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शहरों में बढ़ रही है जौ की मांग, कम खर्च में ऐसे शुरू करें इसकी खेती

नई दिल्ली: जौ एक ऐसी फसल है जिसका महत्व प्राचीन काल से ही बना हुआ है। यह एक काफी पौष्टिकारक आहार है। हाल के कुछ वर्षों में स्वास्थ्य के प्रति लोगों की चिंता बढ़ी है। काफी संख्या में लोगों ने जैविक आहारों को अपनाना शुरू कर दिया है। ऐसे में बाज़ार में जौ की मांग काफी बढ़ी है। इसे देखते हुए जौ की खेती में अब किसानों को अच्छा मुनाफा मिलने लगा है।


भारत में यह फसल गर्म इलाकों में उगाई जाती है। जौ की बिजाई ठंडे मौसम में की जाती है। हमारे देश में इसे रबी के मौसम में उगाया जाता है। यह एक ऐसी फसल है जो कम पानी में भी ज्यादा उपज देती है। यहाँ तक कि यह फसल हल्की ज़मीनों जैसे कि रेतली और कल्लर वाली ज़मीनों में भी कामयाबी से उगाई जा सकती है।

अगर बात करें जौ की उन्नत क़िस्मों की तो ये हैं – BH 75, BH 393, PL 426, RD 2035, BCU 73, RD 2503 और PL 751 इत्यादि। जौ की खेती करने से पहले खेत की 2-3 बार अच्छे से जुताई करना ज़रूरी है, ताकि खेत से नदीनों को अच्छी तरह नष्ट किया जा सके। किसान मित्रों, खेत की तैयारी के लिए तवे का प्रयोग करें और फिर 2-3 बार सुहागा फेर दें, ताकि फसल अच्छी तरह जम जाए। पहले बोयी गई फसल की पराली को हाथों से उठाकर नष्ट कर दें। इससे फसल पर दीमक का हमला नहीं होगा।

जौ की अच्छी पैदावार के लिए 15 अक्तूबर से 15 नवंबर तक बिजाई कर दें। यदि आप बिजाई देरी से करेंगे तो पैदावार कम हो सकती है। बिजाई के लिए पंक्ति से पंक्ति के बीच 22-23 सेंटीमीटर का फासला रखें। यदि आपने बिजाई देरी से की है तो यह फासला 18-20 सेंटीमीटर तक रखें। जौ की बिजाई छींटे द्वारा और मशीन द्वारा की जाती है। जहाँ तक बात है बीज की मात्रा की तो सिंचाई वाले क्षेत्रों में 35 किलोग्राम और बारिश वाले क्षेत्रों में 45 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।

अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए बाविस्टिन 2 ग्राम प्रति किलो की दर से बीज का उपचार करें। इससे पौधों में कांगियारी रोग नहीं लगता है। जौ की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए शुरू में ही नदीनों की रोकथाम बहुत जरूरी है। जौ की फसल को 2-3 बार सिंचाई की जरूरत पड़ती है। पानी की कमी होने पर बालियाँ बनने के समय पैदावार पर बुरा असर पड़ता है। अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी में 50 प्रतिशत नमी बरकरार रखनी चाहिए। इसलिए फसल की पहली सिंचाई बिजाई के 20-25 दिनों के बाद ज़रूर करें और बालियाँ आने पर दूसरी सिंचाई करें।

आपको बता दें कि फसल किस्म के अनुसार मार्च के आखिर से अप्रैल तक जौ की बालियाँ पक जाती हैं। फसल को ज्यादा पकने से बचाने के लिए समय से कटाई कर लें। फसल में 25-30 प्रतिशत नमी होने पर फसल की कटाई करें। कटाई के लिए दरांती का प्रयाग करें। कटाई के बाद अनाज का किसी सूखे स्थान पर भंडारण कर लें।

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