नई दिल्ली: जिन फसलों को पानी की अधिक आवश्यकता होती है, उन्हें उगाने में एक अच्छा खासा खर्च सिंचाई पर भी आता है। यदि समय पर वर्षा न हो तो यह खर्च और भी अधिक हो जाता है। आजकल मॉनसून की अनिश्चितता की वजह से किसानों को सिंचाई के मद में अधिक खर्च करना पड़ रहा है। ऐसे में एक स्वाभाविक सा सवाल उठता है कि क्या सिंचाई पर होने वाले खर्चे को कम किया जा सकता है? तो इसका जवाब है – हाँ। यदि एक किसान सिंचाई की विविध विधियों को अपनाए तो इस खर्चे में एक हद तक कमी आ सकती है। ये विधियाँ फसल की प्रवृति, खेत व मिट्टी की संरचना और क्षेत्र विशेष की जलवायु पर आधारित हैं। कई किसान खेत की सिंचाई करते समय कुछ छोटी-छोटी बातों पर ध्यान नहीं देते हैं, इस वजह से भी उनकी लागत में वृद्धि होती है।
यदि आवश्यकतानुसार आप सिंचाई की निम्न विधियों को अपनाएँ तो इससे न केवल सिंचाई पर आने वाली आपकी लागत कम होगी बल्कि आपको बेहतर पैदावार प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी:
अगर आप नाली के जरिये सिंचाई करते हैं तो बेहतर होगा कि इसे पक्की करा लें। सिंचाई से पहले नाली की साफ-सफाई ज़रूर कर लें।
सिंचाई से पहले खेत को समतल कर लें। ऐसा करने से पानी पूरे खेत में एक समान पहुंचता है और कम पानी में भी खेत की उचित सिंचाई होती है। इससे पहले के मुक़ाबले आपको उपज भी अच्छी प्राप्त होगी।
सिंचाई के दौरान पानी के अनुशासित उपयोग के लिए स्प्रिंकलर या ओवर हेड स्प्रिंकलर विधि द्वारा सिंचाई करें। इससे मिट्टी का कटाव नहीं हो पाता है। इसके अलावा खेत और नलकूप के रास्ते में होने वाली पानी की बर्बादी भी नहीं होती है। सिंचाई की ये पद्धतियाँ सिर्फ बागवानी तथा निश्चित दूरी पर लगने वाली पौध में कारगर होती है।
रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता यथासंभव कम करें। जहाँ तक हो सके जैविक खाद का प्रयोग करें। इससे मिट्टी में सिंचाई के बाद नमी ज्यादा समय तक टिकती है।
मिश्रित खेती भी पानी बचाने का एक बेहतर उपाय है। खास तौर पर यदि आप बागवानी व कुछ अन्य फसलों की खेती एक साथ करेंगे तो मिट्टी से नमी का वाष्पन कम होगा। इसके अलावा बगीचे के पत्ते खेत को जैविक खाद प्रदान करते रहेंगे। इससे मिट्टी में नमी लंबे समय तक बरक़रार रहेगी और पानी की कम ज़रूरत पड़ेगी।
तोड़ विधि से सिंचाई करने पर समय की बचत होती है। सिंचाई की यह विधि अधिक पानी चाहने वाले फसलों के लिए उपयुक्त होती है।
खेत की सिंचाई के लिए क्यारी विधि भी एक बेहतर विकल्प है। यह विधि उन खेतों के लिए कारगर होती है, जो आकार में बड़े होते हैं। इस विधि में खेत को छोटी-छोटी क्यारियों में बांट दिया जाता है और सभी क्यारियों में पानी पहुंचाया जाता है। इस विधि का सबसे बड़ा लाभ ये है कि पानी पूरे खेत में एक समान मात्रा में पहुंचता है। पास-पास उगाई जाने वाली फसलों के लिए जैसे – मूँगफली व गेहूँ आदि फसलों की सिंचाई के लिए यह एक उपयुक्त विधि है।