा देती, तब तक ऐसे प्रयासों से कुछ खास हासिल नहीं होने वाला।