(नई दिल्ली) देश में कीटनाशकों का कारोबार काफी लंबा-चौड़ा है, और इस कारोबार में देश ही नहीं बल्कि विदेशों के भी कारोबारी शामिल हैं. कारोबार तक तो मसला ठीक था पर भला इससे किसानों का क्या लेना देना?? दरअसल, इस पूरे मुद्दे का सीधा संबंध किसानों से ही है. खबर ये है कि, घरेलु बाज़ार में बिकने वाले कीटनाशकों में से लगभग एक चौथाई के नमूने जाँच के दौरान घटिया किस्म के पाए गए हैं.
सोमवार को दिल्ली में आयोजित एक प्रेस वार्ता में भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्णवीर चौधरी ने कहा कि, “घटिया कीटनाशक दवाओं के प्रयोग के कारण किसानों को सालाना करीब 30,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. खुले बाजार से एकत्रित कीटनाशकों के कुल 50 नमूनों की जांच गुरुग्राम में स्थित सरकारी प्रयोगशाला, कीटनाशक फॉर्मूलेशन प्रौद्योगिकी संस्थान, (आईपीएफटी) में कराई गई. इनमें से 13 नमूनों की गुणवत्ता निम्न कोटि की पाई गई है.”
उन्होंने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए यह भी कहा कि, “जिला स्तर पर सेंपल भरने वाले पेस्टिसाइड इंसपेक्टर और राज्य स्तरीय प्रयोगशालाओं के प्रभारी नकली कीटनाशकों के लिए जिम्मेदार है, इनकी मिलीभगत के कारण यह कारोबार छड़ल्ले से चल रहा है. इसलिए नकली कीटनाशकों की रोकथाम के लिए कड़े कानून बनाने की जरुरत है, साथ ही दोषियों के खिलाफ भी कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए.”
कीटनाशकों की गुणवत्ता में स्तरहीनता का मामला काफी गंभीर है. वजह ये है कि घटिया कीटनाशकों से फसलों में लगने वाली बीमारियों पर बेहद कम असर होता है, यहाँ तक कि कई बार असर होता ही नहीं है, जिसके कारण फसलों का उत्पादन प्रभावित होने से किसानों को भारी घाटा उठाना पड़ता है. कई बार फसलों के उत्पादन का यह घाटा देश के अन्नदाताओं के पास कोई विकल्प नहीं छोड़ता. देश की शेष आबादी के लिए किसानों के पास अन्नदाता बने रहने का विकल्प बचा रहे, इसके लिए ज़रूरी है कि मामले की गंभीरता से जाँच कर दोषियों के खिलाफ सख्ती बरती जाए.