कृषि पिटारा

शहरों में बढ़ रही है साँवा की मांग, ऐसे शुरू करें इसकी खेती

नई दिल्ली: आजकल साँवा की मांग में फिर से बढ़ोतरी हो रही है। असिंचित क्षेत्रों में बोयी जाने वाली मोटे अनाजों में साँवा का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह भारत की एक प्रचीन फसल है। असिंचित क्षेत्र में बोयी जाने वाली यह एक प्रमुख सूखा प्रतिरोधी फसल है। इसमें पानी की आवश्यकता कई अन्य फसलों के मुक़ाबले काफी कम होती है। हल्की नम व ऊष्ण जलवायु इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। साँवा का उपयोग चावल की तरह किया जाता है। उत्तर भारत में साँवा की खीर बहुत पसंद से खायी जाती है। इसका उपयोग पशुओं के चारे के लिए भी किया जाता है। इस तरह से यह एक बहुपयोगी फसल है। अगर आप पशुपालन कर रहे हैं तो इसकी खेती आपके लिए और भी उपयोगी साबित होगी।

सामान्यता यह फसल कम उपजाऊ मिट्टी में बोयी जाती है। इसे आंशिक रूप से जलाक्रांत मिट्टी जैसे कि नदी के किनारे की निचली भूमि में भी उगाया जा सकता है। लेकिन इसके लिए बलुई दोमट व दोमट मिट्टी, जिसमें पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व हों, सर्वाधिक उपयुक्त होती है। साँवा की खेती के लिए मानसून के प्रारम्भ होने से पहले खेत की जुताई आवश्यक है, जिससे खेत में नमी की मात्रा संरक्षित हो सके। मानसून के प्रारम्भ होने के साथ ही मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की पहली जुताई करें। इसके बाद दो से तीन जुताईयां सामान्य हल से करके खेत को भली भॉति तैयार कर लें।

साँवा की बुआई की उत्तम समय 15 जून से 15 जुलाई तक है। मानसून के प्रारम्भ होने के साथ ही इसकी बुआई कर देनी चाहिए। साँवा की बुआई छिटकावाँ विधि से या कूड़ों में 3-4 सेमी. की गहराई में की जाती है। कुछ क्षेत्रों में इसकी रोपाई भी की जाती है। पानी के लगाव वाले स्थान पर मानसून के प्रारम्भ होते ही छिटकवाँ विधि से साँवा की बुआई कर देनी चाहिए तथा बाढ़ आने की सम्भावना से पहले ही फसल की कटाई कर लेनी चाहिए।

साँवा की बुआई के लिए 8 से 10 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से गुणवत्तायुक्त बीज की आवश्यकता होती है। टी.-46, आई.पी.-149, यू.पी.टी-18, आई.पी.एम.-97 और आई.पी.एम.-100 इत्यादि साँवा की कुछ उन्नत किस्में हैं, इनकी बुआई कर आप अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। साँवा की फसल जब अच्छी तरह से पक जाए इसकी कटाई जड़ से हँसिये की सहायता से करनी चाहिए। इसके बाद गठ्ठर बनाकर खेतों में एक सप्ताह के लिए सूखने के लिए रख देना चाहिए। फिर इसकी मड़ाई कर उचित तरीके से भंडारण कर लेना चाहिए।

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