नई दिल्ली: आजकल काफी किसान सब्जी उत्पादन को बढ़िया मुनाफा प्राप्त करने का जरिया बना रहे हैं। खीरे की खेती भी इनमें से एक है, जो किसानों को लागत के मुक़ाबले बढ़िया लाभ दिला रही है। खीरे की खेती के साथ अच्छी बात यह है कि इसकी मांग प्रायः पूरे साल बनी रहती है। गर्मी के मौसम के अलावा शादी-विवाह के सीजन में इसकी मांग में अच्छा खासा उछाल देखने को मिलता है।
खीरे को लगभग हर प्रकार की भूमियों में उगाया जा सकता है। शर्त बस इतनी है कि उस भूमि में जल निकास का उचित प्रबंध हो। क्योंकि जिस भूमि में खीरे की फसल लगी हो, उसमें जल का ठहराव फसल के लिए काफी नुकसानदायक होगा। वैसे खीरे की अच्छी उपज के लिए जीवांशयुक्त दोमट भूमि सबसे अच्छी मानी जाती है। खीरे की अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी का pH 6 से 7 होना चाहिए। इसकी फसल जायद और वर्षा में ली जाती है। अत: उच्च तापक्रम में खीरे की अच्छी वृद्धि देखने को मिलती है। यह फसल पाले को नहीं सहन कर पाती है, इसलिए इसे पाले से बचाकर रखना ही श्रेयस्कर होता है।
खीरे की बिजाई फरवरी-मार्च महीने के दौरान की जाती है। कुछ स्थानों पर इसकी बिजाई सही समय जून से जुलाई तक होता है। पूसा उदय और पूसा बरखा खीरे की उन्नत किस्में हैं। ये दोनों किस्में IARI के द्वारा तैयार की गयी हैं। पूसा उदय किस्म 50-55 दिनों में पक जाती है और इसकी औसतन पैदावार 65 क्विंटल प्रति एकड़ तक होती हैं। वहीं, पूसा बरखा किस्म खरीफ के मौसम के लिए तैयार की गई हैं। यह उच्च मात्रा वाली नमी, तापमान और पत्तों के धब्बे रोग को सहन कर सकती है। इस किस्म की औसतन पैदावार लगभग 78 क्विंटल प्रति एकड़ तक होती है। इन किस्मों के अलावा कुछ अन्य किस्में भी हैं, जिनसे आप अपेक्षाकृत अच्छी पैदावार ले सकते हैं। ये हैं – हिमांगी, जापानी लॉन्ग ग्रीन, जोवईंट सेट, पूना खीरा, पूसा संयोग, शीतल, फ़ाईन सेट, स्टेट 8 , खीरा 90, खीरा 75, हाईब्रिड-1 व हाईब्रिड-2 और कल्याणपुर हरा खीरा इत्यादि।
खीरे की खेती के लिए मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा बना लेना चाहिए और बिजाई से पहले 3-4 बार खेत की जुताई ज़रूर करनी चाहिए। जिस भूमि में खीरे की खेती की जानी है, उसमें गाय के गोबर को अच्छी तरह से मिलाने से खेत की उर्वरा शक्ति में बढ़ोतरी होती है। जहाँ तक बात है बीज की मात्रा की तो यह प्रति एकड़ 1.0 किलोग्राम होनी चाहिए।
खीरे की बिजाई के बाद गर्मी के मौसम में फसल की बार-बार सिंचाई करनी चाहिए। हाँ, बारिश के मौसम में खीरे को सिंचाई की जरूरत नहीं होती है। आपको बता दें कि खीरे की पौध को कुल 10-12 सिंचाइयों की आवश्यकता होती हैं। इसलिए फसल के अच्छे विकास के लिए समय पर सिंचाई ज़रूर करनी चाहिए।
खीरे की फसल में अक्सर फलों के गलने की समस्या उत्पन्न होती है। यह बीमारी खीरे के लगभग उन सारे हिस्सों पर हमला करती है जो ज़मीन से ऊपर होते हैं। इस बीमारी के प्रभाव स्वरूप पुराने पत्तों पर पीले रंग के धब्बे और फलों पर गहरे गोल धब्बे दिखाई देते हैं। इसपर नियंत्रण के लिए फसल पर फंगसनाशी क्लोरोथैलोनिल और बेनोमाइल का छिड़काव करें।
बिजाई के 45-50 दिनों बाद खीरे की पौधों से पैदावार मिलने लगती है। आप इसकी 10-12 तुड़ाइयाँ आराम से कर सकते हैं। जहाँ तक उत्पादन का सवाल है तो आपको प्रति एकड़ 33-42 क्विंटल औसतन पैदावार प्राप्त हो सकती है।