खेती-किसानी

चारे की कमी से उबरने मई में चारा फसलों की बुआई से मिल सकता है समाधान

नई दिल्ली: भारत में पशुपालन का दायरा जितना बड़ा है, उतनी ही बड़ी चुनौती आज भी हरे चारे की उपलब्धता को लेकर है। लाखों किसान और पशुपालक इस समस्या से सालों से जूझ रहे हैं। पर अब तस्वीर बदल रही है। धीरे-धीरे किसान खुद इस दिशा में पहल करते हुए अपने खाली खेतों में चारे की खेती शुरू कर चुके हैं। इसका मकसद है—अपने पशुओं को पोषणयुक्त आहार देना और बाजार पर निर्भरता को कम करना।

इस दिशा में सरकार और कृषि वैज्ञानिक संस्थान भी सक्रिय हैं। नई-नई किस्मों का विकास किया जा रहा है, जो कम समय में अधिक उपज देती हैं और पोषण के लिहाज से भी भरपूर होती हैं। इससे किसानों को अधिक मुनाफा और पशुओं को बेहतर चारा मिलने की संभावना बढ़ गई है।

मौजूदा समय यानी मई का महीना किसानों के लिए खास है। ऐसे कई किसान होंगे जिनके खेत इस समय खाली पड़े हैं। कृषि विशेषज्ञों की मानें तो यदि मई में इन खेतों में चारा फसलों की बुआई की जाए तो गर्मी में भी पर्याप्त चारा उपलब्ध कराया जा सकता है। खास बात यह है कि चारा फसलें अगर मिश्रित रूप में बोई जाएं, तो उत्पादन भी ज्यादा होता है और पोषण भी अधिक मिलता है। चारे की प्रमुख फसलें जैसे बाजरा, ज्वार और मक्का गर्मी में भी अच्छी उपज देती हैं, बशर्ते सिंचाई पर विशेष ध्यान दिया जाए।

इस समय सिंचित खेतों में बाजरा की पीसीबी 141, मकचरी टीएल-1 और नेपियर-बाजरा संकर जैसी किस्में अच्छा विकल्प हैं। ज्वार के लिए जेएम 20, एचसी 136, एचसी 171 और पंजाब सूडेक्स चरी-1 जैसी किस्में उपयुक्त मानी जाती हैं। मक्का की फसलों के लिए प्रभात, प्रताप, केसरी और मेघा जैसी किस्में उपयोगी हैं। इसके अलावा गिनी घास, ग्वार और लोबिया जैसी चारा फसलों की विशेष किस्में भी इस मौसम में बोई जा सकती हैं।

अच्छे उत्पादन के लिए जरूरी है कि बीजों का उपचार किया जाए और बुआई से पहले खेत की 2 से 3 बार जुताई की जाए। साथ ही, खेत में देसी गोबर की खाद और यूरिया मिलाकर चारे की खेती शुरू की जाए। एक बार बुआई के बाद चारे की फसल को बेहतर बनाए रखने के लिए पोषण प्रबंधन अत्यंत आवश्यक होता है। यदि ज्वार की एक कटाई वाली किस्म बोई गई है, तो पहली सिंचाई के बाद उसमें नाइट्रोजन की आधी मात्रा डालनी चाहिए।

कटाई के समय और उसके बाद खेत की देखरेख बेहद जरूरी होती है। बहु-कटाई वाली फसलों में बुआई के लगभग 30 दिन बाद टॉप ड्रेसिंग करनी चाहिए, ताकि चारे की वृद्धि बनी रहे। हर कटाई के बाद खेत में बची हुई नाइट्रोजन को बराबर मात्रा में डालना चाहिए और फसल की पुनः बढ़वार के लिए कटाई के बाद सिंचाई अवश्य करनी चाहिए।

हरे चारे की यह समस्या अब धीरे-धीरे एक अवसर में बदल रही है। किसान, वैज्ञानिक और सरकार मिलकर एक नई कृषि संस्कृति को जन्म दे रहे हैं, जहां चारा भी फसल की तरह एक जरूरी और लाभदायक उपज बनकर उभर रहा है। यदि इस दिशा में निरंतर जागरूकता और समर्थन मिलता रहा तो आने वाले वर्षों में भारत न केवल पशुधन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि किसानों की आय में भी उल्लेखनीय वृद्धि होगी।

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