नई दिल्ली: दलहनी पौधों की जड़ों की ग्रंथिकाओं में राइजोबियम नाम का एक जीवाणु पाया जाता है। यह वायुमंडलीय नत्रजन का स्थिरीकरण कर फसल की पैदावर को बढ़ाने में सहायक होता है। यह दलहनी फसलों में प्रयोग होने वाला एक प्रमुख जैव उवर्रक है। दलहनी फसलों से ज्यादा पैदावार हासिल करने के लिए बीजों को राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर के बोने के कई फायदे हैं। जैसे – राइजोबियम जीवाणु वातावरण के स्वतंत्र नाइट्रोजन को पौधों तक पहुंचाते हैं। जीवाणुओं के द्वारा यौगिकीकृत नाइट्रोजन कार्बनिक रूप में होने के कारण इसका क्षय कम होता है।
नाइट्रोजन वाले उर्वरकों का एक बड़ा हिस्सा तमाम कारणों से इस्तेमाल नहीं हो पाता है, लेकिन राइजोबियम जीवाणुओं के द्वारा यह पौधों को मिल जाती है। दलहनी फसलों की जड़ों में मौजूद जीवाणुओं के द्वारा जमा की गई नाइट्रोजन अगली फसल में इस्तेमाल हो जाती है। यही नहीं, राइजोबियम कल्चर के इस्तेमाल से चना, अरहर, मूंग व उड़द की उपज में 20-30 प्रतिशत तक व सोयाबीन की उपज में लगभग 50 से 60 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी होती है।
जहाँ तक बात है राइजोबियम कल्चर के दौरान बरती जाने वाली कुछ प्रमुख सावधानियों की तो सबसे ज़रूरी यह है कि हर दलहनी फसल में एक खास प्रजाति के कल्चर का ही इस्तेमाल करना चाहिए। अन्य फसल के कल्चर का इस्तेमाल करने से फसल की जड़ों में गांठें नहीं बनेंगी और कल्चर का फायदा फसल को नहीं मिलेगा। इसके अलावा पैकेटों को बुआई से ठीक पहले खोलना चाहिए और बीजोपचार के फौरन बाद ही बीज बो देने चाहिए। पैकेट पर लिखी आखिरी तारीख से पहले हर हाल में कल्चर का इस्तेमाल कर लेना चाहिए। क्योंकि अगर समय पर इसका इस्तेमाल नहीं किया गया तो जीवाणु नष्ट हो सकते हैं। यदि बीजों को कीटनाशक व फफूंदनाशक रसायनों से उपचारित किया जाना हो तो पहले फफूंदनाशक, फिर कीटनाशक और अंत में राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए।